रोज़ाना : इतने सारे फाल्के अवार्ड?
रोज़ाना
इतने सारे फालके
अवार्ड?
-अजय ब्रह्मात्मज
कल अखबारों और चैनलों
पर खबर थी कि प्रियंका चोपड़ा और कपिल शर्मा को दादा साहेब फाल्के अकादेमी अवार्ड से
सम्मानित किया गया। इस खबर को पढ़ते समय पाठक ‘अकादेमी’ शब्द पर गौर नहीं करते। एक भ्रम बनता है कि उन्हें
प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के अवार्ड कैसे मिल गया? देश में खास कर महाराष्ट्र में दादा साहेब फाल्के के नाम से और भी अवार्ड हैं।
दादा साहेब फाल्के के नाम पर चल रहे इन पुरस्कारों से देश के सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार
की मर्यादा मलिन होती है।
राष्ट्रीय फिल्म
पुरस्कारों की घोषणा के साथ या आसपास दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की भी घोषणा होती
है। यह पुरस्कार से अधिक सम्मन है। सिनेमा में अप्रतिम योगदान के लिए किसी एक फिल्मी
हस्ती को यह पुरस्कार दिया जाता है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के
अधीन दिए जाने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की यह श्रेणी अत्यंत सम्मानीय है।
इस साल दक्षिण के के विश्वनाथ को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। कायदे से
सूचना एवं प्रसारण मंत्राालय को इस आशय की अधिसूचना जारी करनी चाहिए कि देश में दादा
साहेग फाल्के के नाम से कोई और पुरस्कार नहीं दिया जा सकता। ऐसा करने से राष्ट्रीय
सम्मान की गरिमा बची रहेगी और किसी प्रकार का कंफ्यूजन नहीं होगा। कोई चौंकेगा नहीं
कि कपिल शर्मा को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार कैसे मिल गया?
होना तो यह चाहिए
कि खुद फिल्म इंडस्ट्री के सदस्य इस पुरस्कार समारोह में शामिल न हों। इसे ग्रहण
न करें। सच्चाई यह है कि पुरस्कार और सम्मान की भूखी फिल्म इंडस्ट्री किसी भी
आयोजन के लिए दौड़ी चली जाती है। इन दिनों इतने पुरस्कार दिए जा रहे हैं कि उनका महत्व
घट गया है। सभी जानते हैं कि ये पुरस्कार सुविधा और उपलब्धता के हिसाब से भी दिए
जाते हैं। कई बार अंतिम क्षणों में विजेताओं के नाम बदल जाते हैं या किसी स्टार को
खुश करने के लिए नई कैटेगरी बना दी जाती है। अब तो फिल्म स्टार खुलेआम कहने लगे हैं
कि पुरस्कार रखो अपने पास,हमें तो समारोह में परफार्म करने के पैसे दे दो। पुरस्कार
समारोहों में परफार्म करने का पारिश्रमिक करोड़ों में मिलता है,जबकि पुरस्कार से लाखों
का काम और नाम भी नहीं मिलता।
वक्त आ गया है
कि भारत सरकार और केंद्रीय फिल्म निदेशालय दादा साहेब फाल्के से मिलते-जुलते नामों
से चल रहे पुरस्कारों के प्रति गंभीर हो और उन्हें तत्काल नाम बदलने का आदेश दे।
अगर फिल्म इंडस्ट्री स्वयं सम्मान नहीं कर पा रही है तो उसे सरकारी अधिसूचना से
लागू करना होगा।
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