फिल्म समीक्षा : पोस्टर ब्वॉयज
फिल्म रिव्यू
पोस्टर ब्वॉयज
-अजय ब्रह्मात्मज
देओल बंधु में सनी देओल की फिल्में लगातार आ रही हैं।
बॉबी देओल लंबे विश्राम के बाद लौटे हैं। श्रेयस तलपड़े स्वयं भी इस फिल्म के एक
किरदार में हैं। स्वयंभी इसलिए कि वे ही फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं। उन्होंने
लेखन में बंटी राठौड़ और परितोष पेंटर की मदद ली है। 2014 में इसी नाम से इसी भीम
पर एक फिल्म मराठी में आई थी। थोड़ी फेरबदल और नऐ लतीफों के साथ अब यह हिंदी में
आई है।
कहते हैं यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है।
परिवार नियोजन के अंतर्गत नसबंदी अभियान में एक बार पोस्टर पर तीन ऐसे व्यक्तियों
की तस्वीरें छप गई थीं,जिन्होंने वास्तव में नसबंदी नहीं करवाई थी। उस सरकारी
भूल से उन व्यक्तियों की बदनामी के साथ मुसीबतें बढ़ गई थीं। इस फिल्म में जगावर
चौधरी(सनी देओल),विनय शर्मा(बॉबी देओल) और अर्जुन सिंह(श्रेयस तलपड़े) एक ही गांव
में रहते हैं। गांव के मेले में वे अपनी तस्वीरें खिंचवाते हैं। उन्हें नहीं
मालूम कि उन तस्वीरों को परिवार नियोजन विभाग के अधिकारी नसबंदी अभियान के एक
पोस्टर में इस्तेमाल कर लेते हैं। इस पोस्अर के छपते ही तीनों के निजी जीवन और
परिवारों में भारी हलचल हो जाती है। इसी हलचल को संभालने की कहानी है यह फिल्म।
श्रेयस तलपड़े ने फिल्म को कॉमिकल ढांचे में रखा है।
देओल बंधु अपनी छवियों से निकल कर साधारण किरदारों को निभाते हैं। श्रेयस ने उन्हें
सहज रखा है। सनी देओल की फिल्मों और मशहूर संवादों के रेफरेंस आते हैं। एक संवाद
में उन्हें धर्मेन्द्र का बेटा भी बताया जाता है। तात्कालिक लाभ और मजाक के लिए
लेखक-निर्देशक फिल्मों के लोकप्रिय रेफरेंस इस्तेमाल करते हैं। ऐसी फिल्में एक
समय के बाद मजेदार नहीं लगतीं,क्योंकि नए दर्शक उन फिल्मों और संवादों से वाकिफ
नहीं होते। यों आजकल फिल्म के दूरगामी र्शकों से अधिक सप्ताहांत के तीन दिनों की
चिंता रहती है। उन्हें भी कहां परवाह,चिंता और उम्मीद रहती है कि उनकी फिल्म क्लासिक
हो सकती है।
‘पोस्टर ब्वॉयज’ में देओल बंधुओं ने हंसोड़ किरदार को निभाने का पूरा यत्न
किया है। वे इस यत्न में सफल भी होते हैं। बस,उन्हें दृश्यों और प्रसंगों से
पूरा साथ नहीं मिलता। श्रेयस तलपड़े की इमेज पहले से हंसोड़ कलाकार की है। तीनों
मिल कर एक छोटी सी घटना को फिलम की समयावधि में खींचते हैं। यही कारण है कि कुछ
दृश्य ऊबाऊ और नीरस हो गए हैं। लतीफों को संवादों में बदलने की कोशिश कई बार
कारगर नहीं रहती। फिल्म के महिला चरित्रों के लिए फिल्म में कुछ खास नहीं है।
बॉबी देओल की बीवी की भूमिका निभा रही अभिनेत्री को अभिनय बाकी कलाकारों के सुर से
अलग और बेमेल है। लंबे समय के बाद रवि झांकल देसी अंदाज में मौजूद हैं।
फिल्म में संवादों की प्रचुरता है। हर किरदार हमेशा
कुछ न कुछ बता ही रहा होता है। मुमकिन है थिएटर के मशहूर लेखकों के सहयोग से
गैरइरादतन यह हो गया हो। दृश्य संरचना में भी रंगमंचीय असर जाहिर है। फिल्म में
गांव का नाम जंगेठी बताया गया है। राजस्थानी और हरियाणवी प्रभाव की मित्रित भाषा
बोलते किरदार अपनी रुचि और आदत के मुताबिक लहजा बदलते रहते हैं।
अवधि- 128 मिनट
*** तीन स्टार
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