अलहदा है बेगम का फलसफा’ : महेश भट्ट
-अजय ब्रह्मात्मज
श्रीजित मुखर्जी का जिक्र मेरे एक
रायटर ने मुझ से किया था। उन्होंने कहा कि वे भी उस मिजाज की फिल्में बनाते रहे
हैं, जैसी ‘अर्थ’, ‘सारांश’व ‘जख्म’ थीं। उनके कहने पर मैंने ‘राजकहानी’ देखी। उस फिल्म ने मुझे झिझोंर दिया।
मैंने सब को गले लगा लिया। मैंने मुकेश(भट्ट) से कहा कि ‘राज’ व ‘राज रीबूट’ हमने बहुत कर लिया। अब ‘राजकहानी’ जैसी कोई फिल्म करनी चाहिए। मुकेश को भी फिल्म
अच्छी लगी। श्रीजित ने अपनी कहानी भारत व पूर्वी पाकिस्तान में रखी थी। रेडक्लिफ
लाइन बेगम जान के कोठे को चीरती हुई निकलती है। यह प्लॉट ही अपने आप में बड़ा
प्रभावी लगा। हमें लगा कि इसे पश्विमी भारत में शिफ्ट किया जाए तो एक अलग मजा
होगा। हमने श्रीजित को बुलाया। फिर उन्होंने 32 दिनों में दिल और जान डालकर ऐसी
फिल्म बनाई की क्या कहें।
मेरा
यह मानना है कि हर सफर आप को आखिरकार अपनी जड़ों की ओर ले जाता है। बीच में जरूर
हम ऐसी फिल्मों की तरफ मुड़े़, जिनसे पैसे बनने थे। पैसा चाहिए भी।
फिर भी लगातार फिल्म बनाने के लिए, पर
रूह को छूने वाली आवाजें सुनाने वाली कहानियां भी जरूरी हैं। यह जज्बा
इस फिल्म में देखने को मिलने वाला है। कहानी जिस समय में सेट है उस वक्त की दुनिया
दिखाने के लिए हम झारखंड के बीहड़ इलाके में गए और शूट किया। मुझे यकीन है कि लोग ‘बेगम जान’ की आत्मा और सादगी से यकीनन जुड़ेंगे।
जो
रवायत ‘सारांश’, ‘अर्थ’ व ‘जख्म’ की है, यह
उसी का विस्तार है। पिछले एक-डेढ दशक में हमने सफलता तो बड़ी अर्जित कर ली थी, पर
हर तरफ से उसी किस्म की फिल्में बनाने की फरमाइशें आती थीं।‘राजकहानी’ में हमें हमारी तलाश खत्म होती दिखी।
मौजूदा पीढी भी बड़ी भावुक है। ऊर्जावान तो वे हैं हीं, जो
उनकी अपनी है। लिहाजा वे किसी चीज की जो व्याख्या करते हैं, वह
अलहदा निकल कर आती है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ‘बेगम जान’ से एक नई दास्तान शुरू होगी।
इत्तफाकन सेंसर बोर्ड भी इससे
प्रभावित हुआ। वरना ‘उड़ता पंजाब’ व अन्य हार्ड हिटिंग फिल्मों पर उनका
रवैया देख तो हम चिंतित थे कि कहीं इस फिल्म को भी अतिरिक्त कतरब्योंत न झेलनी
पड़े। लिहाजा हमने ‘ए’ सर्टिफिकेट के लिए ही अप्लाई किया था, पर
जब उन्होंने वह फिल्म देखी और जिस तरह की प्रतिक्रिया दी, वह
देख हमें बड़ा ताज्जुब हुआ। वे भावुक हो गए। बड़े हिचकते हुए कहा कि गालियों को
जरा तब्दील कर लिया जाए बस। इस तरह देखा जाए तो ‘बेगम जान’ ने सेंसर बोर्ड के साथ कमाल का अनुभव
हमें दिया। खुद पहलाज निहलानी ने हमें फोन कर कहा कि बोर्ड वाले इस फिल्म की बड़ी
तारीफें कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि हमने जिन सिद्धांतों के मद्देनजर यह फिल्म बनाई, वे
मजबूत थे। नतीजतन, इसे सेंसर की मार नहीं झेलनी पड़ी।
जैसे ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’। मनोरंजक होते हुए भी उसने बात तो कह
दी न। वह देख,जब आप
सिनेमाघरों से निकलते हैं तो लगता है कि हमारी बच्चियों के साथ जुल्म हो गया है।
औरतों की आजादी की इज्जत की ही जानी चाहिए। यह बहुत अहम मैसेज है, पर
एंटरटेनिंग तरीके से है। मतलब साफ है। आप इस दौर में इमेजेज दिखा कर घर-दुकान नहीं
चला सकते। अब सेक्स वगैरह नहीं चलेगा। संचार के बाकी माध्यमों ने उसकी जरूरत
पूरी कर दी है। सेक्स कहानी का हिस्सा हो तो बात बनेगी। मसलन, ‘जिस्म2’। उसमें सेक्स कहानी
का हिस्सा था। उसे इरादतन नहीं परोसा गया था। हम दर्शकों को उल्लू नहीं बना सकते।
पार्टिशन को लेकर ढेर सारी कहानियां
हैं, जिन्हें हम जीना नहीं चाहते। गिन कर पांच फिल्में बनी हैं उस मसले पर।
हालांकि हमारी फिल्म शुरू होती है आज के कनॉट प्लेस से। उसके बाद हम हिंदुस्तान
के बंटवारे की ओर जाते हैं। रेडक्लिफ लाइन पर जाते हैं। औरतों के सिद्धांत व उनके
हक की बातें करते हैं। तो हम विशुद्ध पार्टिशन की बात नहीं करते हैं। हम औरतों के
अधिकार की आवाज को पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं। यह बदकिस्मती है हमारी कि औरतें
तब भी गुलाम थीं, अब भी
उन्हें पूरी आजादी नहीं दी गई है। इससे बुरी बात और क्या होगी कि वे अपनी जिस्म
की भी मालकिन नहीं।
फिल्म में ढेर सारी अभिनेत्रियां
हैं। बेगम जान के लिए विद्या ही हमारी पहली च्वॉइस थीं। गौहर खान व इला अरूण भी
हैं। इला के साथ काम कर बड़ा मजा आया। बेगम जान का फलसफा अलग है। इक मर्द उसकी
मंजिल नहीं है। वह न हो तो भी वह खुद को अधूरी नहीं मानेगी। वह वेश्या है, मगर छाती नहीं पीटती कि उसके साथ अत्याचार
हुआ है। वह कोठे को काम की तरह लेती है।
अमिताभ बच्चन का वॉयस ओवर इसलिए
इस्तेमाल हुआ कि हम ऐसी आवाज चाहते थे, जिन्हें लोग सुनें। लोग इमोशन की गहराई
में उतर सकें। हमने उनसे गुजारिश की तो उन्होंने बड़े विनीत भाव से उस ख्वाहिश को
स्वीकारा। हालांकि उनके संग मेरा अतीत बहुत अच्छा नहीं रहा है। अमर सिंह के चलते
हमारे रिश्ते में खटास आई थी। शाह रुख मामले में हमने एक स्टैंड लिया था! तब अमर सिंह के चलते हम दोनों के बीच
जरा सी कड़वाहट थी, मगर मुकेश साथ उनके संबंध अच्छे रहे हैं। बच्चन जी खुद भी
आलिया की बड़ी तारीफ करते रहते हैं। तो हम कब तलक मन में दूरियां पाले रखते।
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