रोज़ाना : निर्देशक बनने की ललक



रोज़ाना
निर्देशक बनने की ललक
-अजय ब्रह्मात्‍मज
फिल्‍मों में निर्देशक को कैप्‍टन ऑफ द शिप कहते हैं। निर्देशक की सोच को ही फिल्‍म निर्माण से जुड़े सभी विभागों के प्रधान अपनाते हैं। वे उसमें अपनी दक्षता और योग्‍यता के अनुसार जोड़ते हैं। उनकी सामूहिक मेहनत से ही निर्देशक की सोच साकार होकर फिल्‍म के रूप में सामने आती है। निर्देशक की सोच नियामक भूमिका निभाती है। फिल्‍म निर्माण से जुड़े सभी कलाकार और तकनीशियन एक न एक दिन निर्देशक बनने का सपना रखते हैं। उन सभी में यह ललक बनी रहती है। इन दिनों यह ललक कुछ ज्‍यादा ही दिख रही है।
पहले ज्‍यादातर व्‍यक्तियों की दिशा और सीमा तय रहती थी। वे सभी अपनी फील्‍ड में महारथ हासिल कर उसके उस्‍ताद बने रहते थे। हां,तब भी कुछ क्रिएटिव निर्देशक बनते थे। गौर करे तो पाएंगे कि उन सभी को कुछ खास कहना होता था। कोई ऐसी फिल्‍म बनानी होती थी,जो चलन में ना हो। बाकी सभी अपनी फील्‍ड में ध्‍यान देते थे। पसंदीदा निर्देशक के साथ आजीवन काम करते रहते थे। महबूब खा,बिमल राय,राज कपूर और बीआर चोपड़ा जैसे दिग्‍गजों की टीम अंत-अंत तक साथ में का म करती रही। अभी किसी भी प्रोडक्‍शन हाउस में आप चले जाएं। आप पाएंगे कि वहां इंटर्न का काम रहे युवा प्रतिभा के पास खुद की एक स्क्रिप्‍ट,जिसे वह निर्देशित करना चाहता है। इसमें कोई बुराई नहीं है। नई प्रतिभाओं को अवसर मिलने चाहिए और नई प्रतिभाओं को कोशिश करते रहना चाहिए।
मुश्किल तब होती है,जब किसी एक फील्‍ड में माहिर व्‍यक्ति बगैर पूरी तैयारी के सिर्फ निर्देशक बनने की हड़बड़ी में डायरेक्‍टर्स चेयर पर विराजमान हो जाता है। मैंने देखा है कि एक बार निर्देशक का ठप्‍पा लगने के बाद वे अपनी फील्‍ड के लिए अयोग्‍य मान लिए जाते हैं। यही धारणा बनती है कि उनका ध्‍यान खास विधा की तरफ नहीं रहेगा। वे अपनी जुगत भिड़ाने में लगे रहेंगे। ऐसा देखा भी गया है कि किसी एक विभाग के सहायक अपे काम पर पूरा ध्‍यान देने के बजाय कलाकारों और निर्माताओं से संपर्क बढ़ाने में लगे रहते हैं। मौका मिलते ही वे उन्‍हें अनी स्क्रिप्‍ट सुना देते हैं। पांस सही गिरा तो उनका काम बन जाता है। अन्‍यथा उन पर नजर रखी जाने लगती है। वे शक के दायरे में आ जाते हैं।
भारतीय समाज में रोजगार और अवसर की असुरक्षा की वजह से ऐसा हो रहा है। कायदे से होना तो यह चाहिए कि अपनी फील्‍ड में पारंगत होने के बाद खुद को निर्देशन के योग्‍य समझने और कुछ खास कहने की की जरूरत महसूस करने के बाद ही निर्देशन की तरफ बढ़ना चाहिए। अभी आप आसपास देखें ले,ाक,गीतकार,कास्टिंग डायरेक्‍टर,म्‍यूजिक डायरेक्‍टर,कैमरामैन...सभी के सभी निर्देशक बनने की ललक लिए विचर रहे हैं। 

Comments

Dee Bee said…
सही विषय लाएं है आप...! सिर्फ एक मात्र निर्देशन ही ऐसा क्षेत्र है जहां हर आदमी आना चाहता है भले उसने कभी जाना नही हो कि निर्देशन आखिर है क्या?? पैसे वाले भी धन के ज़ोर पर निर्देशक बन बैठे हैं आजकल !!☺️

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को