रोज़ाना : बड़े पर्दे पर बाप-बेटी
रोज़ाना
बड़े पर्दे पर बाप-बेटी
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्मों और हिंदी समाज में बाप की छवि एक
निरंकुश की रही है। खास कर बेटियों के मामले में वे अधिक कठोर और निर्मम माने जाते
हैं। इधर बाप-बेटी के रिश्तों में थेड़ी अंतरंगता आई है,लेकिन अभी तक वह खुलापन
नहीं आया है। बेटियां आपने पिता से सीक्रेट शेयर करने में संकोच करती हैं। यों
हिंदी समाज की सोच और दायरे में में वे मां से भी अपने दिल की बातें छिपा जाती
हैं। बचपन से उन्हें उचित-अनुचित की ऐसी परिभाषाओं में पाला जाता है कि वे कथित
मर्यादा में दुबकी रहती हैं। फिर भी पिछले दशक में इस रिश्ते में आ रहे धीमे
बदलाव को महसूस किया जा सकता है।
हाल ही में एक फिल्म आई ‘बरेली की बर्फी’। इसमें हमें बाप-बेटी के
बीच का बदला हुआ प्यारा रिश्ता दिखा। बरेली के एकता नगर के नरोत्तम मिश्रा की
बेटी है बिट्टी। यह कहना सही नहीं होगा कि उन्होंने उसे बेटों की तरह पाला। फिल्म
के वॉयस ओवर में लेखक भी चूक गए। उन्होंने बिट्टी को नरोत्तम मिश्रा का बेटा
कहा,क्योंकि आदतन उन्हें बेटे की उम्मीद थी। बहरहाल,हम देखते हैं कि नरोत्तम
मिश्रा और बिट्टी के बीच अच्छी समझदारी है। वे बिट्टी के फैसलों का समर्थन करते
हैं। इसकी वजह से कई बार उन्हें मां की झिड़की सुनाई पड़ती है। आम घरों में भी
बाप यह उलाहना सुनते हैं ‘आप ही ने सिर चढ़ा रखा है।
बिगाड़ दिया है बेटी को’। नरोत्तम मिश्रा को फर्क
नहीं पड़ता कि वह किस के साथ बाइक पर बैठ कर जा रही है। या ऑफिस से निकलने के बाद
वह कहां जाती है? फिल्म की शुरुआत में ही डिब्बी
में सिगरेट नहीं मिलने पर वे बीवी सुशीला से कहते हैं कि बिट्टी से मांग लाओ। बीवी
चौंकती हैं तो वे सहज भाव से कहते है,’पीती है’।
हिंदी फिल्मों में बेटियों या महिला किरदारों को
आधुनिक और प्रगतिशील दिखाने के घिसे-पिटे टोटके हैं। उनमें सिगरेट और शराब पीना भी
है। ‘बरेली की बर्फी’ भी इस टोटके का इस्तेमाल करती है,लेकिन उसे सामान्य शौक की
तरह ही दिखाया गया है। बाप-बेटी के रिश्ते की तीव्रता हमें बेटी के साथ खड़े
नरोत्तम मिश्रा में दिखती है। पारंपरिक पिता की बेटी की शादी जैसी चिंताओं के
बावजूद वे बिट्टी पर कभी दबाव नहीं डालते। उसके दोस्तों का घर में स्वागत करते
हैं। उनके साथ बैठते हैं। उन्हें एंटरटेन करते हैं।
हिंदी फिल्मों में बाप-बेटी का यह रिश्ता दुर्लभ है।
इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद सोशल मीडिया पर बेटियां पोस्ट कर रही है...काश,उन्हें
भी नरोत्तम मिश्रा जैसे पिता मिलते? कहना नहीं होगा कि इस पिता
को पंकज त्रिपाठी बहुत बारीकी के साथ चरितार्थ किया है। बेटी कृति सैनन भी बराबर
सहयोग देती हैं।
Comments
कभी इस पर भी सोचिए चाहे सिनेमा हो या साहित्य बिना इन चीजों के शामिल किए बिना कभी उदारता क्यों नही दिखा पाते बातों और विचारों के ज़रिए खुलेपन पर बात हो सकती है। सिगरेट दारू या कई लोगो के साथ घूमने में कोई बुराई नहीं है पर लोग इसी को खुलापन मान बैठते हैं मुख्य बात को भूल जाते हैं।
इस पर अवश्य विचार करके एक लेख लिखें सर वैसे बरेली की बर्फी मुझे खूब स्वाद लगी।
सिनेमा का दीवाना