फिल्म समीक्षा : सीक्रेट सुपरस्टार
फिल्म रिव्यू
सीक्रेट सुपरस्टार
जरूरी फिल्म
-अजय ब्रह्मात्मज
खूबसूरत,विचारोत्तेजक और भावपूर्ण फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ के लिए लेखक-निर्देशक
अद्वैत चंदन को बधाई। अगर फिल्म से आमिर खान जुड़े हो तो उनकी त्रुटिहीन कोशिशों
के कारण फिल्म का सारा क्रेडिट उन्हें दे दिया जाता है। निश्चित ही आमिर खान के
साथ काम करने का फायदा होता है। वे किसी अच्छे मेंटर की तरह निर्देशक की सोच को
अधिकतम संभावनाओं के साथ फलीभूत करते हैं। उनकी यह खूबी ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में भी छलकती है। उन्होंने
फिल्म को बहुत रोचक और मजेदार तरीके से पेश किया है। पर्दे पर उन्होंने अपनी
पॉपुलर छवि और धारणाओं का मजाक उड़ाया है। उनकी मौजूदगी फिल्म को रोशन करती
है,लेकिन वे जायरा वसीम की चमक फीकी नहीं पड़ने देते। ‘सीक्रेट सुपरस्आर’ एक पारिवारिक फिल्म है।
रुढि़यों में जी रहे देश के अधिकांश परिवारों की यह कहानी धीरे से मां-बेटी के ‘डटे रहने’ की कहानी बन जाती है। हमें
द्रवित करती है। आंखें नम होती हैं और बार-बार गला रुंध जाता है।
वडोदरा के निम्नमध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार की इंसिया
को गिटार बजाने का शौक है। वह लिखती,गुनगुनाती और गाती है। उसका सपना है कि वह
सिंग्रिग स्टार बने। मां उसके साथ हैं1 दिक्क्त पिता की है। खास तरह की सोच के
साथ पले-बढ़े पिता को अहसास ही नहीं है कि वह रुढि़वादी और कठोर है। वह पारंपरिक
पति और पिता की तरह बीवी-बेटी को नियंत्रण में रखना चाहता है। बेटे से उसे अलबत्ता
प्यार है। उसका लाढ़-दुलार बेटे तक ही सीमित रहता है। बीवी पर हाथ उठाना वह अपना
अधिकार समझता है। फिल्म की शुरूआत में वह गैरमौजूद है,लेकिन मां-बेटी की बातचीत
से हमें जानकारी मिल जाती है कि हम कैसे पति और पिता से मिलने वाले हैं?
मां-बेटी की मिली-जुली इस कहानी में तय करना मुश्किल
है कि कौन सुपरस्टार है? मां एक दायरे में पली है।
वह चाहती तो है,लेकिन हिम्मत नहीं कर पाती। बेटी हिम्मती है,लेकिन दायरे में
बंधी है। दोनों आपनी सोच,शौक और सुकून के पल निकाल ही लेते हैं। बेटी की संबल है मां
और मां की प्रेरणा है बेटी। दोनों अपनी परिस्थिति के शिकार हैं,लेकिन उनमें रत्ती
भी भी नकारात्मकता नहीं है। वे खुशी के रास्ते निकालती रहती हैं। लेखक को बधाई
देनी चाहिए कि अवसाद से घिरे इन किरदारों को उन्होंने उदास और व्यथित नहीं रख
है। वक्त पड़ने पर आने फैसलों से वे चौंकाती हैं। उम्मीद देती हैं।
इंसिया की भूमिका में जायरा वसीम की अदाकारी नैसर्गिक
है। जायरा ने इंसिया को उसकी मासूमिसत और जिद के साथ निभाया है। निर्देशक की सोच
में ढली जायरा इंसिया को साक्षात कर देती है। इंसिया के भाई और दोस्त के रूप में
आए कलाकार जीवंत हैं। दोस्त चिन्मय उम्दा किरदार है। उसे ऐसा ही कोई कलाकार
निभा पाता। मां की भूमिका में केहर विज उल्लेखनीय हैं। उनका किरदार एक दायरे में
ही रहता है,जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है। आमिर खान के क्या कहने? पृष्ठभूमि में रहते हुए भी वे शक्ति कुमार को जिस अंदाज में
पेश करते हैं...वह दर्शनीय है। इस फिल्म की खोज हैं राज अर्जुन। उन्होंने पिता
फारुख की भूमिका में खौफ पैदा किया है। उन्हें लेख-निर्देशक का भरपूर सपोर्ट मिला
है। पर्दे पर हो तो या नहीं हो तो भी उनसे खौफजदा बीवी-बेटी की वेदना सब कुछ कह
देती है। उम्मीद है फिल्म इंडस्ट्री उनकी प्रतिभा पर गौर करेगी।
अवधि- 150 मिनट
**** चार स्टार
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