फिल्म समीक्षा : कैदी बैंड
फिल्म रिव्यू
लांचिंग का दबाव
कैदी बैंड
-अजय ब्रह्मात्मज
‘दो दूनी चार’ के निर्देशक हबीब फैजल ने यशराज फिल्म्स की टीम में शामिल
होने के बाद ‘कैदी बैंड’ के रूप में तीसरी फिल्म निर्देशित की है। पहली फिल्म में
उन्होंने जो उम्मीदें जगाई थीं,वह लगातार छीजती गई है। इस बार उन्होंने अच्छी
तरह से निराश किया है। उनके ऊपर दो नए कलाकारों को पेश करने की जिम्मेदारी थी।
इसके पहले ‘इशकजादे’ में भी उन्होंने दो नए कलाकारों अर्जुन कपूर और परिणीति
चोपड़ा को इंट्रोड्यूस किया था। उत्तर भारत की पृष्छभूमि में बनी ‘इशकजादे’ ठीे-ठीक सी फिल्म रही थी। ‘दावत-ए-इश्क’ को वह नहीं संभाल पाए थे।
यशराज फिल्म्स के साथ तीसरी पेशकश में वे असफल रहे।
पहली जिज्ञासा यही है कि इस फिल्म का नाम कैदी बैंड
क्यो है? फिल्म में अंडरट्रायल कैदियों के
बैंड का नाम ‘सेनानी बैंड’ है। फिल्म का नाम सेनानी बैंड ही क्यों नहीं रखा गया? वैसे जलर महोदय सेनानी नाम के पीछे जो तर्क देते हैं,वह स्वतंत्रता
सेनानियों के महत्व को नजरअंदाज करता है। जेल से छूटने की आजादी की कोशिश में लगे
कैदियों को सेनानी कहना स्वतंत्रता सेनानियों का राजनीतिक दर्जा कम करना है। इसके
अलावा फिल्म में यह नहीं बताया जाता कि चित्रित सेंट्रल जेल किस शहर में है। देश
के सभी सेंट्रल जेल शहरों या खास नाम से जाने जाते हैं। इस फिलम की शुरुआत में
बताया जाता है कि उत्तर पूर्व के माछंग लालन 54 सालों तक अंडरट्रायल(विचाराधीन
कैदी) के रूप में कैद रहे। उनकी व्यथा और जेल में खर्च हुए समय की भरपाई नहीं हो
सकी। आज भी अनेक कारणों से हजारों कैदी भारतीय जेलों में बंद हैं और न्याय की उम्मीद
में दिन बिता रहे हैं। यों लगता है कि फिल्म अंडरट्रायल की गंभीर समस्या को
मुद्दा बनाएगी। ऐसा कुछ नहीं होता। यह संजू और बिंदू की प्रेमकहानी भर रह जाती है।
संजय(आदर जैन) और बिंदू(अन्या सिंह) अंडरट्रायल हैं।
निम्नमध्यवर्गीय परिवारों से आए दोनों के बात-व्यवहार में अपने वर्ग विशेष के
ल.ाण नहीं दिखते। वे हिंदी फिल्मों के आम नायक-नायिका की तरह बिहेव करते हैं। दो
नए कलाकारों की लांचिंग का दबाव है हबीब फैजल पर। इस दबाव के साथ यशराज फिल्म्स
के साथ लांच हो को गुमान नए कलाकारों को पर्दे पर सहज नहीं रहने देता। पहले फ्रेम
से ही वे हीरो-हीरोइन दिखने लगते हैं। वे अपने किरदारों का आत्मसात करने की कोशिश
ही नहीं करते। आदर जैन अपने ममेरे भाई रणवीर कपूर के भयंकर प्रभाव में हैं। लुक की
समानता तो है ही। अन्या सिंह में आत्मविश्वास है। उनमें संभावना है। फिल्म में
इंटरवल के पहले बने कैदी बैंड के दो महिला सदस्यों को अचानक गायब कर दिया जाता
है। एक लाइन में बता दिया जाता है कि एक का ट्रांसफर दूसरे जेल में हो गया और एक
को उसका दूतावास छुड़ा कर ले गया। ऐसा तो टीवी धारावाहिकों में होता है,जब किरदार
अचानक गायब हो जाते हैं।
फिल्म के प्रोडक्शन में कामचलाऊ रवैया अपनाया गया
है। जेंल का सेट हो या बाहर के दृश्य...हर जगह यह लापरवाही दिखती है। एक दृश्य
में तो दीवार पर मुख्य रूप से यशराज फिल्म्स के ही पोस्टर दिखाई देते हैं।
फिल्म की संवाद अदायगी में उच्चारण की अशुद्धता खटकतर है। सचिन ‘अंगड़ाइयां’ को ‘अंगड़ांइयां’ बोलते हैं और एक किरदार ‘पांच’ को ‘पान्च’ बोलता है। आनुनासिक शब्दों
के उच्चारण में आधे न् का उच्चारण आम हो गया है। ऐसा रोमन में लिखे संवादों की
वजह से हो रहा है,जिसमें पांच के लिए Paanch
लिखा जाता है
और अंग्रेजी पढ़ कर आए कलाकार N अपने उच्चारण में ले आते
हैं।
अवधि- 110 मिनट
**
दो स्टार
Comments
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'