रोज़ाना : नए मिजाज की फिल्‍म!



रोज़ाना
नए मिजाज की फिल्‍म!
-अजय ब्रह्मात्‍मज

अनुराग बसु की जग्‍गा जासूस रिलीज हो चुकी है। हिंदी फिल्‍मों के पारंपरिक दर्शकों और कुछ समीक्षकों ने इसे नापसंद किया है। यह फिल्‍म कुछ दर्शकों और बहुत कम समीक्षकों को पसंद आई है। मुझे लगता है कि नापसंदगी की एक बड़ी वजह फिल्‍म को सही संदर्भ में नहीं समझ पाना है। यह भी हो सकता है कि रणबीर कपूर और कट्रीना कैफ से वे किसी और तरह की फिल्‍म उम्‍मीद कर रहे हों और उन्‍हें उत्‍तेज‍क रोमांटिक दृश्‍यों में नहीं देख कर उन्‍हें निराशा हुई हो। हिंदी फिल्‍मों की एक सामान्‍य सीमा तो यही है कि हर तरह की फिल्‍म में रोमांस और खुलेआम रोमांस की जरूरत पड़ती है। नए निर्देशक हिंदी फिल्‍मों की इस सीमा से जूझ रहे हैं। ने रोमांस और प्रेम कहानियों से निकलना चाह रहे हैं। वे घिसे‍-पिटे दृश्‍यों और किरदारों से उकता चुके हैं। कमी नए निर्देशकों में भी है। वे अपनी परंपरा को अपनी जरूरतों के हिसाब से साध नहीं पर रहे हैं। उनके और दर्शकों के बीच फांक रह जाती है।
जग्‍गा जासूस एक बेहतरीन फिल्‍म है। शैली और शिल्‍प के स्‍तर पर यह मुग्‍ध करती है। अनुराग बसु ने अपनी फिल्‍म के लिए बिल्‍कुल नई शैली चुनी है। उन्‍होंने इसे म्‍यूजिकल फार्मेट में रखा है। हिंदी फिल्‍मों में गीत-संगीत के प्रयोग की म्‍यूजिकल परिभाषा सेजग्‍गा जासूस अलग है। अनुराग बसु ने संगीत निर्देशक प्रीतम से फिल्‍म लिखवाई है। उसे सांगीतिक बनाया है। इस फिल्‍म में छंद और लय है। हमें सामान्‍य दृश्‍यों और संवदों की आदत हो गई है,जहां सब कुछ स्‍पष्‍ट शब्‍दों और मुद्राओं में बयान कर दिया जाता है। यह फिल्‍म दर्शकों की कल्‍पना को उड़ान देती है। उन्‍हें अपने अर्थ खोजने के लिए उकसाती है। बाल और किशोर दर्शक इस फिल्‍म को देख कर आनंदित होंगे। मुझे लगता है कि समय बीतने के साथ इस फिल्‍म की सार्थकता बढ़ेगी। मैं इसे पूरी तरह से निर्दोष फिल्‍म नहीं कह सकता। कुछ कमियां हैं,लेकिन वे नए प्रयोग की कमियां हैं। अपरिचित राह और शैली में भूल और भटकाव मुमकिन है।
ऐसी फिल्‍मों को समुचित दर्शक नहीं मिल पाने का एक बड़ा कारण निर्देशकों और कलाकारों का प्रमाद भी है। जब भी प्रयोगात्‍मक फिल्‍में आती हैं और निर्देशक उसके बारे में कायदे से नहीं बतरते हैं तो दर्शक उचट जाते हैं। उन्‍हें पहले से फिल्‍म का संदर्भ और परिवेश मालूम हो तो वे फिल्‍म का सही व अधिक आनंद ले सकते हैं। दिबाकर बनर्जी,अनुराग कश्‍यप,राकेश ओमप्रकाश मेहरा से ऐसी भूलें हुई हैं। इस बार अनुराग बसु चूक गए। इन निर्देशकों को अपनी फिल्‍मों के बारे में विस्‍तार से बताना चाहिए। दर्शकों को मानसिक तरीके से तैयार करना चाहिए। फिल्‍म प्रचार के पुराने तरीके से लए मिजाज की फिल्‍मों के लिए दर्शक नहीं जुआ सकते। जग्‍गा जासूस की प्रचार रणनीति में दिक्‍कतें थीं। अनुराग बसु और रणबीर कपूर ने जग्‍गा जासूस की विशेषताओं और अनोखेपन के बारे में ढंग से नहीं बताया था।

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