रोज़ाना : नाखुश हैं फिल्मकार
रोज़ाना
नाखुश हैं फिल्मकार
-अजय ब्रह्मात्मज
फिल्म और टीवी डायरेक्टर्स के संगठन ‘इफ्तडा’ ने ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ को सीबीएफसी की तरफ से मिले
48 कट्स के मामले में विरोध दर्ज किया है। विरोध दर्ज करने के लिए उन्होंने ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर
के साथ संगठन के अन्य सदस्य भी हाजिर हुए। इनमें ‘उड़ता
पंजाब’ के डायरेक्टर अभिेषेक चौबे और ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ की डायरेक्टा अलंकृता
भीवास्तव भी थीं। सभी ने सीबीएफसी के साथ हुए अपने कड़वे अनुभवों को शेयर किया।
उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि पिछले तीन सालों में सूचना एवं प्रसारण
मंत्रालय के मंत्री बदल गए,लेकिन अध्यक्ष बने हुए हैं। उन्हें नहीं बदला जा रहा
है। उनके नेतृत्व में सीबीएफसी लगातार अपने फैसलों में नीचे की ओर जा रही है।
फिल्मकारों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एक खौफ का माहौल सा बन गया है,जिसमें
सर्टिफिकेशन के लिए फिल्म जमा करते समय निर्माता-निर्देशक डरे रहते हैं कि मालूम
नहीं क्या फरमान आए? और उन्हें और कितने चक्कर लगाने
पड़ें।
‘बामूमोशाय बंदूकबाज’ उत्तर भारत के ग्रामीण इलाके की फिल्म है। निर्देशक कुशाण
नंदी ने परिवेश और विषय के मुताबिक फिल्म के किरदार गढ़े हैं और उन्हें वैसी ही
भाषा दी है। परीक्षण समिति फिल्म देखने के बाद परीक्षण समिति ने कहा कि इसे एडल्ट
सर्टिफिकेट मिलेगा। इसकी लिस्ट दे दी गई,जिसमें बोलचाल की भाषा के आमफहम शब्द
भी थे। अगर किसी फिल्म को ‘ए’ यानी एडल्ट सर्टिफिकेट मिलता है तो उसे कट देने की जरूरत
नहीं होती। यहां परीक्षण समिति का तर्क था कि एडल्ट फिल्में बच्चे भी देखते
हैं। उनके कानों में ऐसे शब्द नहीं आने चाहिए। अब यह सिनेमाघर और स्थानीय लॉ एंड
आर्डर का काम देख रहे अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि एडल्ट फिल्मों में बच्चे
न आएं। भला सीबीएफसी के सदस्य यह तर्क कैसे दे सकते हैं? इतना ही नहीं निर्माता-निर्देशक को निर्णय सुनाते समय एक
महिला सदस्य ने निर्माता किरण श्रॉफ से पूछा कि महिला होकर आप ऐसी फिल्म कैसे
बना सकती हैं? अभी वह जवाब दें इसके पहले ही दूसरे
पुरुष सदस्य की टिप्पणी आई,यह महिला कहां हैं? इन्होंने
तो पैंट-शर्ट पहन रखी है। संबंधित अधिकारियों और सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति
ईरानी को ऐसी टिप्पणी का संज्ञान लेना चाहिए। और उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
इस विरोध सभा में भुक्तभेगी निर्देशकों ने स्पष्ट
कहा और माना कि सीबीएफसी का लापरवाह रवैया गैरजिम्मेदाराना है। उसके फैसलों से डर
और खौफ का माहौल बन रहा है। फिल्म में मुख्य किरदार निभा रहे नवाजुद्दीन
सिद्दीकी ने चुटकी ली कि अब अपराधी किरदार गोली चलाने के पहले कहेगा कि आइण्
जनाब,मैं आप को गोली मारूंगा। उसके मुंह से गाली नहीं निकलेगी। उन्होंने कहा कि
ऐसे माहौल में हम कलाकार कैसे किरदारों और परिवेश के हिसाब से लहजा लाएंगे। यही
बात सुधीर मिश्रा ने भी कही। उन्होंने बताया कि ‘हजारों
ख्वाहिशें ऐसी’ के समय सीबीएफसी के सदस्य कह रहे
थेकि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी नहीं लगाई थी। और अगर लगाई थी तो उनके नाम का जिक्र
न करें। तात्पर्य यह है कि यह मर्ज पुराना है। जो समय के साथ और गंभीर हो गया है।
अब राजनीतिक नेताओं के नाम और दूसरे अनेक शब्दों पर आपत्ति होने लगी है। उन्होंने
सुझाव दिया कि श्याम बेनेगल के नूतृत्व में बनी समिति के सुझावों का जल्दी से
जल्दी लागू कर दिया जाए।
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