रोज़ाना : इस्तेमाल होते फिल्म स्टार
रोज़ाना
इस्तेमाल होते फिल्म स्टार
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले दिनों हालिया रिलीज फिल्म के एक स्टार मिले।
थोड़े थके और नाराज। उत्त्र भारत के किसी शहर से लौटे थे। फिल्म की पीआर और
मार्केटिंग टीम उन्हें वहां ले गई थी। उद्देश्य था कि मीडिया के कुछ लोगों से
मिलने के साथ मॉल और स्कूल के इवेंट में शामिल हो लेंगे। अगले दिन अखबार और
चैनलों पर खबरें आ जाएंगी। इन दिनों ज्यादातर फिल्मों के प्रचार की मीडिया प्लानिंग
ऐसे ही हो रही है। किसी को नहीं मालूक कि इस प्रकार के प्रचार और उपस्थिति फिल्मों
को क्या फायदा होता है? फिल्म स्आर को देखने आई
भीड़ दर्शकों में तब्दील होती है या नहीं? मेरा मानना है कि इसमें कयास लगाने की कोई
जरूरत ही नहीं है। इवेंट में मौजूद भीड़ और सिनेमा के टिकट खरीदे दर्शकों का
जोड़-घटाव कर लें तो आंकड़े सामने आ जाएंगे। उक्त स्टार की भी यही जिज्ञासा थी
कि हम जो शहर-दर-शहर दौड़ते हैं,क्या उससे फिल्म को कोई लाभ होता है? स्पष्ट जवाब किसी के पास नहीं है।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री प्रचार के नए तौर-तरीके खोजती
रहती है। पीआर कंपनियों की सक्रियता के बाद राज नए इवेंट और तरीके अपनाए जा रहे
हें। फिल्मों के हित में फिल्म स्टार टमटम में जुते घोड़ों की तरह आंखों पर
पट्टी बांधे सरपट दौड़ जाते हैं। उन्हें भीड़ की टिहकारी और सीटी से लगता है कि
फिल्म के प्रति दर्शकों में रुचि जाग रही है। वे सभी फिल्म देखने थिएटर में
जाएंगे। फिल्म रिलीज होती है और नतीजा सिफर होता है। इस पूरी प्रक्रिया में इवेंट
में फिल्म स्टारों की मौजूदगी से कुछ बिचौलिए पैसे कमा लेते हैं।
होता यों है कि रिलीज का समय निकट आते ही फिल्म स्आरों
की मदद से प्रचार की रणनीति बनती है। इसमें प्रिंट और टीवी के पारंपरिक इंटरव्यू
के साथ दूसरे किस्म के इंटरैक्शन पर जोर दिया जाता है। नए और इनोवेटिव आयडिया के
नाम पर स्टारों को तैयार कर लिया जाता है। मार्केटिंग टीम स्टार के आवागमन और
शहर में ठहरने का खर्च बटोरने के लिए स्थानीय स्ता पर स्पांसर खोजती है। ये स्पांसर
स्थानीय छोटी दुकानों के व्यापारियों से लेकर मॉल तक हो सकते हैं। किसी भी स्थान
पर स्टार को खड़ा कर उससे हाथ हिलवा दिया जाता है। किशोर और युवा फिल्म स्आर को
देखने के लिए जमा हो जाते हैं। पीआर टीम स्टार को भीड़ दिखाती है...सामने और
मोबाइल के कैमरे सेली गई तस्वीरों में। प्रोड्यूसर को लगता है कि प्रचार हो रहा
है। सच्चाई यह है कि पीआर कंपनिया और मार्केटिंग टीम के लोग उल्लू सीधा करते हैं
और अपनी जेब भरते हैं।
थके और नाराज स्टार इसी निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि
प्रचार का पूरा एक्सरसाइज फिजूल है। इसमें फिल्म और फिल्म स्टार को कोई फायदा
नहीं होता। किसी और के व्यवसाय और लाभ के लिए फिल्म स्टार इस्तेमाल हो जाते
हैं। मुझे मिले स्आर ने तो तय कर लिया है कि अगली फिल्म के प्रचार के समय वे
केवल गिने-चुने अखबारों और चैनलों से बातें करेंगे। उनकी समझ में तो आ गया। बाकी
स्टार भी समझें तो चीजें बदलें।
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