रोज़ाना : चाहिए यूपी की कहानी

रोज़ाना
चाहिए यूपी की कहानी
-अजय ब्रह्मात्‍मज

पिछले दिनों फिल्‍मों में स्क्रिप्‍ट और संवाद लिख चुके जयपुर,राजस्‍थान के मूल निवासी रामकुमार सिंह ने दो ट्वीट किए। उन्‍होंने ट्वीट में राजस्थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को टै किया और लिखा... मैडम, हम राजस्थान की कहानी सिनेमा में कहना चाहते हैं पर निर्माता हमसे यूपी की कहानी मांगते हैं, क्योंकि वहां सब्सिडी मिलती है। अगले ट्वीट में उन्‍होंने आग्रह किया... बॉलीवुड में राजस्थान और राजस्थानियों के बारे में कुछ सोचिये मैडम प्लीज।
रामकुमार सिंह की इस व्‍यथा के दो पहलू स्‍पष्‍ट हैं। एक तो राजस्‍थान में कोई ठोस फिल्‍म नीति नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक तौर पर राजे-रजवाड़ों के किलों की शूटिंग के लिए हिंदी फिल्‍मकार राजस्‍थान जाते रहे हैं। हाल ही में राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि की पद्मावती की शूटिंग में संजय लीला भंसाली की शूटिंग में विध्‍न पड़ा और उन्‍हें उन दृश्‍यों की शूटिंग के लिए नासिक जाना पड़ा और मुंबई आना पड़ा। राजस्‍थान में सुविधाएं मिल जाती हैं,लेकिन किसी प्रकार की रियायत या सब्सिडी की व्‍यवस्‍था नहीं है। राजस्‍थान की प्रादेशिक फिल्‍म इंडस्‍ट्री का हाल अच्‍छा नहीं है। बहुत कम फिल्‍में बनती हैं और जो बनती हैं उनका स्‍तर श्‍लघनीय नहीं होता। यूपी या झारखंड की जैसी राजस्‍थान की फिल्‍म नीति नहीं होने से निर्माताओं का ध्‍यान उधर नहीं जाता और स्‍थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्‍साहन नहीं मिलता। राजस्‍थान से मुंबई आए कहानीकार और फिल्‍मकार अपनी माटी और भाषा की कहानियों के बदले चालू किस्‍म की हिंदी फिल्‍में लिखने लगते हैं। स्‍वयं रामकुमार सिंह ने जेड प्‍लस की स्क्रिप्‍ट के बाद सरकार 3 के संवाद लिखे। उनकी पहली व्‍यथा रोचक है कि निर्माता यूपी की कहानियां मांगते हैं,क्‍योंकि वहां सब्सिडी मिलती है। यह सच्‍चाई है और इस सच्‍चाई ने हिंदी फिल्‍मों को भ्रष्‍ट भी किया है। निर्माता लेखकों से जबरन यूपी की कहानियां लिखवाते हैं और निर्देशकों को शूटिंग के लिए यूपी ले जाने हैं।
पिछले दिनों ऐसी अनेक हिंदी फिल्‍में आई,जिनकी कहानी यूपी की थी या फिर जिनकी शूटिंग यूपी में की गई थी। याद होगा कि अखिलेश यादव की यूपी की सरकार के दिनों में जारी फिल्‍म सब्सिडी की वजह से अनेक फिल्‍में यूपी पहुंच गई थी। यूपी में सरकार बदलने के बाद निर्माता ठिठके हैं,लेकिन माना जा रहा है यूपी की फिल्‍म नीति वैसे ही चलती रहेगी। अभी पिछले दिनों आई फिल्‍म बहन होगी तेरी देखते हुए साफ लग रहा था कि फिल्‍म की कथाभूमि और पृष्‍ठभूमि में कोई तालमेल नहीं है। लखनऊ के एक मोहल्‍ले में पंजाबी परिवार और पहाड़ी परिवार की लड़की-लड़के के बीच की प्रेमकहानी विश्‍वसनीय नहीं लग रही थी। ऊपर से एक हरियाणवी कनेक्‍शन भी आ गया था। साफ दिख रहा था कि दिल्‍ली की पृष्‍टभूमि पर लिखी गई कहानी को जबरन लखनऊ में रोप दिया गया है।
अगर आर्गेनिक तरीके से यूपी की कहानी नहीं होगी तो सिर्फ सब्सिडी के लालच में यूपी की छौंक देने से न तो फिल्‍म का स्‍वाद यूपी का होगा और न ही दर्शकों को फिल्‍म जंचेगी। हां,निर्माताओं को अपनी लागत का कुछ हिस्‍सा भले ही सब्सिडी के रूप में मिल मिल जाएगा।

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