रोज़ाना : ’चक दे! इंडिया’ के दस साल
रोज़ाना
’चक दे! इंडिया’ के दस साल
-अजय ब्रह्मात्मज
यह 2007 की बात है। यशराज फिल्म्स ने एक साल पहले
कबीर खान निर्देशित ‘काबुल एक्सप्रेस’ का निर्माण किया था। फिल्म तो अधिक नहीं चली थी,लेकिन उसे
अच्छी तारीफ मिली थी। उन्हें लगा था कि प्रेकानियों से इतर फिल्में भी बनायी जा
सकती हैं। तब तक जयदीप साहनी यशराज की टीम में शामिल हो चुके थे। वे कुछ दिनों से
भारत की महिला हाकी टीम पर रिसर्च कर रहे थे। उन्होंने बातों-बातों में आदित्य
चोपड़ा को अपने विषय के बारे में बताया था। तब तक जयदीप साहनी ने तय नहीं किया था
कि वे किताब लिखंगे या फिल्म। आदित्य चोपड़ा के प्रोत्साहन ने जयदीप साहनी को
हौसला दिया। उन्होंने एक मुश्किल फिल्म लिखी। हालांकि फिल्म में शाह रूख खान
थे,लेकिन उनके साथ कोई एक हीरोइन नहीं बल्कि लड़कियों की जमात थी। उन लड़कियों को
लेकर उन्हें भारत की महिला हाकी टीम के कोच के रूप में ऐसी टीम तैयार करनी थी,जो
जीत कर लौटे।
यह आदित्य चोपड़ा की हिम्मत और शाह रूख खान का विश्वास
ही था कि लेखक जयदीप साहनी और निर्देशक शिमित अमीन भारत की एक यादगार फिल्म पूरी
की। यह फिल्म पसंद की गई और समय बीतने के साथ पिछले दस सालों में खेल पर बनी सबसे
रोचक फिल्म हो गई है। ‘चक दे! इंडिया’ राष्ट्रीय गर्व है। इस
फिल्म का शीर्षक गीत आज भी स्टेडियम और मैदानों में गूंजता है। खिलाडि़यों में
जोश भरता है और टीम इंडिया के रूप में खेल में विजयी होने की प्रेरणा देता है। ‘चक दे! इंडिया’ प्रमाण है कि कुछ फिल्में रिलीज के बाद दर्शकों के बीच बड़ी
होती हैं। दर्शक ही उन्हे पालते और बड़ी बना देते हैं।
‘चक दे! इंडिया’ कबीर खान के साथ उन
लड़कियों की भी कहानी है,जो टीम इंडिया के रूप में संगठित होती हैं। लक्ष्य हासिल
करती हैं। कबीर खान कभी भारतीय हाकी टीम के कप्तान हुआ करते थे। पाकिस्तान से
मैच हारने के बाद उन्हें बेइज्ज्त होना पड़ता है। सात सालों के बाद महिला हाकी
टीम के कोच के रूप में चुने जाने के बाद वे अपनी बेइज्जती को तारीफ में बदलने के
मकसद से जुट जाते हैं। पहली चुनौती सभी लड़कियों में टीम भावना पैदा करना और उन्हें
देश के लिए खेलने की प्रेरणा देना है। लड़कियां हाकी के अलावा सारे खेल खेलती हैं
और पर्सनल एजेंडा के तहत स्कोर बनाती हैं। उनमें टीम एनर्जी नहीं है। कबीर खान
उन्हें टीम के तौर पर तैयार करने के बाद मैदान में उतरते हैं। जीत हासिल होती है।
लेखक जयदीप साहनी और निर्देशक शिमित अमीन 10 अगस्त,2007
को रिलीज हुई ‘चक दे!
इंडिया’ की कामयाबी का श्रेय दर्शकों को
देते हैं। यह फिल्म दर्शकों में आशा का संचार करती है। खेल भावना के साथ राष्ट्रीय
भावना जगाती है। फिल्म का शीर्षक गीत ‘चक दे’ किसी उद्बोधन गीत की तरह झंकृत करता है।
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