फिल्म समीक्षा : शेफ
फिल्म समीक्षा
रिश्तों की नई परतें
शैफ
-अजय ब्रह्मात्मज
यह 2014 में आई हालीवुड की फिल्म ‘शेफ’ की हिंदी रीमेक है। रितेश
शाह,सुरेश नायर और राजा कृष्ण मेनन ने इसका हिंदी रुपांतरण किया है। उन्होंने
विदेशी कहानी को भारतीय जमीन में रोपा है। मूल फिल्म देख चुके दर्शक सही-सही बता
सकेगे कि हिंदी संस्करण् में क्या छूटा है या क्या जोड़ा गया है? हिंदी में बनी यह फिल्म खुद में मुकम्मल है।
रोशन कालरा चांदनी चौक में बड़े हो रहे रोशन कालरा के
नथुने चांदनी चौक के छोले-भठूरों की खुश्बू से भर जाते थे तो वह मौका निकाल कर
रामलाल चाचा की दुकान पर जा धमकता था। उसने तय कर लिया था कि वह बड़ा होकर बावर्ची
बनेगा। पिता को यह मंजूर नहीं था। नतीजा यह हुआ कि 15 साल की उम्र में रोशन भाग
खड़ा हुआ। पहले अमृतसर और फिर दूसरे शहरों से होता हुआ वह अमेरिका पहुंच जाता है।
वहां गली किचेन का उसका आइडिया हिंट हो जाता है। सपनों का पीछा करने में वह
तलाकशुदा हो चुका है। उसका बेटा अपनी मां के साथ रहता है,जिससे उसकी स्काइप पर
नियमित बात होती है।
गली किचेन की एक छोटी सी घटना में उसे अपनी नौकरी से
ाथ धोना पड़ता है। उसी देने बेटे की फरमाइश आती है कि वह पहली बार स्टेज शो करने
जा रहा है। क्या वे आ सकेंगे? असमंजस में डूबे रोशन की
दुविध उसकी दोस्त खत्म करती है,जिसने उसी दिन रोशन की जगह किचने की कमान संभाली
है। पुरुष-स्त्री की यह दोस्ती हिंदी फिल्मों के पर्दे पर बिल्कुल नई है।
बहरहाल,रोशन बेटे के स्टेज शो के लिए कोच्चि पहुंचता है। वहीं वह तलाकशुदा बीवी
के घर ही ठहरता है। आगे की कहानी यहां से बढ़ती है,जो भावनाओं के ज्वार-भाटा को
समेटते हुए बाप-बेटे की अंतरंगता में खत्म होती है।
इस फिल्म में पैशन को फालो करने की बात बहुत खूबसूरत
अंदाज में कही गई है। साथ ही उपभोक्ता समाज में दरकते संबंधों को भी चिह्नित किया
गया है। एक बाप अपने बेटे की उच्च शिक्षा के लिए धन जुटाने की कोशिश और अपनी लगन
में इस कदर डूब चुका है कि वह अपने बेटे के बचपन की हिलोरों से दूर जा चुका है।
उसे डांटने-समझाने की उम्र में वह उसके साथ नहीं रह पाता। रोशन फिल्म के अंत तक
आते-आते न केवल अपने बेटे से जुड़ता है,अल्कि अपने पिता को भी खाना पकाने की
काबिलियत से गर्वीला एहसास देता है। फिल्म में रिश्तों की बुनावट आज की है। सभी
अलग-थलग है,लेकिन किसी के मन में कटुता और मलाल नहीं है। तलाकशुदा जोड़े अक्सर बाद
की मुलाकातों में मीन-मेख ही निकालते रहते हैं। यहां रोशन और उसकी बीवी की परस्पर
समझदारी प्रभावित करती है। दोनों एक-दूसरे का खयाल रखते हैं और उनकी आगे की जिंदगी
सुगम करने की कोशिश करते हैं।
यह फिल्म रिश्तों के खट्टे-मीठे अनुभवों को व्यवहार
और आचरण में बड़े प्यार से ले आती है। फिल्म का विस्तार केरल,दिल्ली,अमृतसर और
अमेरिका है,लेकिन सफर में पता ही नहीं चलता की कहानी ने गियर बदल लिया। लेखक और
संवाद लेखक ने फिल्म को मुलायम और सटीक बना दिया है। रितेश शाह के संवादों में 21
वीं सदी के दूसरे दशक के एहसास के शब्दार्थ हैं। वे रिश्तों की नई परतों से
परिचित कराते हैं।
फिल्म में उपयुक्त कलाकारों का चयन भी उल्लेखनीय
है। उत्तर-दक्षिण के किरदारों और परिवेश को जोड़ती यह फिल्म अखिल भारतीय अपील
रखती है। कलाकारों में सैफ अली खान एक ठहराव के साथ मौजूद हैं। पत्नी की भूमिका
में पद्म प्रिया जंचती है। बांग्लादेशी दोस्त के रूप में चंदन रॉय सान्याल ने
विश्वसनीय सहयोग िदया है। अेटे की भूमिका में धनीश करर्तिक उल्लेखनीय हैं। रोशन
के पिता की छोटी भूमिका में रामगोपाल बजाज की आंखें अलग से सवाल करती और बोलती
हैं।
यह फिल्म अपने अप्रोच में शहरी है। कुछ संवाद
अंग्रेजी में हैं।
अवधि- 130 मिनट
***1/2
साढ़े तीन स्टार
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