फर्क है बस नजरिए का - कृति सैनन
कृति सैनन
-अजय ब्रह्मात्मज
- कृति सैनन के लिए ‘राब्ता’ क्या है? फिल्म और शब्द...
0 शब्द की बात करूं तो कभी-कभी किसी से पहली बार
मिलने पर भी पहली बार की भेंट नहीं लगती। लगता है कि पहले भी मिल चुके हैं। कोई
संबंध हे,जो समझ में नहीं आता... मेरे लिए यही ‘राब्ता’ है। मेरा मेरी पेट(पालतू) के साथ कोई राब्ता है। फिल्म
मेरे लिए बहुत खास है। अभी यह तीसरी फिल्म है। पहली फिल्म में तो सब समझ ही रही
थी। मार्क,कैमरा आदि। ‘दिलवाले’ में बहुत कुछ सीखा,लेकिन इतने कलाकारों के बीच में परफार्म
करने का ज्यादा स्पेस नहीं मिला। इसकी स्टोरी सुनते ही मेरे साथ रह गई थी। एक
कनेक्शन महसूस हुआ। मुझे दो कैरेक्टर निभाने को मिले-सायरा और सायबा। दोनों की
दुनिया बहुत अलग है।
-दोनों किरदारों के बारे में बताएं?
0 दोनों किरदार मुझ से बहुत अलग हैं। इस फिल्म में
गर्ल नेक्स्ट डोर के रोल में नहीं हूं। सायरा को बुरे सपने आते हें। उसके
मां-बाप बचपन में एक एक्सीडेंट में मर गए थे। वह बुदापेस्ट में अकेली रहती है।
चॉकलेट शॉप चलाती है। उसे पानी से डर लगता है। वह बोलती कुछ है,लेकिन सोचती कुछ और
है। फिर भी आप उससे प्यार करेंगे। सायबा के लिए कोई रेफरेंस नहीं था। मैं वैसी
किसी लड़की को नहीं जानती थी। उसका कोई स्पष्ट समय नहीं है। वह बहादुर राजकुमारी
है। झट से कुछ भी कर बैठती है। घुड़सवारी और शिकार करती है।
- बुदापेस्ट की सायरा और दिल्ली-मुंबई की कृति में
कितना फर्क है?
0 उसकी तरह मैं भी जल्दी से फैसले नहीं ले पाती। मैं
आउटस्पोकेन और फ्रेंडली हूं। मेरे कई दोस्त हैं। सायरा बंद-बंद रहती है। वह लोगों को अपने पास आने
देती है,लेकिन एक दूरी रखती है। शिव से मिलने के बाद उसमें परिवर्तन आता है। मेरा
निजी जीवन बहुत सुरक्षित रहा है। मैंने सायरा की तरह स्ट्रगल नहीं किया है।
- क्या हर शहर की लड़कियां अलग होती हैं?
0 दिल्ली और मुंबई की लड़कियों में ज्यादा फर्क नहीं
है। दूसरे देशों की लड़कियों की जीवन शैली और स्टायल अलग होती है। उनका सही-गलत
का नजरिया भी अलग होता है। हमें कई बातें असहज लगती हैं। उन्हें इनसे फर्क नहीं
पड़ता। संबंधों के मामले में हमारी सोच में अंतर रहता है। संस्कृति के भेद से ही
यह भसेद आता होगा शायद।
-सुशांत सिंह राजपूत के साथ कैसा अनुभव रहा?
0 इस फिल्म से पहले मैं सुशांत को बिल्कुल नहीं
जानती थी। मैंने उन्हें कभी हाय भी नहीं बोला था। पहली बार दिनेश के ऑफिस में
मिला था तो यही इंप्रेशन था कि अच्छा एक्टर है। एक्टर के तौर पर मेरा अनुभव कम
है तो डर था कि कोई दिक्कत न हो। यह भी लगा कि मेहनत के साथ अच्छी एक्टिंग करनी
पड़ेगी। उस मीटिंग में एक सीन करते समय हमारी फ्रिक्वेंसी मिल गई थी। उसके बाद
फिल्म की तैयारी में हमारी नजदीकी बढ़ी। हमारा कंफर्ट बढ़ा। एक्टिंग का हमारा
प्रोसेस अलग है। सुशांत इंस्पायरिंग हैं। बुदापेस्ट पहुंचने तक हम एक-दूसरे को
अच्छी तरह समझ गए थे। काम करने में बहुत मजा आया।
-खुश हो आप?
0 मैं बहुत खुश हूं। पिछले साल मेरी कोई फिल्म रिलीज
नहीं हुई। फिर भी लगातार तैयारी की वजह से ऐसा नहीं लगा कि खाली हूं। इस फिल्म को
लेकर एक संतोष है। फिल्म के दूसरे युग में हमलोगों ने जो प्रयास किया है,वह सभी
को अच्छा लगेगा।
-किस की तरह याद किया जाना पसंद करेंगी?
0 माधुरी दीक्षित की तरह। वह मेरी फेवरिट हैं। बचपन
में मैं उनके गानों पर ही डांस किया करती थी। ‘अंखियां मिलाऊं,कभी अंखियां
चुराऊं’ मेरा सबसे प्रिय गाना था। वह इतनी
खूबसूरत और एक्सप्रसिव हैं। वह गाने की पंक्तियों में एक्सप्रेशन दे देती हैं।
वह फेस से डांस करती थीं। वह स्क्रीन पर आती हैं तो स्क्रीन अलाइव हो जाता है।
मैं जैसे उन्हें याद कर रही हूं,चाहूंगी कि वैसे ही कोई मुझे याद करे।
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