दरअसल : पिछले 70 सालों की प्रतिनिधि 50 फिल्में
दरअसल...
पिछले 70 सालों की प्रतिनिधि 50 फिल्में
-अजय ब्रह्मात्मज
आजादी के 70 सालों में हिंदी सिनेमा ने प्रगति के साथ
विस्तार किया है। हर विधा में फिल्में बनी हैं। उन्हें दर्शकों ने पसंद किया।
कुछ फिल्में रिलीज के समय अधिक नहीं सराही गईं,लेकिन समय बीतने के साथ उनका महत्व
और प्रभाव बढ़ता गया। सात दशकों में हिंदी सिनेमा की अनेक उपलब्धियां हासिल कीं।
हालीवुड के बढ़ते प्रभाव के बावजूद हिंदी और अन्य भाषाओं की भारतीय फिल्में टिकी
हुई हैं। इसे बालीवुड नाम से भी संबोधित किया जाता है। हालांकि यह नाम हिंदी सिनेमा
के व्यापक परिप्रेक्ष्य को नहीं समेट पाता,फिर भी यह प्रचलित हो चुका है तो अधिक
गुरेज करने की जरूररत नहीं है। नाम कोई भी लें हिंदी सिनेमा की खास पहचान है। उसकी
विविधता अचंभित करती है। दर्शकों ने अपनी पसंद से हमेशा चौंकाया है।
आजीदी के 70 साल पूरे होने के मौके पर मैंने फेसबुक के
जरिए अपने पाठकों और परिचितों से उनकी पसंद की किसी एक फिल्म के बारे में पूछा
था। 500 से अधिक व्यक्तियों ने अपनी पसंद जाहिर की। 50 फिल्मों की यह सूची सिर्फ
उनकी पसंद के आधर पर तैयार की गई है। इस सूची में शामिल सभी फिल्मों को कम से कम
दो मत मिले हैं। कुछ फिल्मों की संस्तुति ज्यादा दर्शकों ने की। ‘मदर इंडिया’,’रंग दे बसंती’,’शोले’,दो बीघा जमीन’,’प्यासा’,’गाइड’,’ और ‘जागते रहो’ को 10 या उससे अधिक व्यक्तियों
ने पसंद किया। ‘प्यासा’ सर्वाधिक प्रिय फिल्म रही। उसे 24 व्यक्तियों का समर्थन
मिला। पूरी सूची पर नजर डालें तो पाएंगे कि पसंद में विविधता रही है। एक तर फ उन्होंने
‘शोले’ और ‘दबंग’ जैसी फिल्में पसंद कीं तो
दूसरी तर फ ‘गर्म हवा’ और ‘पिंजर’ को भी सूचीबद्ध करने में पीछे नहीं रहे।
दर्शकों की पसंद की सूची यहां पढ़ सकते हैं। देखें कि
इस सूची में से आ पे कितनी फिल्में देखी हैं। यह कोई मानक सूची नहीं है,लेकिन
इतना तो पता चलता है कि अभी के दर्शक क्या पसंद कर रहे हैं? ‘3 इडियट’,’अंकुर’,’बैंडिट क्वीन’,’बोर्डर’,’चक दे इंडिया’,’दो बीघा जमीन’,’दो आंखें बारह हाथ’,’गैंग्स ऑफ वासेपुर’,’गर्म हवा’,’गाइड’ ‘जागते रहो’,’क्रांति’,’लगान’,’मदर इंडिया’,’मुगलेआजम’,’प्यासा’,’पिंजर’,’पूरब और पश्चिम’,रंग दे बसंती’,’शोले’,’टॉयलेट एक प्रेम कथा’,’स्वदेस’,’तारे जमीं पर’,’तीसरी कसम’,’श्री 420’,’शहीद’,’सारांश’,’पीके’,’पान सिंह तोमर’,’निशांत’,’नदिया के पार’,’मृत्युदंड’,’कागज के फूल’,’मेरा नाम जोकर’,’मैं आजाद हूं’,’इंडियन’,’गुलामी’,’एक डाक्टर की मौत’,’ब्लैक फ्रायडे’,’बावर्ची’,’बंदिनी’,’बाहुबली’,’अलीगढ़’,’अमर प्रेम’,’भाग मिल्खा भाग’,’उपकार’,’दबंग’,’दंगल’, और ‘सत्यकाम’।
इस सर्वे में सभी उम्र के दर्शकों ने हिस्सा लिया।
सोयाल मीडिया पर पुरुष ज्यादा है,इसलिए उनका अनुपात ज्यादा रहा। मुझे लगता है कि
ऐसे सर्वे में लड़कियां हिस्सा लें तो फिल्मों की सूची बदल सकती है। मुझे आश्चर्य
हुआ कि ‘पीकू’ और ‘पिंक’ किसी की पसंद नहीं रही।
दूसरा आश्चर्य यह भी रहा कि ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ को पांच ने पसंद किया। ‘दिलवाले दुल्हिनया ले जाएंगे’ और ‘हम आप के है कौन’ भी दर्शकों की पसंद में शामिल नहीं हैं। करण जौहर की भी उन्होंने
उपेक्षा की,जबकि नीरज घेवन की ‘मसान’ को दर्शकों ने पसंद किया। मनोरंजन के लोकतंत्र में
पसंद-नापसंद की कसौटी अलग होती है। यह सूची यह भी संकेत देती है कि लंबे समय में
किस तरह की फिल्में दर्शकों की पसंद बनती हैं।
अगर आप ने इस सूची की कोई फिल्म नहीं देखी हो तो अवश्य
देखें। इसके साथ ही आप अपनी पसंद की फिल्म के बारे में हमें लिख भेजें। फिल्में
हमारे दैनंदिन जीवन का हिस्सा हैं। हम उनसे आनंदित होते हैं। कुछ सीखते-समझते
हैं। कई बार ‘जाने-अनजाने हम नायक-नायिका को अपने
जीवन में उतारना चाहते हैं। सिर्फ फैशन और स्टायल में ही नहीं। यह प्रभाव दर्शन
और जीवन शैली पर भी पड़ता है।
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