दरअसल : 50 के पार अक्षय कुमार
दरअसल...
50
के पार अक्षय
कुमार
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले हफ्ते 9 सितंबर को अक्षय कुमार ने भी पचास पूरा
कर लिया। इस तरह वे खानत्रयी(आमिर,शाह रुख और सलमान) की जमात में शामिल हो गए।
हिंदी फिल्मों में अभिनेता की 50 की उम्र ज्यादा मायने नहीं रखती। अगर आप पॉपुलर
हैं तो उम्र कौन पूछता है? फिर तो किरदार की उम्र भी
नहीं देखी जाती। गौर करें तो कोई भी अभिनेता अपनी उम्र के किरदार को नहीं जी रहा
होता है। ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ में अक्षय कुमार ने अपनी उम्र 40 के आसपास बतायी थी,जो उनकी
वास्तविक उम्र से लगभग 10 साल कम है। इधर खानत्रयी भी अपनी फिल्मों में उम्रदराज
हुए हैं,लेकिन कोई भी अपनी उम्र नहीं निभा रहा है। ‘दंगल’ एक अपवाद है। दर्शकों को अधिक फर्क नहीं पड़ता। वे तो खुश
हैं।
अक्षय कुमार की पहली फिल्म प्रमोद चक्रवर्ती
निर्देशित ‘सौगंध’ 1991
में आई थी। 26 साल हो गए। इन 26 सालों में अक्षय कुमार ने असफलता के थपेड़े भी
झेले। एक दौर ऐसा भी आया कि उन्हें फलॉप फिल्मों के स्टार की संज्ञा दी गई।
लगातार 16 फिल्मों की असफलता भी अक्षय कुमार की हिम्मत नहीं तोड़ पाई। वे फिर से
चमके। पिछले पांच सालों में फिल्मों की विविधता से उन्होंने स्थापित कर दिया है
कि वे इस दौर के सबसे अधिक प्रयोगशील स्टार हैं। बतौर एक्टर और निर्माता फिल्मों
के उनके चुनाव में एक पैटर्न दिख सकता है। यह पैटर्न कंटेंट की प्रासंगिकता का है।
वे नए विषय चुन रहे हैं। उन्हें पूरी ईमानदारी से चरितार्थ कर रहे हैं। किसी भी
प्रकार के विावाद से दूर वे केवल अपनी फिल्मों और कुछ चैरिटी कार्यों में रुचि
लेते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो हिंदी फिल्मों के चालू लंद-फंद से उन्हें
कोई मतलब नहीं रहता।
मैंने खुद सुबह सात बजे भी उनका इंटरव्यू किया है।
अनुशासनप्रिय और समय के पाबंद अक्षय कुमार की सुबह सूरज उगने के पहले हो जाती है।
फिल्म इंडस्ट्री के ज्यादातर लोग जब आंखें मसलते हुए अंगड़ाइयां लेकर चाय की प्यालियों
की तरफ हाथ बढ़ा रहे होते हैं,तब तक अक्षय कुमार दिन भर की अपनी आधी बैठकें निबटा
चुके होते हैं। वे अक्सर कहते हैं कि एक्टर उन्नीस-बीस हो तो चलेगा,लेकिन आदमी
हमेशा बीस होना चाहिए और हमें हमेशा प्रोड्यूसर के हितों का खयाल रखना चाहिए। आप
की वजह से निर्माता को फालतू पैसे नहीं खर्च करने पड़ें। फिल्म समय पर पूरी होकर
रिलीज हो जाए तो निर्माता लगातार काम देते रहते हैं। उनकी यही भलमनसाहत फलॉप फिल्मों
के दौर में काम आई। वे कभी बेकार नहीं रहे। उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी कोई
भी फिल्म अप्रदर्शित नहीं बची है,जबकि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में पॉपुलर फिल्म
स्टारों की भी कई फिल्में उनकी बेरुखी की वजह से सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच सकी
हैं।
पिछले दिनों उनके एक आलोचक ने कहा कि अक्षय कुमार के
किरदारों में सिर्फ मूंछ होने ना होने का फर्क दिखता है। एक फिल्म में मूंछ रखते
हैं और दूसरी में साफ कर देते हैं। कभी बाल थोड़े छोटे कर लेते हैं तो कभी
क्रू(सैनिक) कट कर लेते हैं। उनके अभिनय में गहराई नहीं है। अक्षय कुमार ने अभिनय
का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने के बावजूद कभी दावा नहीं किया कि वे सधे अभिनेता
हैं। वे पूरी तरह से निर्देशक पर निर्भर रहते हैं। निर्देशक ही उन्हें नए-नए
किरदारों में ढालता है। मैंने देखा है कि वे अधिक रिर्सल भी नहीं करते। निर्देशक
अपनी भूमिका समझने के बाद वे सहज अंदाज में अपने संवादों को बोल देते हैं। अभिनय
की बारीकियों के संप्रेषण से अपरिचित अक्षय कुमार की खूबी सादगी और ईमानदारी है।
वे पर्दे पर जटिल किरदार निभाते नहीं मिलते। इस मामले में वे स्पष्ट हैं। वे
कहते हैं,’अपना काम दर्शकों को रोल से कन्विंस
करना है। वह मैं कर लेता हूं। दर्शक मुझे कामेंडी से लेकर एक्शन और सीरियस
भूमिकाओं में भी पसंद करने लगे हैं।‘
Comments