रोज़ाना : आजादी का पखवाड़ा
रोज़ाना
आजादी का पखवाड़ा
-अजय ब्रह्मात्मज
15 अगस्त तक चैनल और समाचार पत्रों में आजादी की धमक
मिलती रहेगी। मॉल और बाजार भी इंडपेंडेस सेल के प्रचार से भर जाएंगे। गली,नुक्कड़
और चौराहों पर तिरंगा लहराने लगेगा। आजादी का 70 वां साल है,इसलिए उमंग ज्यादा रहेगी।
जश्न होना भी चाहिए। आजाद देश के तौर पर हम ने चहुमुखी तरक्की की है। अभी और
ऊचाइयां हासिल करनी हैं। समृद्ध और विकसित देशों के करीब पहुंचना है। जरूरी है कि
हम आजादी का महत्व समझें और उसे के भावार्थ को जान-जन तक पहुंचाएं। बिल्कुल
जरूरी नहीं है कि दुश्मनों के होने पर ही देशहित और राष्ट्र की बातें की जाएं या
उन बातों के लिए एक दुश्मन चुन लिया जाए। अभी यह चलन बनता जा रहा है कि हम पड़ोसी
देशों की दुश्मनी के नाम पर ही राष्ट्र की बातें करते हैं। वास्तव में अपनी
कमियों से मुक्ति और आजादी की लड़ाई हमें लड़नी है। हर फ्रंट पर देश पिछड़ता और
फिसलता दिख रहा है। उसे रोकना है। विकास के रास्तों को सुगम करना है। परस्पर
सौहार्द और समझदारी के साथ आगे बढ़ना है। राजनीतिक दांव-पेंच में न फंस कर हमें
देश के हित में सोचना और कार्य करना होगा। सरकारें बदलती रहेंगी और उनके साथ
नीतियां भी बदलती रहेंगी। हमें चौकस रहना होगा। देखना होगा कि देश की लोकतांत्रिक
सोच पर आंच न आए। सृजन के क्षेत्र में कार्यरत संस्कृतिकर्मियों की अभिव्यक्ति
की आजादी बनी रहे।
फिल्मों की बात करें तो मामला गंभीर नजर आता है। आए
दिन सीबीएफसी के फैसलों की वजह से फिल्मों पर पाबंदियां लग रही है। उन्हें बेवजह
शब्दों को म्यूट करना पड़ रहा है और दृयों को छोटा या काटना पड़ रहा है। समाज यह
धारणा बन रही है कि फिल्मकार गैरजरूरी और अश्लील सामग्रियां ही परोसना चाहते
हैं। सीबीएफसी उन पर रोक लगा कर माज की शुचिता का बचाव कर रही है। ‘इंदु सरकार’ जैसी राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
की फिल्मों से राजनीतिक व्यक्तियों और नेताओं के नाम हटाने के निर्देश दिए गए
थे। कुछ फिल्में अभी तक कोर्ट के फैसलों का इंतजार कर रही हैं। सीबीएफसी कुछ
मामलों में कोर्ट के आदेशों की भी अवमानना कर रहा है। सभी हैरत में हैं। सत्तारूढ़
पार्टी के हिमायती भी सीबीएफसी के वर्तमान अध्यक्ष के प्रति सरकार का रवैया नहीं
समझ पा रहे हैं। उन्हें भी आश्चर्य होता है कि क्या सरकार को ऐसा एक योग्य व्यक्ति
नहीं मिल पर रहा है,जो पहलाज निहलानी को पदस्थापित कर सके। पिछलें दिनों सीबीएफसी
के सदस्यों ने एक फिल्म की महिला निर्माता के पहनावे को लेकर छींटाकशी करने की
धृष्टता की। यह मानसिकता आजादी की पहचान नहीं है। 70 सालों के बाद हम पीछे की तरफ
जा रहे हैं। उल्टे कदमों की यह राह हमें प्रगति की ओर नहीं ले जा सकती।
एक देश के तौर पर हमें सोचना होगा। हमें अभिव्यक्ति
के संकटों को खत्म करना होगा ताकि आजादी और आजादी की भावना बरकरार रहे। देश की
विविधता के मद्देनजर हर तरह के विचार को खिलने और निखरने का मौका मिले। आजादी के
पखवाड़े में दूरदर्शन और दूसरे चैनल आजादी की फिल्मों के प्रसारण से आजादी के जज्बे
को मजबूत बना सकते हैं। बता सकते हैं कि आज के संदर्भ में आजादी के मायने क्या
हैं? किन क्षेत्रों में किस स्तर पर अभी
आजादी बाकी है।
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