रोज़ाना : पूरी हो गई मंटो की शूटिंग



22 जुलाई,2017
रोज़ाना
पूरी हो गई मंटो की शूटिंग
-अजय ब्रह्मात्‍मज
नंदिता दास ने मंटो की शूटिंग पूरी कर ली। अब वह एडीटिंग में जुटेंगी। खुशखबर का यह एक रोचक पड़ाव है। फिल्‍म पूरी होने और रिलीज होने के पहले ऐसे अनेक पड़ावों से गुजरना पड़ता है। मंटो जैसी फिल्‍म हो तो हर पड़ाव के बाद आगे का मोड अनिश्चित दिशा में होता है। अंदाजा नहीं रहता कि सब कुछ ठीक तरीके से आगे बढ़ रहा है या रास्‍ते में कहीं भटक गए और फिल्‍म रिलीज तक नहीं पहुंच सकी। इन आशंकाओं में समाज और सिनेमा के कथित ठेकेदार भी होते हैं,जो आपत्तियों की लाठी भंजते रहते हैं। उन्‍हें हर प्रकार की क्रिएटिविटी से दिक्‍कत होती है। नंदिता दास संवेदनशील और जागरूक अभिनेत्री व निर्देशक हैं। अभी का समाज जागरुकों से कुछ ज्‍यादा ही खफा है। बहराहाल,शूटिंग पूरी होने की शुभकामनाओं के साथ नंदिता दास को बधाइयां कि वह ऐसे वक्‍त में मंटो को लेकर आ रही हैं,जो भीतरी तौर पर पार्टीशन के मरोड़ से गुजर रहा है। संदेह का धुंआ उठता है और हर छवि धुंधली हो जाती है। आकृतियां लोप होने लगती हैं। केवल शोर सुनाई पड़ता है। एक भीड़ होती है,जो सूजन और सामयिक सोच के खिलाफ चिल्‍ला रही होती है। लुंचन कर रही होती है।
मंटो पर बन रही नंदिता दास की फिल्‍म की शूटिंग का पूरा होना इसलिए खुश खबर है कि इसके पहले के प्रयासों में निर्देशकों को शूटिंग करने तक का मौका नहीं मिल पाया। मेरी जानकारी में तीन योजनाएं बनीं और फ्लोर पर जाने के पहले ही रद्द कर दी गईं। कभी बजट तो कभी कलाकार और सबसे बड़ा यह असमंजस कि क्‍या दर्शक विवादास्‍पद और विरोधाभासी लेखक सआदत हसन मंटो को बड़े पर्दे पर देखना चाहेंगे। मंटो ने खूब लिखा है। अपने समकालीनों पर भी लिखा है। मंटो पर भी लिखा गया है। सभी ने अपने तरीके से मुटो को समझने की कोशिश की है। मंटो की ऐसी कोई मुकम्‍मल छवि नहीं है,जिससे सभी सहमत हों। इस अंतर्विरोध के बावजूद इस तथ्‍य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मंटो ने अपने वक्‍त के जख्‍मों को कुरेदा और हरा रखा। उन्‍होंने मरहम लगाने की कोशिश नहीं की। उनके इस रवैए से तब की सत्‍ता खफा रही है और आज भी अनेक नाखुश हैं। एक सच्‍चाई यह भी है कि मंटो के बारे में सभी बातें करते हैं,लेकिन उन्‍हें पढ़ते नहीं हैं। जो पढ़ते हैं,वे मंटो की सोच नहीं अपनाते। सृजन के अन्‍य क्ष्‍ेत्रों में भी यही प्रवृति चल रही है। नाम चलाते रहो,काम दरकिनार कर दो।
नंदिता दास ने मंटो के भारत से पाकिस्‍तान जाने से लेकर लाहौर में बीती उनकी बाकी जिंदगी को अपनी फिल्‍म में समेटा है। इन सालों में मंटो सबसे अधिक व्‍यथित,विचलित और व्‍यग्र थे। नंदिता दास की फिल्‍म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी मंटो को पर्दे पर उतार रहे हैं। हमें पार्टीशन के दौर की एक बेहतरीन फिल्‍म का इंतजार है। फिल्‍मों में इस दौर को हमेशा नजरअंदाज किया गया।

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को