रोज़ाना : छठ की लोकप्रियता के बावजूद
रोज़ाना
छठ की लोकप्रियता के बावजूद
-अजय ब्रह्मात्मज
बिहार,झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ एक सांस्कृतिक
और सामाजिक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह धार्मिक अनुष्टान से अधिक
सांस्कृतिक और पारिवारिक अनुष्ठान है। इस आस्था पर्व की महिमा निराली है। इसमें
किसी पुरोहित की जरूरत नहीं होती। अमीर-गरीब और समाज के सभी तबकों में समान रूप से
प्रचलित इस त्योहार में घाट पर सभी बराबर होते हैं। कहावत है कि उगते सूर्य को
सभी प्रणाम करते हैं। छठ में पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया जाता है और फिर
उगते सूर्य की पूजा के साथ यह पर्व समाप्त होता है।
इधर इंटरनेट की सुविधा और प्रसार के बाद छठ के अवसर पर
अनेक म्सूजिक वीडियों और गीत जारी किए गए हैं। इनमें नितिन चंद्रा और श्रुति
वर्मा निर्देशित म्यूजिक वीडियो सुदर और भावपूर्ण हैं। उनमें एक कहानी भी है।
हालांकि भोजपुरी गीतों में प्रचलित अश्लीलता से छठ गीत भी अछूते नहीं रह गए
हैं,लेकिन आज भी विंध्यवासिनी देवी और शारदा सिन्हा के छठ गीतों का मान-सम्मान
बना हुआ है। सभी घाटों पर इनके गीत बजते सुनाई पड़ते हैं।
आश्चर्य ही है कि हिंदी फिल्मों में अभी तक छठ पर
केंद्रित या छठ के प्रसंग को पिरोती कोई हिंदी फिल्म नहीं बनी है। बहुत पहले 1979
में एक भोजपुरी फिल्म ‘छठी मैया की महिमा ‘ का उल्लेख मिलता है,जिसका निर्देशन तापेश्वर प्रसाद ने
किया था। इस फिल्म की नायिका पद्मा ख्न्ना थीं। इधर संजू लक्ष्मण यादव के निर्माण
और रजनीश त्यागी के निर्देशन में ‘छठ मां के आर्शीवाद’ नामक हिंदी फिल्म की घोषणा हुई थी। हिंदी फिल्मों में छठ
का प्रसंग नहीं आना हैरत में डालता है। यह कहीं न कहीं पिछड़ समाज की ग्रंथि ही है
कि इन प्रदेशों के फिल्मकारों ने भी कभी अपनी फिल्मों में छठ का प्रसंग नहीं
रखा।
छठ पर पूरी फीचर फिल्म निश्चित ही बड़ी कल्पना के
साथ बिहार के समाज और परिवार की संरचनात्मक गहरी समझ के बाद ही संभव है। फिर भी
जैसे पंजाब और गुजरात के फिल्मकारों ने करवा चौथ और गरबा को हिंदी फिल्मों में
पेश कर पूरे देश में पहुंचा दिया,वैसे इन इलाकों के फिल्मकार छठ के सांस्कृतिक
महत्व को अपनी फिल्मों में रेखांकित कर सकते हैं। अब तो छइ पारंपरिक इलाकों तक
सीमित नहीं रह गया है। यह देश के सभी प्रमुख शहरों में नदी,तालाब,कछार,झील और
समुद्र के घाट और तट पर आयोजित हो रहा है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि जन्छी ही कोई फिल्मकार इस दिशा में पहल करेगा और हिंदी
प्रदेश की सांसकृतिक परंपरा को गर्व के साथ फिल्म में परोसेगा।
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