रोज़ाना : रिलीज तक व्‍यस्‍त रहते हैं निर्देशक



रोज़ाना
रिलीज तक व्‍यस्‍त रहते हैं निर्देशक
-अजय ब्रह्मात्‍मज
पिछले दिनों रणबीर कपूर के पिता ऋषि कपूर जग्‍गा जासूस के निर्देशक अनुराग बसु पर भड़के हुए थे। उन्‍होंने अनुराग बसु की लेट-लतीफी की खिंचाई की। बताया कि फिल्‍म की रिलीज के दो दिन पहले तक वे पोस्‍ट प्रोडक्‍शन में लगे हुए थे। उन्‍होंने फिल्‍म किसी को नहीं दिखाई। और फिल्‍म रिलीज हुई तो ऋषि कपूर समेत कई दर्शकों को पसंद नहीं आई। ऋषि कपूर की शिकायत का आशय यह था कि अगर वक्‍त रहते शुभचिंतक फिल्‍म देख लेते तो वे आवश्‍यक सुधार की सलाह देते। तब शायद फिल्‍म की ऐसी आलोचना नहीं होती। कहना मुश्किल है कि क्‍या होता? अगर रिलीज के पहले दिखा और ठोक-बजा कर रिलीज की सारी फिल्‍में सफल होतीं तो ऋषि कपूर की कोई भी फिल्‍म फ्लॉप नहीं हुई होती। फिल्‍मों की सफलता-असफलता बिल्‍कुल अलग मसला है। उस मसले से इतर यह आज की सच्‍चाई है कि तकनीकी सुविधाओं के चलते निर्देशक और उनकी तकनीकी टीम अंतिक क्षणों तक फिल्‍म में तब्‍दीलियां करती रहती हैं। उनकी यही मंशा रहती है कि कोई कमी या कसर ना रह जाए।
मुमकिन है इससे फिल्‍म को संवारने में मदद मिलती हो। फिलम को अंतिम रूप देने के पहले निर्देशक सब कुछ ठीक कर लेना चाहते हैं। यह लगभग किसी पार्टी या अवसर के लिए सजने के समान है। आप आईने के सामने खड़ी हो जाती हैं और अपनी एक-एक लट या साड़ी की चुनट ठीक करने लगती हैं। चेहरे पर लिपस्टिक से लेकर बिंदी और अन्‍य मेकअप ठीक करने लगती हैं। आईने के सामने से हटने का मन नहीं करता और इवेंट के लिए देर हो रही होती है। या फिर किसी यात्रा पर निकलने के पहले अंतिम समय में पैकिंग करते हैं और हड़बड़ी में सूटकेश बंद नहीं होता। यकीन मानें फिल्‍मों की रिलीज के पहले का असमंजस इनसे कई गुना बड़ा होता है। निर्देशक चाहता है कि वह मुकममल फिल्‍म पेश करे। इस कोशिश में ज्‍यादातर निर्देशक अपने फिल्‍म के प्रचार से हाथ खींच लेते हैं। उन्‍हें लगता है कि मीडिया और दर्शक का इंटरेस्‍ट तो स्‍टार में रहता है। अगर स्‍टार इंटरव्‍यू दे रहे हैं तो उसका काम हो रहा है। फिल्‍म प्रचारित हो रही है। सच्‍चाई और प्रभाव इससे अलग है।
किसी भी फिल्‍म के बारे में लेखक और निर्देशक ही सबसे ज्‍यादा विस्‍तार से बता सकते हैं। वे फिल्‍म के विषय और संदर्भ के बारे में बता सकते हैं। स्‍टार आने रोल के बारे में बता सकते हैं,लेकिन उनकी नकेल कसी रहती है। उन्‍हें हिदायत रहती है कि वे कुछ ऐसा न बता जाएं कि फिल्‍म की कहानी पता चल जाए। इस संकोच में पूरे इंटरव्‍यू मीडियाकर्मी को टहला रहे होते हैं। अब चूंकि मीडिसकर्मी भी अनुभवों से जान गए हैं कि स्‍टार कुछ बताएगा नहीं तो वे भी टहलते रहते हैं। ऐसे इंटरव्‍यू एंटअेन तो करते हैं,लेकिन फिल्‍म के बारे में नहीं बताते। वे फिल्‍म का दर्शक नहीं तैयार करते।
मेरा मानना है कि केवल लेखक और निर्देशक ही फिल्‍म के बारे में संदर्भगत जानकारी दे सकते हैं। उन्‍हें आगे आना चाहिए। समय निकालना चाहिए। रिलीज के दो हफते पहले से खुद को खाली रखना चाहिए। वर्ना वही होता है जल्‍दबाजी में मांग के बदले कनपटटी में सिंदूर डाल दिया जाता है।

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