फिल्म समीक्षा : मेरी प्यारी बिंदु
फिल्म रिव्यू
परायी बिंदु
मेरी प्यारी बिंदु
थिएटर से निकलते समय कानों में आवाज आई...फिल्म का
नाम तो ‘मेरी परायी बिंदु’ होना चाहिए था। बचपन से बिंदु के प्रति आसक्त अभिमन्यु
फिल्म के खत्म होने तक प्रेमव्यूह को नहीं भेद पाता। जिंदगी में आगे बढ़ते और कामयाब
होते हुए वह बार-बार बिंदु के पास लौटता है। बिंदु के मिसेज नायर हो जाने के बाद
भी उसकी आसक्ति नहीं टूटती। ‘मेरी प्यारी बिंदु’ की कहानी लट्टू की तरह एक ही जगह नाचती रहती है। फिर भी
बिंदु उसे नहीं मिल पाती।
इन दिनों करण जौहर के प्रभाव में युवा लेखक और फिल्मकार
प्यार और दोस्ती का फर्क और एहसास समझने-समझाने में लगे हैं। संबंध में अनिर्णय
की स्थिति और कमिटमेंट का भय उन्हें दोस्ती की सीमा पार कर प्यार तक आने ही
नहीं देता है। प्यार का इजहार करने में उन्हें पहले के प्रेमियों की तरह संकोच
नहीं होता,लेकिन प्यार और शादी के बाद के समर्पण और समायोजन के बारे में सोच कर
युवा डर जाते हैं। ‘मेरी प्यारी बिंदु’ में यह डर नायिका के साथ चिपका हुआ है। दो कदम आगे बढ़ने के
बाद सात फेरे लेने से पहले उसका डर तारी होता है और फिर... याद करें हाल-फिलहाल
में हम ने कितनी ऐसी फिल्में देखी हैं,जिनके मुख्य पात्र खुद के असमंजस और
अनिर्णय से दर्शकों को बोर कर देते हैं। परिणीति चोपड़ा और आयुष्मान खुराना जैसे
ऊर्जावान और दिलचस्प एक्टरों के होने के बावजूद ‘मेरी
प्यारी बिंदु’ एक समय के बाद झेल हो जाती है।
फिल्म का नैरेटिव जटिल और उलझा हुआ है। लंबी अवधि की
प्रेमकहानी को दो घंटे में समेटने की तरकीब लेखक के पास नहीं है। ऐसी फिल्में
कांसेप्ट और विषय के रूप में अच्छी और आकर्षक लगती हैं। कलाकारों को कुछ नया कर
दिखाने का लोभ देती हैं। निस्संदेह परिणीति चोपड़ा और आयुष्मान खुराना दोनों ने
बेहतरीन अभिनय किया है। वे किरदार के मूड और माहौल को आत्मसात कर लेते हैं। कमी
है तो ऐसे प्रसंगों और दृश्यों की जहां वे विस्तार और गहराई पा सकें। दोनों मुख्य
पात्रों में अभिमन्यु के किरदार में शेड और स्पेस है। इसके विपरीत टायटल रोल
होने के बावजूद बिंदु का किरदार एकआयामी है। मुमकिन है अभिमन्यु के नजरिए से
बिंदु को पेश करने की वजह से ऐसा हुआ है-आखिर वह अभिमन्यु की प्यारी बिंदु है।
निर्देशक अक्षय राय ने बंगाल की पृष्ठभूमि को अच्छी
तरह रचा है। पहले ही दृश्य से परिवेश की बारीकी पर उन्होंने ध्यान दिया है।
मुख्य पात्रों के साथ उन्होंने अगल-बगल में दिख रहे व्यक्तियों के कारोबार को
भी कैद किया है। कैरम खेलना,खुश होकर समूह में नाचना,दोस्तों की संगत,परिवार और
पड़ोसी...इनके साथ बैकग्राउंड में बजता बांग्ला संगीत हमें बंगाल में ले जाता है।
यही बारीकी उन्होंने अभिमन्यु को रचने में क्यों नहीं दिखाई? अभिमन्यु हिंदी में सोचता और बोलता है,लेकिन उसकी उंगलियों
के नीचे अंगेजी कीबोर्ड है(यशराज फिल्म्स के लिए हिंदी टाइपरायटर जुटाना कोई
मुश्किल काम था क्या?)। उसकी किताबें शायद रोमन
हिंदी में छपती हैं। प्रकाशक अभी तक रोमन हिंदी में किताबें प्रकाशित नहीं करते।
हां,फेसबुक के स्टेटस में रोमन हिंदी का चलन है। थेड़ी मेहनत और ध्यान से बताया
जा सकता था कि ‘चुड़ैल की चोली’ हिंदी में लिखी गई है या अंग्रेजी में। कई बार लगता है कि
युवा लेखकों की भाषायी समझ और प्रयोग में दिक्कतें हैं। इसी फिल्म में ‘कोई’ और ‘किसी’ के प्रयोग में सावधानी नहीं
बरती गई है। हिंदी के प्रयोग में व्याकरण और व्यवहार की गलतियां आम होती जा रही
हैं। लेखको-निर्देशकों की सफाई रहती है कि दर्शक समझ गए न।
‘मेरी प्यारी बिंदु’ म्यूजिकल लवस्टोरी है। संगीत निर्देशकों ने संगीत की
मधरुता और रवानी बनाए रखी है। किरदारों के मनोभाव के अनुरूप प्रचलित गीतों का चयन
भी उल्लेखनीय है। आयुष्मान खुराना और परिणीति चोपड़ा दोनों में निखार आया है और
आत्मविश्वास बढ़ा है। वे अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं।
अवधि – 145 मिनट
**1/2
ढाई स्टार
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