रोज़ाना : मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्म
रोज़ाना
मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्म
-अजय ब्रह्मात्मज
किसी राजनीतिक व्यक्ति की जिंदगी फिल्म का रोचक हिस्सा
हो सकती है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री की चुप्पी के इतने किस्से हैं। विरोधी
पार्टियों और आलोचकों ने उन पर फब्तियां कसीं। उन्हें ‘मौनमोहन’ जैसे नाम दिए गए। मीडिया
में उनका मखौल उड़ाया गया,फिर भी एक अर्थशास्त्री के रूप में उनके योगदार को भारत
नहीं भुला सकता। आर्थिक उदारीकरण से लेकर विश्वव्यापी मंदी के दिनों में भी उन्होंने
अपनी अर्थ नीतियों से विकासशील देश को बचाया। आर्थिक प्रगति की राह दिखाई। 2004 से
2008 तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजॉय बारू ने मनामोहन के व्यक्तित्व पर संस्मरणात्मक
पुस्तक लिखी थी। 2014 में प्रकाशित इस पुस्तक का नाम ‘द एक्सीडेटल प्राइममिनिस्टर - द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ
मनमाहन सिंह’ है। इस पुस्तक के प्रकाशन के समय
ही विवाद हुआ था। दरअसल,दृष्टिकोण और व्याख्या से तथ्यों की धारणाएं बदल जाती
हैं। कई बार ऐसी किताबों की व्याख्या से प्रचलित धारणाओं की पुष्टि कर देती है।
अब इसी पुस्तक पर एक फिल्म बनने जा रही है। इस फिल्म
में अनुपम खेर भूतपूर्व प्रधानमंत्री की भूमिका निभाएंगे। संजॉय बारू की संस्मरणात्मक
किताब का फिल्मीकरण हंसल मेहता ने किया है। हंसल मेहता हिंदी फिल्मों के सफल
निर्देशक हैं। उन्होंने ‘शाहिद’ और ‘अलीगढ़’ दो बॉयोपिक निर्देशित किए हैं। अभी वे नेताजी सुभाष चंद्र
बोस पर बन रहे एक शो से भी जुड़ हैं। तात्पर्य यह कि जीवनी और बॉयोपिक में
सिद्धहस्त हंसल मेहता ने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है। फिल्म का निर्देशन विजय
रत्नाकर गुट्टे करेंगे। इस फिल्म से वे निर्देशन में कदम रख रहे हैं। फिल्म के
निर्माता बोहरा ब्रदर्स हैं। साथ में सहनिर्माता अशोक पंडित हैं। अशोक पंडित अपने
भाजपा और हिंदूवादी बयानों के लिए विख्यात हैं। फिल्म से जुड़े क्रिएटिव व्यक्तियों
में कुछ घनघोर भाजपा समर्थक हैं तो स्क्रिप्ट लेखक हंसल मेहता बिल्कुल भाजपा
विरोधी हैं। अभी नहीं कहा जा सकता कि फिल्म मूल किताब से कितनी अलग और नाटकीय
होगी। मूल किताब विवादास्पद रही है। इससे कांग्रेस का राजनीतिक शर्मिंदगी झेलनी
पड़ी थी। माना जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेसविरोधी लहर बढ़ाने में
पुस्तक ने मदद की थी।
योजना के मुताबिक ‘द एक्सीडेटन प्राइममिनिस्टर’ अगले साल दिसंबर 2018 में रिलीज होगी। उसके कुछ महीनों के
बाद फिर से लोकसभा चुनाव होंगे। एक मान्यता यह है कि इस फिल्म से मूल किताब के
प्रभाव को दोहराने की कोशिश होगी। निश्चित ही ऐसी फिल्मों का बनना और रिलीज होना
हिंदी फिल्मों के लिए साहसिक काम है। फिल्में तो नेहरू अमूमन फिल्मकार समकालीन या निकट अतीत की
राजनतिक हस्तियों पर फिल्में बनाने से कतराते हैं। उन्हें व्यर्थ के विवाद की
वजह से फिल्म के अटक जाने का डर रहता है।
‘द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’ का इंतजार रहेगा।
Comments