रोज़ाना : 'सिमरन' किरदार से 'सिमरन' फ़िल्म तक कंगना
'सिमरन' किरदार से 'सिमरन' फ़िल्म तक कंगना
कंगना
रनोट फिर से सिमरन के किरदार के रूप में आ रही हैं। हंसल मेहता की की ताजा
फ़िल्म में वह शीर्षक किरदार निभा रही हैं। कंगना के प्रशंसकों और और
फ़िल्मप्रेमियों को याद होगा कि उनकी पहली फ़िल्म 'गैंगस्टर' में भी उनका नाम
सिमरन था। अनुराग बसु निर्देशित इस फ़िल्म से कंगना ने जोरदार दस्तक दी थी
और हिंदी फिल्मों में खास पहचान के साथ प्रवेश किया था। कंगना सफलता की
अद्भुत कहानी हैं। गिरती-संभालती वह आज जिस मुकाम पर हैं,वह खुद में प्रेरक
कहानी है। मुमकिन है कल कोई उनके इस सफर पर बायोपिक बनाए की बात सोचे।
'शाहिद'
और 'अलीगढ़' जैसी चर्चित फिल्में बना चुके हंसल मेहता के निर्देशन में बनी
इस फ़िल्म के पहले टीज़र ने झलक दी है कि हम कंगना को फिर से एक दमदार किरदार
में देखेंगे। 'तनु वेड्स मनु' के दोनों भाग और 'क्वीन' की रवानगी और ऊर्जा
का एहसास देता टीज़र भरोसा दे रहा है कि किरदार और कंगना का फिर से मेल हुआ
है। हंसल मेहता संवेदनशील फिल्मकार हैं। वे अपने नायकों को भावाभिव्यक्ति
के दृश्य और पल देते हैं। पिछली फिल्मों में राजकुमार राव और मनोज बाजपेयी
को निखरने का मौका दिया। 'सिमरन' में कंगना रनोट की क्षमता और प्रतिभा के
नए पहलू दिख सकते हैं। दूसरी खास बात है कि हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा के
निर्देशकों ने जिस तरह से कंगना को नजरअंदाज कर रखा है,वह किसी कलाकार को
हताश कर सकता है। लेकिन हम देख रहे हैं कि कंगना अपने तेवर के साथ आगे बढ़
रही हैं। 'सिमरन' उस तेवर का उदाहरण हैं।
कंगना
रनोट के कैरियर पर गौर करें तो उन्होंने बगैर किसी गॉडफादर और
दिशानिर्देशक के अपनी राह बनाई है। अपनी गलतियों से सीखा से समझा है। के
बार लगता है कि कंगना आत्मकेंद्रित कलाकार हैं। असुरक्षा और दबाव में वह
आक्रामक हो जाती हैं। उनके आलोचक मानते हैं कि सिर्फ ध्यान खींचने के लिए
वह ऐसे बयान देती हैं। सच्चाई यह है कि कोने में घिरी बिल्ली की तरह कंगना
के पास बचाव के लिए आक्रमण ही एकमात्र विकल्प है।
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