विद्या से मिलता है बेगम का मिजाज - विद्या बालन
बेगम
जान के निर्देशक श्रीजित मुखर्जी
-अजय
ब्रह्मात्मज
2010
से फिल्म मेकिंग में सक्रिय श्रीजित मुखर्जी ने अभी तक आठ फिल्में बांग्ला में
निर्देशित की हैं। हिंदी में ‘बेगम जान’ उनकी पहली फिल्म है। जेएनयू से अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर
चुके श्रीजित कहानी कहने की आदत में पहले थिएटर से जुड़े। हबीब तनवीर की भी संगत
की और बाद में फिल्मों में आ गए। बांग्ला में बनी उनकी फिल्मों को अनेक राष्ट्रीय
पुरस्कार मिल चुके हैं। महेश भट्ट से हुई एक चांस मुलाकात ने हिंदी फिल्मों का
दरवाजा खोल दिया। वे अपनी आखिरी बांग्ला फिल्म ‘राजकाहिनी’ को हिंदी में ‘बेगम जान’ नाम से ला रहे हैं। फिल्म की मुख्य भूमिका में विद्या बालन
है। मूल फिल्म भारत-बांग्लादेश(पूर्वी पाकिस्तान) बोर्डर की थी। अग यह
भारत-पाकिस्तान बोर्डर पर चली आई है।
पढ़ाई
के बाद नौकरी तो मिडिल क्लास के हर लड़के की पहली मंजिल होती है। श्रीजित को
बंगलोर में नौकरी मिल गई,लेकिन कहानी कहने की आदत और थिएटर की चाहत से वे महेश दत्तनी
और अरूंधती नाग के संपर्क में आए। फिर फिल्मों में हाथ आजमाने के लिए मन
कुलबुलाने लगा। श्रीजित ने सुरक्षा की परवाह नहीं की। उन्होंने तत्काल नौकरी
छोड़ दी। तब तक निजी जिंदगी में शादी और तलाक से वे गुजर चुके थे। घर में अकेली
मां थीं। अतिरिक्त जिम्मेदारी जैसा बोझ नहीं था। पहली फिल्म ‘ऑटोग्राफ’ सफल रही। सफलता के साथ
पुरस्कार भी मिले और आगे की राह सुगम हो
गई।
‘बेगम जान’ की पूष्ठभूमि पार्टीशन की है। मूल बांग्ला फिल्म को हिंदी
में लाने के समय लोकेशन बदलना अनिवार्य लगा। पार्टीशन की देशव्यापी इमेजेज पंजाब
से जुड़ी हैं। निर्देशक और निर्माता ने पूरी कहानी पाकिस्तान के बोर्डर पर शिफ्ट
कर दी। बेगम जान के कोठे को देश के मेटाफर के रूप में देखें,जहां देश के सभी हिस्सों
से आई लड़कियां काम करती हैं। उन्हें ऐसे संवाद दिए गए जसमें हिंदी के साथ उनके
इलाके का टच हो। जया चटर्जी और उर्वशी बुटालिया की पार्टीशन से संबंधित किताब से
फिल्म का आयडिया आया। रेडक्लिफ ने देश की आजादी के समय ब्रिटिश राज के आदेश से
भारत के नक्शे पर एक लकीर खींच दी थी। उसमें कितने घर-परिवार और गांव बंट गए। उन्हें
चार हफ्ते में अपना काम करना था। वहीं से मुझे लगा कि इस पर फिल्म बन सकती है।
उसके बाद मंटो के अफसानों ने मेरे इरादे को पक्का कर दिया।
श्रीजित
मानते हैं कि विद्या बालन ट्रेंड सेटर हैं। मेरी बेगम उनके मिजाज के करीब है,जिसके
अंदर दबा हुआ गुससा है और जो अपने स्पेय में किसी को आने नहीं देती। मैं मानता
हूं कि हिंदी फिल्मों में माधुरी दीक्षित के बाद विद्या ही दमदार अभिनेत्री हैं।
मुझे तो यह भी लगता है कि अगर स्क्रिप्ट आपकी फिल्म का हीरो है तो उसकी हीरोइन
विद्या ही हो सकती है। उन्होंने अपनी फिल्मों से इसे साबित किया है।
‘बेगम जान’ से यह फर्क आया है कि श्रीजित ने मुबई में ठिकाना बना लिया
है। वे अब हिंदी फिल्में करना चाहते हैं। साथ ही मन है कि साल में एक बांग्ला
फिल्म भी बनाते रहें। बांग्ला फिल्मों के लिए कोलकाता आन-जाना लगा रहेगा। मुंबई
प्रोफेशनल शहर है। काम का माहौल रहता है। यहां बड़े बजट की फिल्में आसानी से बनाई
जा सकती हैं। उनकी अगली फिल्म बांग्ला में ही है,जिसकी शूटिंग स्विटजरलैंड में
होगी।
श्रीजित
स्वीकार करते हैं कि अभी के बांग्ला फिल्ममेकर अर्बन हो चुके हैं। उनकी
कहानियों में बंगाल की खुश्बू नहीं रहती। यही दशा दूसरे प्रदेशों से आए फिल्मकारों
की भी है। एक सीमा के बाद हम सभी की प्रस्तुति समान हो गई है। अच्छा होगा कि
फिल्ममेकर अपने इलाके को लेकर चलें और पूरे भारत के लिए कहानी कहें। अब तो विदेशी
भी हमारे दर्शक हैं। हमें फिल्म की भाषा पर बहुत काम करना है।
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