दरअसल : वेब सीरीज का दौर
दरअसल...
वेब सीरीज का दौर
-अजय ब्रह्मात्मज
चौदह साल पहले अमेरीका में बर्नी बर्न्स ने सबसे पहले
वेब सीरीज के बारे में सोचा। तब इस नाम का खयाल नहीं आया था। उन्होंने एक कॉमिकल
साइंस फिक्शन की कल्पना की,जिसमें रेड और ब्लू टीमों की टक्कर होती है। उन्होंने
इसे अपने वेब साइट रुस्टर टीथ से प्रसारीत किया। इसकी पॉपुलैरीटी ने टीवी और
सिनेमा में कार्यरत क्रिएटिव दिमागों को एक नई विधा से परीचित कराया। ये शो
इंटरनेट के जरीए अपनी सुविधा से देखे जा सकते थे। धीरे-धीरे वेब सीरीज का चलन
बढ़ा। अब तो नेट फिल्क्स और एमैजॉन जैसे इंटरनेशनल प्लेटफार्म आ गए हैं,जो
दुनिया भर के शो पूरी दुनिया में पहुंचा रहे हैं। यकीन करें ये शो सभी देशों में
प्रचलित टीवी और फिल्मों के दर्शक और बिजनेश ग्रस रहे हैं।
अपने देश में वेब सीरीज 12 सालों के बाद पहुंचा। इसने
देर से धमक दी,लेकिन देखते ही देखते इसका प्रसार दर्शकों और निर्देशकों के बीच
तेजी से हुआ। अभी जिसे देखो,वही वेब सीरीज के लेखन और निर्माण में संलग्न है। आम
चर्चा का विषय है वेब सीरीज। टीवी और फिल्मों के साथ वेब सीरीज की योजनाएं बन रही
हैं। छोटी-बड़ी कंपलनयां वेब सीरीज के लिए कहानियों आम्र लेखकों की तलाश में हैं।
समस्या यह है कि भारत में हर विधा की तरह इसमें भी एक हड़बड़ी दिखाई दे रही है।
कोई भी प्रोडक्शन हाउस उचित तैयारी और संभावनाओं के साथ नहीं आ रही है। टीवी और
फिल्म के कांसेप्ट वेब सीरीज में तब्दील किए जा रहे हैं। फिल्म नहीं बन पा रही
है तो उसी कहानी के टुकड़े कर वेब सीरीज में ढाल दिया जा रहा है। इधर नेट फिल्क्स
और एमैजॉन की पहल और रुचि से ओरीजिनल आइडिया भी आए हैं। लगभग हर कोई इन इंटरनेशनल
प्लेटफार्म पर आने को बेताब है।
माना जाता है कि देश में लगभी 40 करोड़ इंटरनेट यूजर
हैं। इनमें से अधिकांश ऑन लाइन रहते हैं। मुख्य रूप से शहरों के युवा समूह पारंपरीक
हिंदी फिल्मों और टीवी शो को दरकिनार कर वेब सीरीज को तरजीह दे रहे हैं। दो साल
पहले तक सब कुछ फ्री चल रहा था। अब वे उसी के लिए पैसे भी खर्च कर रहे हैं। एक रकम
देने के बाद उन्हें देश-विदेश के तमाम शो देखने के लिए मिल जाते हैं। इन दिनों
अधिकांश शहरी दर्शक वेब सीरीज की चर्चाओं में निमग्न मिलते हैं। कस्बों और छोटे
शहरों की महिलाएं टीवी सोप की कहानियां में डूबी रहती हैं। शहरी युवक-युवतियों का
प्रिय शगल ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’,’हाउस ऑफ कार्ड्स’ जैसे वेब सीरीज की खूबियों पर जिरह करना है।
गौर करें तो वेब सीरीज के दर्शक मुख्य रूप से शहरी
हैं। उनके पास अनलिमिटेड इंटनेट सुविधाएं हैं। वे कुछ सालों पहले से इंटरनेट सैवी
हो चुके हें। उनके सारे काम ऑन लाइन ही होते हैं। फुर्सत मिलते ही वे ऐसे शो देखने
लगते हैं। देखा जा रहा है कि शहरों के युवा दर्शक ‘पर्सनल
व्यूइंग’ अधिक एंज्वॉय कर रहे हैं। फिल्मों
की सामूहिक दर्शकता छीज रही है। यहां तक कि परीवार के सभी सदस्यों के साथ बैठ कर टीवी
देखने की आदत भी खत्म हो रही है। शहरों के परीवारो में एक से अधिक टीवी आने से
सभी अपने कमरे में कैद हो रहे हैं। स्मार्ट फोन की लोकप्रियता और इंटरनेट सेवाओं
के दर में आई कमी से भी इंटरनेट यूजर बढ़ रहे हैं।
दिक्कत यही है कि किसी प्रकार की पांबंदी और हदबंदी
नहीं रहने से ज्यादातर एडल्ट कंटेंट ही वेब सीरीज में आ रहे हैं। वेब सीरीज के
सिर्फ नाम ही देखें तो ये ज्यादातर अंग्रेजी में हैं। साथ ही उनमें सेक्स,रोमांस,विवाहेतर
संबंध जैसे विषय और शहरों के बेचैन युवा ही किरदार हैं। कोशिश है कि विदेशी कंटेंट
में भारतीय छौंक लगा कर पेश कर दिया जाए। देखना रोचक होगा कि 2018 में वेब सीरीज किस
रूप में विकसित और प्रचलित होगा। अब तो इसमें कुछ देसी प्लेयर भी अपनी पैठ बना
रहे हैं।
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