दरअसल : यंग एडल्ट के लिए फिल्में
दरअसल...
यंग एडल्ट के लिए फिल्में
-अजय ब्रह्मात्मज
‘बृजमोहन अमर रहे’,’अभी और अनु’,’आश्चर्यचकित’,’अज्जी’,’नोबलमैन’,’द म्यूजिक टीचर’,’कुछ भीगे अल्फाज’,’हामिद’... उन कुछ फिल्मों के नाम हैं,जो अगले महीने से हर महीने रिलीज
होंगी। योजना है कि दर्शकों तक ऐसी फिल्में आएं,जो कथ्य के स्तर पर गंभीर हैं।
कुछ कहना चाहती हैं। अच्छी बात है कि इन सारी फिल्मों की योजना 18 से 30 साल के
दर्शकों को धन में रख कर बनाई गई है। एक सर्वे के मुताबिक पहले दिन फिल्म देखने
आए दर्शकों में से 64 प्रतिशत की उम्र 24 साल से कू होती है। सिनेमाघरों में युवा
दर्शक जाते हैं। इस समूह के दर्शक विश्व सिनेमा से परिचित हैं। अगर उन्हें फिल्म
पसंद नहीं आती है तो बड़े से बड़े लोकप्रिय सितारों की भी फिल्में बाक्स आफिस पर
औंधे मुंह गिरती हैं।
ऊपर उल्लिखित सभी फिल्मों का निर्माण यूडली फिल्म्स
कर रही है। यूडली फिल्म्स मूल रूप से सारेगाम म्यूजिक कंपनी की नई फिल्म
निर्माण कंपनी है। एक अर्से की खामोशी के बाद फिल्म निर्माण में सारेगामा का
उतरना अच्छी खबर है। हिंदी फिल्में हमेश एण्क संक्राति से दूसरी संक्राति के
बीच रहती है। उसी के दरम्यान कुछ नया करने के उद्देश्य से कोई आता है।
विषय,प्रस्तुति और मनोरंजन की नई बयार दर्शकों को भी राहत देती है। उन्हें कुछ
नया मिलता है। ‘बाहुबली’ और ‘दंगल’ जैसी फिलमें रोजाना नहीं बन सकतीं। जरूरत है कि सीमित बजट और
मझोले स्टारडम के एक्टरों को लकर फिल्में आएं। दर्शकों को मनोरंजन मिले तो वे
ऐसी फिल्मों को सपोर्ट करते हैं। जैसे कि तमाम लोकप्रिय सितारों के बीच अभी ‘शुभ मंगल सावधान’ और ‘बरेली की बर्फी’ उम्मीद की हिलारें दे रही
हैं।
मनोरंजन के क्षेत्र में माना जा रहा है कि ‘यंग एडल्ट’(युवा वयस्क) को धन में रख
कर फिल्में नहीं बन रही हैं। मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा की खुराक से बड़े हुए
दर्शकों को पारंपरिक शैली में आ रही फार्मूला फिल्में अच्छी लगती हैं। वे उनसे
खुश हैं। बच्चों को टीवी से किड्स शो मिल जाते हैं। समस्या यंग एडल्ट की है।
हिंदी फिल्मों की प्लानिंग में यह समूह नदारद है,जबकि आज वही हिंदी फिल्मों का
पहला दर्शक है। यूडली फिल्म्स की कोशिश है कि इन दर्शकों की संवेदनाओं और अपेक्षाओं
की कहानी दिखाई जाए। तात्पर्य यह है कि उनकी सोच और जरूरतों को प्रमुखता दी जाए।
हिंदी सिनेमा के अभाव में वे तेजी से से ओटीटी कंटेंट(ओवर द टॉप कंटेंट) की ओर भाग
रहे हैं। ओटीटी कंटेंट में इंटरनेट के लिए निर्मित और जारी शोज आते हैं। एमेजॉन और
नेटफिल्क्स इस श्रेणी के बड़ प्लेयर के रूप में उभरे हैं।
कोशिश है कि युवा दर्शकों को ‘यूथ रियलिज्म’ की फिल्में दी जाएं। यूडली
फिल्म्स फिलहाल हर साल 12 से पंद्रह फिल्में बनाने की सोच रही है। सिनेमाघरों
में इन फिल्मों के आते ही अन्य प्रोडक्शन हाउस भी ऐसी फिल्मों की तैयारी
करेंगे। यों लग रहा है कि 2018 का नया ट्रेड युवा दर्शकों की फिल्में होंगी। ये
फिल्में अधिकतम दो घंटे की अवधि की होगी। भाषा की हदें तोड़ कर यह भी कोशिश की जा
रही है कि फिल्म के विरूाय और परिवेश के अनुरूप भाषा रखी जा और उसे सभी भाषाओं के
दर्शकों के बीच ले जाया जाए। हिंदी के दर्शकों के बीच तो लाया ही जाएं। वैसे भी ‘बाहुबली’ ने जता दिया है कि कंटेंट
दमदार हो तो भाषा दीवार नहीं बन सकती। संगीतप्रेमियों को इन फिल्मों के जरिए
सारेगामा के बैंक से पुरानी फिल्मों के गाने मूल या कवर के रूप में देखने-सुनने
को मिल सकते हैं।
युवा दर्शकों के लिए फिल्में बदलने को तैयार हैं।
उनकी रुचि और क्रय श्क्ति की वजह से ही यह बदलाव हो रहा है।
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