दरअसल : बंद हो रहे सिंगल स्क्रीन,घट रहे दर्शक
दरअसल...
बंद हो रहे सिंगल स्क्रीन,घट रहे दर्शक
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले साल की सुपरहिट फिल्म ‘दंगल’ के प्रदर्शन के समय भी किसी
सिनेमाघर पर हाउसफुल के बोर्ड नहीं लगे। पहले हर सिनेमाघर में हाउसफुल लिखी
छोट-बड़ी तख्तियां होती थीं,जो टिकट खिड़की और मेन गेट पर लगा दी जाती थीं। फिल्म
निर्माताओं के लिए वह खुशी का दिन होता था। अब तो आप टहलते हुए थिएटर जाएं और अपनी
पसंद की फिल्म के टिकट खरीद लें। लोकप्रिय और चर्चित फिल्मों के लिए भी एडवांस
की जरूरत नहीं रह गई है। लंबे समय के बाद हाल में दिल्ली के रीगल सिनेमाघर में
हाउसफुल का बोर्ड लगा। रीगल के आखिरी शो में राज कपूर की ‘संगम’ लगी थी। दिलली के दर्शक
रीगल के नास्टेलजिया में टूट पड़े थे। आज के स्तंभ का कारण रीगल ही है। दिल्ली
के कनाट प्लेस में स्थित इस सिंगल स्क्रीन के बंद होने की खबर अखबारों और चैनलों
के लिए सुर्खियां थीं।
गौर करें तो पूरे देश में सिंगल स्क्रीन बंद हो रहे
हैं। जिस तेजी से सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के दरवाजे बंद हो रहे हैं,उसी तेजी से
मल्टीप्लेक्स के गेट नहीं खुल रहे हैं। देश में मल्टीप्लेक्स संस्कृति आ
चुकी है। फिल्मों के प्रदर्शन,वितरण और बिजनेस को मल्टीप्लेक्स प्रभावित कर
रहा है। किसी भी फिल्म की रिलीज के पहले ही तय किया जा रहा है कि यह फिल्म किस
समूह के लिए है। दर्शकों का यह विभाजन फिल्म के आस्वादन से अधिक टिकट मूल्य पर
आधारित होता है। वितरक निर्माताओं को बताने लगे हैं और अनुभवी निर्माता वितरकों को
समझाने लगे हैं कि उनकी फिल्म किन दर्शकों के बीच पहुंचे। दर्शकों की अस्पष्ट
समझ से फिल्मों का बिजनेस मार खाता है। अभी निर्माताओं का जोर और फोकस मल्टीप्लेक्स
पर रहता है,क्योंकि वहां कलेक्शन की पारदर्शिता है।
देश में सिनेमाघरों की संख्या कम है। सिंगल स्क्रीन
के बंद होने से यह संख्या तेजी से घट रही है। फिल्म फेउरेशन ऑफ इंडिया के आकलन
के मुताबिक 2011 में 10,000 से कुछ अधिक सिनेमाघर था। उन्होंने ताजा आंकड़े नहीं
बटोरे हैं। अनधिकृत आंकड़ों के मुताबिक 2016 में देश में सिंगल स्क्रीन की संख्या
13,900 और मल्टीप्लेक्स स्क्रीन की संख्या 2050 रही। कहा जाता है कि 10 लाख
दर्शकों के बीच 9 सिनेमाघर हैं। यह अलग बात है कि इन दिनों वे भी खाली रहते हैं।
पिछले साल ही भारत में 1902 फिल्में रिलीज हुईं। अब आप अंदाजा लगा लें कि इनमें
से कितनी फिल्मों को सिनेमाघर नसीब हुए होंगे। सिनेमाघर बंद हो रहे हैं,दर्शक घट
रहे हैं और फिल्मों का निर्माण बढ़ रहा है। कोई समझ नहीं पा रहा है कि हम किस दिश
में बढ़ या पिछड़ रहे हैं?
स्पष्ट नीति और सुविधाओं के अभाव में स्थिति विकराल
होती जा रही है। सभी प्रेशों,केंद्र सरकार और भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को बैठ कर
नीतिया असैर योजनएं तय करनी होंगी। देश में सिनेमाघरों की संख्या बढ़ाने के साथ उनके
टिकट मूल्यों पर भी विचार करना होगा ताकि सभी आय समूह के दर्शक सिनेमाघरों में
जाकर फिल्में देख सकें। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को हालीवुड ने डेंट मारना शुरू
कर दिया है। अगर अभी से बचाव और सुधार नहीं किया गया तो दुनिया के अन्य देशों का
हाल भारत का भी होगा। हालीवुड की डब फिल्में भारतीय भाषाओं में दिखाई जाएंगी और
भारतीय भाषाओं की मूल फिल्मों को सरकारी संरक्षण के आईसीयू में जीवन दिया जाएगा।
पड़ोसी देश चीन में सिनेमा नीति बनने के बाद से
निमाघरों की संख्या तिगुनी हो गई है। दर्शक बढ़ हैं और बाक्स आफिस कलेक्शन में
भारी इजाफा हुआ है। बाकी क्षेत्रों में हम उनके जैसे होने का सपना देख रहे हैं तो
सिनेमा और मनोरंजन में क्यों नहीं?
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