रोज़ाना : दर्शकों के दो छोर



रोज़ाना
दर्शकों के दो छोर
-अजय ब्रह्मात्‍मज
पिछले हफ्ते रिलीज हुई शुभ मंगल सावधान और बादशाहो के कलेक्‍शन पवर गौर करने के साथ देश के दर्शकों के दो छोरों को भी समझने की जरूरत है। पहली फिल्‍म बिल्‍कुल नए विषय पर है। हिंदी फिल्‍मों में ऐसे विषय वर्जित माने जाते हैं। पुरुषों के जेंट्स प्राब्‍लम पर आनंद एल राय और आर एस प्रसन्‍ना ने खूबसूरत और प्रेरक फिल्‍म बनाई। उम्‍मीद के बावजूद निर्माता-निर्देशक आश्‍वस्‍त नहीं थे कि उनकी फिल्‍में दर्शकों के बीच स्‍वीकृत होगी। फिल्‍म चली। सीमित बजट की सीमाओं में अच्‍छी चली। खुद निर्माता-निर्देशक हैरान हैं कि उन्‍होंने ऐसे प्रतिसाद के बारे में नहीं सोचा था। उन्‍हें और दूसरे निर्माताओं को हिम्‍मत मिली है कि वे आगे अपने साहस का विस्‍तार करें।
दूसरी तरफ बादशाहो है। आठनें दशक की थीम पर लगभग उसी समय की शैली में बनी इस फिल्‍म के प्रति निर्देशक और कलाकार निश्चित थे। उन्‍हें पूरा यकीन था कि बादशाहो दर्शकों को अच्‍छी लगेगी। समीक्षकों की भिन्‍न राय थी। इस फिल्‍म में हिंदी फिल्‍मों के घिसे-पिटे फामूले का इस्‍तेमाल किया गया था। नए दौर की फिल्‍मों में दृश्‍यों में तार्किकता रखी जाती है। उनमें कार्य-कारण संबंध का खयाल रखा जाता है। बादशाहो में निर्देशक ने परवाह नहीं की। अजय देवगन जैसे नई चेतना के अनुभवी अभिनेता भी दर्शकों के साथ गए। उन्‍होंने पूरे भरोसे के साथ निर्देशक का साथ दिया। नतीजा सभी के सामने है। बादशाहो उल्‍लेखनीय व्‍यवसाय कर रही है। उसे क्लिन हिट माना जा रहा है।
मिजाज और प्रस्तुति में दोनों फिल्‍में मिजाज और प्रस्‍तुति में भिन्‍न हैं। सामान्‍य भाषा में कहें तो पहली मल्‍टीप्‍लेक्‍स की फिल्‍म है और दूसरी सिंगल स्‍क्रीन की फिल्‍म है। कायदे से दोनों फिल्‍मों को उनके हिसाब से ही दर्शक मिलने चाहिए थे,लेकिन व्‍यवसाय के ट्रेंड का अध्ययन  करने वाले पंडितों के मुताबिक दोनों को मिश्रित दर्शक मिले हैं। शहरी दर्शकों ने भी बादशाहो पसंद की और छोटे शहरों के दर्शकों ने शुभ मंगल सावाधान को हाथोंहाथ लिया। वास्‍तव में भारतीय समाज में दर्शकों का स्‍पष्‍ट विभाजन नहीं किया जा सकता। किसी प्रकार के ट्रेड की भविष्‍यवाणी करना संभव नहीं है। दर्श्‍क्‍पिछले हफ्ते की तरह हमेशा ट्रेड पंडितों का चौंकाते रहे हैं। याद करे तो विकी डोनर और हेट स्‍टोरी भी एक ही तारीख को रिलीज हुई थीं और उन दोनों को भी दर्शकों ने पसंद किया था। कई बार निर्माता-निर्देशक रिलीज के समय अपनी फिल्‍मों को लेकर आशंकित रहते हैं। दर्शकों के बीच असमंजस नहीं रहता। ठीक चुनावों की तरह वे स्‍पष्‍ट रहते हैं कि इस बार उन्‍हें फलां फिल्‍म देखनी है या नहीं देखनी है? ट्रेड पंडितों के अनुमान को वे झुठला देते हैं।   

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