रोज़ाना : आयटम नंबर की लोकप्रियता
रोज़ाना
आयटम नंबर की लोकप्रियता
-अजय ब्रह्मात्मज
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डांस नंबर कहें या आयटम नंबर...दर्शकों की ललक हमेशा
ऐसे गीत-नृत्य की ओर रही है। नौटंकी के दिनों में भी यह परंपरा थी। नाटक के बीच
में राहत के लिए नर्तकियां के डांस नंबर और विदूषकों के हंसी-मजाक रखे जाते थे।
उन्हें ही हिंदी फिल्मों ने अपनाया। हंसी-मजाक यानी कामेडी के पैरेलल ट्रैक तो
अभी बंद हो गए हैं,लेकिन बाजार की जरूरत और खपत के कारण आयटम नंबर की मांग बड़ गई
है।
पहले साल में बमुश्किल दो-तीन फिल्मों में ही आयटम
नंबर होते थे। अभी उनकी मांग बढ़ गई है। ऐसा नहीं है कि केवल बी या सी ग्रेड की
फिल्मों में आयटम नंबर होते हैं। अभी तो ए ग्रेड की फिल्मों में भी आयटम नंबर
रखे जाते हैं। मेनस्ट्रीम की पॉपुलर हीरोइनें भी आयटम नंबर करने में नहीं
हिचकतीं। हां,मशहूर और अनुभवी निर्देशक की फिल्मों में आयटम नंबर के इस्तेमाल
में सौंदर्यबोध और सुरुचि का खयाल रखा जाता है। बाकी फिल्मों में ज्यादातर आयटम
नंबर दर्शकों की उत्तेजना के लिए होते हें। इन फिल्मों के निर्माता-निर्देशक
मानते हैं कि आयटम नंबर की वजह से उनके दर्शक बढ़ जाते हैं।
इन दिनों दस में से एक फिल्म में आयटम नंबर तो रहता
ही है। 2016 में लगभीग डेढ़ दर्जन फिल्मों में आयटम नंबर थे।आयटम नंबर के लिए सनी
लियोनी सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं। उसकी खास वजहें हें। शाह रुख खान की फिल्म ‘रईस’ में ‘लैला ओ लैला’ की धुनों पर नाचती सनी
लियोनी को देखने दर्शक आए। आजकल फिल्म के प्रमोशन में भी आयटम नंबर का इस्तेमाल
किया जाता है।
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