रोज़ाना : वरुण धवन की भाषा और आवाज





रोज़ाना
वरुण धवन की भाषा और आवाज
-अजय ब्रह्मात्‍मज
फिलहाल अपनी पीढ़ी के अभिनेताओं में वरुण धवन सबसे आगे निकलते नजर आ रहे हैं। उनकी पिछली फिल्‍म जुड़वां 2 ने जबरदस्‍त बिजनेस किया है। सोमवार तक के चार दिनों में इस फिल्‍म ने 75 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन कर वरुण धवन के स्‍टारडम को ठोस आधार दे दिया है। 2012 में आई स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर से अभी तक के पांच सालों में वरुण धवन ने वैरायटी फिल्‍में दी हैं। उनकी फिल्‍में सफल भी हो रही हैं। इसी पांच साल में उन्‍होंने एक फ्रेंचाइजी ....दुल्‍हनिया फिल्‍म भी कर ली है। जल्‍दी ही वे शुजित समरकार और सशराज फिल्‍म्‍स की फिल्‍मों में भी नजर आएंगे। कह सकते हैं कि वे इन दिनों बड़े बैनरों और बेहतरीन डायरेक्‍टर के साथ फिल्‍में कर रहे हैं।
पिछले हफ्ते आई फिल्‍म में हम ने उन्‍हें सलमान खान और गोविंदा के मिक्‍स अवतार में देखा। गौर करें तो उनके पिता डेविड धवन ने गोविंदा और सलमान खान के साथ हिंदी फिलमों की कामेडी का नई दिशा दी थी। उसमें एक नयापन तो था। और फिर दोनों सिद्धहस्‍त कलाकारों की कॉमिक टाइमिंग और द्विअर्थी संवादों के खास दर्शक थे। वैस दर्शक आज भी मौजूद हैं। हां,बीस साल पहले के सिंगल स्‍क्रीन के दर्शक अब मल्‍टीप्‍लेक्‍स में आ गए हैं। संवादों में शिष्‍टता का दबाव बड़ा है,लेकिन दृश्‍यों का भेंडपान बदस्‍तूर जारी है। सुधी दर्शक खिन्‍न होकर भिन-भिन करते रहें। सच्‍चाई यही है कि जुड़वां 2 के बिजनेस ने डेविड धवन का खोश आत्‍मविश्‍वास लौटा दिया है। उनके बेटे वरुण धवन के दर्शक बढ़ गए हैं।
इस कामयाबी के बीच वरुण धवन की भाषा और आवाज खटकती है। जुड़वां और उसके पहले की फिल्‍मों में भी उनका उच्‍चारण दोष स्‍पष्‍ट है। अंग्रेजी मीडियम से पढ़ कर आए फिल्‍म कलाकारों की हिंदी में भाषा का ठेठपन नहीं रहता। हां,अभ्‍यास से वे उसे हासिल कर सकते हैं,लेकिन उसके लिए उन्‍हें जिम में जाने जैसी तत्‍परता और नियमितता निभानी पड़ेगी। साथ ही उनकी आवाज किरदारों के अनुकूल नहीं हो पाती। वे इस पर मेहनत करते भी नहीं दिखते। हिंदी ट्यूटर और वॉयस इंस्‍ट्रक्‍टर रख कर दोनों कमियों को दूर किया जा सकता है। अगर वरुण धवन को हिंदी फिल्‍मों में लंबी पारी खेलनी है। खानत्रयी और अमिताभ बच्‍चन जैसी दीर्घ लोकप्रियता हासिल करनी है तो उन्‍हें अपनी भाषा और आवज पर धान देना होगा। मुंबईकरों की हिंदी में और , और , और के भिन्‍न उच्‍चारण की दिक्‍कतें आम हैं। वे शब्‍दों के आखिरी अक्षर पर लगे अनुस्‍वार का सही उच्‍चारण नहीं कर पाते। हैं को है बोलना आम है। बोलते समय सही ठहराव और उतार-चढ़ाव से संवाद का प्रभाव और आकर्षण बढ़ता है। हिंदी का अभ्‍यास हो तो संवादों में आवश्‍यक भाव लाया जा सकता है।

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