पवन श्रीवास्तव की 'लाइफ ऑफ़ एन आउटकास्ट'
भारत में इंडी सिनेमा
,अब पहले के मुकाबले अधिक मज़बूत हुआ है .बेहतर कहानी ,बिना किसी दबाव के कहने की चाहत
रखने वाले तमाम फिल्ममेकर्स इंडी सिनेमा के माध्यम से अपनी कहानियां, दर्शकों तक पहुंचा
पाने में सफल हो रहे हैं .भारत में बनने वाला बहुसंख्यक इंडी सिनेमा, शहरी कहानियों
और शहर के दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाया जाता है . गांव अभी भी इंडी सिनेमा की
कहानियों में जगह कम बना पा रहे हैं .असल मायने में सिनेमा स्वतंत्र और लोकतांत्रिक
तभी हो पायेगा जब हर भौगोलिक क्षेत्र से बहुतायत में कहानियां ,पर्दे पर आना शुरू हों,
उनका अपना दर्शक वर्ग हो .
इस कोशिश में स्टूडियो
सर्वहारा ,दलित मुद्दे पर केंद्रित फिल्म ”लाइफ ऑफ़ एन आउटकास्ट” बना रहा है . पवन श्रीवास्तव
इस फिल्म के निर्देशक हैं .उत्तर प्रदेश के दलित व्यक्ति के जीवन के तीस साल को इस
फिल्म में दिखाया गया है . इस फिल्म का शूट पूरा किया जा चुका है . ये फिल्म अभी पोस्ट
प्रोडक्शन फेज़ में है .फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन को पूरा करने के लिए स्टूडियो सर्वहारा
ने मजदूर दिवस के दिन ,क्राउड फंडिंग कैंपेन की शुरुआत की थी .इस फिल्म को दस भाषाओं
में सबटायटल और रिलीज से पहले पांच सौ गांव में स्क्रीन किया जायेगा .
इंडी सिनेमा को
बनाने की प्रक्रिया काफी चुनौतीपूर्ण और रोमांचक होती है .बजट की बुनियादी समस्या प्री
प्रोडक्शन से लेकर फिल्म को दर्शकों तक पहुंचा पाने में आती रहती है . फिल्म बनाना
,डिजिटल समय में भी काफी खर्चीली कला है .इस वजह से कास्टिंग, मेकअप, कॉस्ट्यूम, कैमरा,
साउंड जैसी चीज़ों को करने के लिए गैरपारंपरिक तरीकों के साथ ही कला को जनवादी मानने
वाले कलाकारों को साथ में जोड़ लेना बहुत जरुरी हो जाता है .
”लाइफ ऑफ़ एन आउटकास्ट”
की शूटिंग एक गांव में हुयी है . इंडी सिनेमा बिना सहयोग के शूट कर पाना मुमकिन नहीं
होता .हमने रेकी के दौरान से ही गांव के लोगों को फिल्म से जोड़ना शुरू कर दिया. उनके
बहुत सारे सवाल थे, उन्हें विश्वाश नहीं हो रहा था कि, गांव में सिनेमा कैसे बन सकता
है .एक तरह का काम्प्लेक्स उनके भीतर था . हमने उन्हें फिल्म की कहानी ,सिनेमा का गांव
में नहीं बनना ,गांव के पात्र या कहानियां सिनेमा में क्यों नहीं नज़र आते हैं ,गांव
के लोगों को हमारी मदद क्यों करनी चाहिए, जैसे विषयों पर बात किया , और उन्हें सहयोग
के लिए राज़ी कर लिया .
इस फिल्म के लाइन
प्रोडूसर, शूट कॉर्डिनेटर, कुछ आर्टिस्ट गांव से हैं . सिनेमा टेलीविज़न के माध्यम से
इन सभी लोगों तक पहुंचा था ,पर पहली बार प्रोडक्शन के स्तर पर ये सभी लोग शामिल हुए
थे . राधिका, इस फिल्म की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर हैं . फिल्म में दलित व्यक्ति के जीवन के तीस साल के
सफर को दिखाया गया है।सिनेमा में इस तरह की कहानियों को कहने के लिए कॉस्ट्यूम एक बहुत
महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।हमारी फिल्म के करैक्टर ग्रामीण परिवेश के हैं।तीस साल
में कपड़ों के ट्रेंड में बहुत बदलाव आता है। बजट को ध्यान में रखते हुए कॉस्ट्यूम का
काम करना काफी मुश्किल था .
राधिका ने गांव
के लोगों से बात करना शुरू किया। उन्हें फिल्म के बारे में बताया, फिल्म में कॉस्ट्यूम इतना क्यों जरूरी
है, इसके बारे में बताया। राधिका ने बात करके हर पीरियड के पहनावे को बरीखी से समझा।
महिलाओं से मेकअप में आये बदलाव को समझा। सभी को विश्वाश में लेने के बाद ,गांव के लोगों से कॉस्ट्यूम लेना शुरू किया .
क्राउड फंडिंग कैंपेन,
इमोशनल जर्नी जैसा होता है. बहुत सारे नए रिश्ते बनते हैं, अनजान लोग फिल्म के बारे
में पूरी जिम्मेदारी ले लेने का अहसास कराते हैं . पुराने या रोज मिलने वाले लोग सपोर्ट
नहीं कर पाते तो दुःख भी होता है . किसी दिन बहुत अच्छा सपोर्ट मिलता है और किसी दिन
मन मुताबिक नहीं होता .यही इस कैंपेन की सुंदरता भी है, कुछ भी इस कैंपेन में निश्चित
नहीं रहता .
क्राउड फंडिंग कैंपेन,
अमूमन फंडिंग वेबसाइट या सोशल मीडिया पर चलाया जाता है .हम इसमें प्रयोग कर रहे हैं
. इसी प्रक्रिया में स्टूडियो सर्वहारा और बैचलर्स किचन के विनीत कुमार ने मिल कर
“सिनेमा वाया बैचलर्स किचन” नाम का इवेंट शुरू किया है . इसके पीछे मकसद है ,आप खायेंगे
तो हम सिनेमा बनायेंगे .इवेंट में बैचलर अपनी किचन में खाना बनाएगा ,आने वाले अतिथियों
को फिल्म के क्राउड फंडिंग में सहयोग करना होगा . विनीत ,बीते रविवार को इस कड़ी का
पहला इवेंट कर चुके हैं . आने वाले दिनों में बैचलर्स, सिनेमा के लिए, अपने किचन में
खाना बनायेंगे. इंडी सिनेमा और क्राउड फंडिंग के लिहाज़ से इस तरह के प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण
हैं .
”लाइफ ऑफ़ एन आउटकास्ट” के पोस्ट प्रोडक्शन के लिए चार लाख रुपये की जरुरत है .पचास
दिनों के कैंपेन के पहले तीस दिनों में लगभग दो लाख रुपये आ गए हैं. फिल्म को अब तक
सत्तर से अधिक प्रोड्यूसर और चार को-प्रोड्यूसर का साथ मिला है. आप इस फिल्म को अपना
सहयोग वेबसाईट www.studiosarvahara.com पर जा कर दे
सकतें हैं.
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