फिल्म समीक्षा : जब हैरी मेट सेजल
फिल्म
रिव्यू
मुकम्मल
सफर
जब
हैरी मेट सेजल
-अजय
ब्रह्मात्मज
इम्तियाज
अली की फिल्मों का कथ्य इरशाद कामिल के शब्दों में व्यक्त होता है। उनकी हर
फिल्म में जो अव्यक्त और अस्पष्ट है,उसे इरशाद कामिल के गीतों में अभिव्यक्ति
और स्पष्टता मिलती है। फिल्मों में सगीत और दृश्यों के बीच पॉपुलर स्टारों की
मौजूदगी से गीत के बालों पर ध्यान नहीं जाता। हम दृश्यों और प्रसंगों में तालमेल
बिठा कर किरदारों को समझने की कोशिश करते रहते हैं,जबकि इरशाद इम्तियाज के अपेक्षित
भाव को शब्दों में रख चुके होते हैं। ‘जब हैरी मेट सेजल’ के पहले गीत में ही हरिन्दर सिंह नेहरा उर्फ हैरी अपने बारे
में कहता है ...
मैं
तो लमहों में जीता
चला
जा रहा हूं
मैं
कहां पे जा रहा हूं
कहां
हूं?
..............
...............
जब
से गांव से मैं शहर हुआ
इतना
कड़वा हो गया कि जहर हुआ
इधर का ही हूं ना उधर का रहा
सालों पहले पंजाब के गांवों से यूरोप पहुंचा हैरी
निहायत अकेला और यादों में जीता व्यक्ति है। कुछ है जो उसे लौटने नहीं दे रहा और
उसे लगातार खाली करता जा रहा है। उसका कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। लमहों में जी
रहे हैरी को वास्तव में खुद की और उस हमसफर की तलाश है,जो उसकी कमियों को खत्म
कर दे। उसे मुकम्मल करे और उसके साथ रहे। इम्तियाल अली की अन्य फिल्मों की तरह
पूर्णता की तलाश में आधे-अधूरे किरदारों का सफर ‘जब
हैरी मेट सेजल’ में भी जारी है। विपरीत सोच और जीवन
शैली के दो व्यक्तियों का परस्पर विकर्षण ही सोहबत से आकर्षण में बदलता है। वे
एक-दूसरे के पूरक बनते हैं। इम्तियाज अली ने इस बार उन्हें पंजाब का हैरी और
मुंबई की सेजल का नाम दिया है। उनके सफर के लिए यूरोप के छह देश चुने हैं। सुंदर
वादियों में वादों-विवादों के साथ वे निकट आते हैं। एक-दूसरे को महसूस करते हैं।
और फिर साथ होने का यत्न करते हैं।
भाव और कथ्य के स्तर पर किरदारों का यह सफर हमें
विचलित करता है। अपनी हरकतों और रवैयों से वे रोचक भी लगते हैं। दोनों का झुकाव
अनायास नहीं है। परिस्थितियों ऐसी बनती हैं कि वे करीब आते हैं। यों सेजल की पहल
और आक्रामकता बनावटी लगती है। वह अपनी कोशिशों से हैरी को जताना चाहती है कि वह
उसकी दूसरी चहेती लड़कियों की तरह हॉट और आकर्षक है। वह सफल भी होती है। इसके
बावजूद हैरी की नजर में वह कुछ अलग और गैरमामूली है,क्योंकि वह उसे समझने लगी है।
उसके छिपाए जख्मों को उसने देख लिया है। ‘जब हैरी मेट सेजल’ संयेग से हमसफर बने दो किरदारों की सेल्फ डिस्कवरी है। इस
डिस्कवरी में वे खुद बदलते हैं और दूसरे के बदलाव का कारण बनते हैं।
इम्तियाल अली की खूबी है कि वे अपनी कथा और किरदारों
के लिए नयनाभिरामी लोकेशन चुनते हैं। इस फिल्म में तो हम हैरी और सेजल के साथ छह
देशों की यात्रा करते हैं। वहां की गलियों ,कैफे और पब से परिचित होते हैं। उन
देशों और शहरों के बारे में हमें कुछ और जानकारियां भी मिलती है। इम्तियाज अली
गयाशुद्दीन उर्फ गैस के बहाने थोड़ी देर के लिए अपनी कहानी से अलग होते हैं। फिल्म
का यह गैरजरूरी हिस्सा लगता है। बहरहाल,कहानी फिर से हैरी और सेजल को लकर आगे
बढ़ती है।
शाह रूख खान पंजाब के हैरी और अनुष्का शर्मा मुंबई की
सेजल हैं। पंजाब की पृष्ठभूमि के हैरी जैसे अनेक किरदार हम ने हिंदी फिल्मों में
देखे हैं। की है। मुंबई की गुजराती लड़की सेजल बनाने के लिए अनुष्का शर्मा को
गुजराती लहजा दिया गया है। कुछ शब्दों के उच्चारण और लहजे में वह सचेत रहती हैं।
और कभी भूल भी जाती हैं। अगर सेजल सहज हिंदी बोलती तो क्या उसमें कोई कमी रह जाती? नहीं,बल्कि अनुष्का शर्मा अपने किरदार के प्रति अतिरिक्त
सावधान नहीं रहतीं। अधिक स्वाभाविक लगतीं। शाह रूख खान और अनुष्का शर्मा के बीच
की केमिस्ट्री वर्क करती है। दोनों अच्छे लगे हैं। उन्हें कुछ दृश्य भी मिले
हैं,जहां नाच-गाने और रेगुलर एक्टिविटी से ऊपर उठ कर अभिनय कौशल दिखाने का मौका
मिला है। उन दृश्यों में दोनों ने कमाल की दक्षता जाहिर की है। दिक्कत यही है कि
वे दृश्य टांके हुए लगते हैं। अगर पूरी फिल्म में उनके लिए ऐसे अवसर होते तो यह
फिल्म ज्यादा प्रभावित करती। और हां,हैरी अगर सफर में ही रहता तो अधिक वास्तविक
लगता।
फिल्म में गीत-संगीत की पर जोर है। इरशाद कामिल और
प्रीतम ने निर्देशक की मांग पूरी की है। इरशाद कामिल और इम्तियाज अली की जोड़ी
बेहतर गीतों पर ध्यान देती है। कुछ गीत अनावश्यक लगे हैं।
अवधि – 144 मिनट
*** तीन स्टार
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