दरअसल : पहचान का संकट है चेतन जी
दरअसल...
पहचान का संकट है चेतन जी
-अजय ब्रह्मात्मज
चेतन जी,
जी हमारा नाम माधव झा है। हमें मालूम है कि आप हिंदी
बोल तो लेते हैं,लेकिन ढंग से लिख-पढ़ नहीं सकते। आप वैसे भी अंगेजी लेखक हैं।
बहुते पॉपुलर हैं। हम स्टीवेंस कालिज में आप का नावेल रिया के साथ पढ़ा करते थे।
खूब मजा आता था। प्रेमचंद और रेणु को पढ़ कर डुमरांव और पटना से निकले थे।
कभी-कभार सुरेन्द्र मोहन पाठक और वेदप्रकाश शर्मा को चोरी से पढ़ लेते थे। गुलशन
नंदा,कर्नल रंजीत और रानू को भी पढ़े थे। आप तो जानबे करते होंगे कि गुलशन नंदा के
उपन्यास पर कैगो ना कैगो फिल्म बना है। अभी जैसे कि आप के उपन्यास पर बनाता है।
हम आप के उपन्यास के नायक हैं माधव झा। हम तो खुश थे कि हमको पर्दा पर अर्जुन कपूर
जिंदा कर रहे हैं। सब अच्छा चल रहा था।
उस दिन ट्रेलर लांच में दैनिक जागरण के पत्रकार ने
मेरे बारे में पूछ कर सब गुड़-गोबर कर दिया। उसने आप से पूछ दिया था कि झा लोग तो बिहार के
दरभंगा-मधुबनी यानी मैथिल इलाके में होते हैं। आप ने माधव झा को डुमरांव,बक्सर का
बता दिया। सवाल तो वाजिब है। आप मेरा नाम माधव सिंह या माधव उपाध्याय भी कर सकते
थे। मेरा सरनेम झा ही क्यों रखा? और झा ही रखा तो हमको
दरभंगा का बता देते। दरभंगा में भी तो राज परिवार है। उसी से जोड़ देते। हमको लगता
है कि आप का कोई झा दोस्त रहा होगा। मेरे बहाने आप ने उससे कोई पुराना हिसाब पूरा
किया है। अब जो भी हो...हम तो फंस गए। हमारे पहचान का संकट हो गया है।
उस पत्रकार को जवाब देने के लिए आप ने जो कमजोर तर्क
जुटाए,वह पढ़ लीजिए...हम अक्षरश: लिख रहे हैं...
यह लड़का पटना इंग्लिश सीखने आता है। मुझे ऐसी जगह
चाहिए थी जो पटना से अधिक दूर ना हो। असके लिए मैंने लिबर्टी ली। बुक में जो
है,वही यहां भी है।(यानी फिल्म में)
आय एम वेरी हैप्पी कि आप हमारी फिल्म को इतनी बारीकी
से देखते हैं। बक्सर में झा कम होते हैं। ऐसा नहीं है कि जीरो होते हैं। इंडिया
में कोई आदमी कहीं रह सकता है। लेकिन योर पाइंट इज राइट।
मुझे क्रिएटिव लिबर्टी लेना था। मैं चाहता था कि वह
कैरेक्टर वीकएंड पर पटना आए। इंग्लिश सीख कर जाए। इसके लिए मुझे पास वाली जगह
चाहिए थी। दरभंगा जरा दूर है। वहां से वीकएंड में पटना करना जरा मुश्किल है।
साफ लग रहा है कि आप ने सवाल सुनने के बाद जवाब सोचा
और हमारे पहचान के संकट को और बढ़ा दिए। कहीं ना कहीं आप का रिसर्च कमजोर था। अब
गलती कर गए हैं तो अपने को सही ठहराने के लिए लाजिक जुटा रहे हैं। रिसर्च करते तो
पता चल जाता कि डुमरांव पटना से जादे पास नहीं है। चेतन जी,पटना से डुमरांव 110
किलोमीटर है और दरभंगा 127 किलोमीटर है। आने-जाने में बराबरे टाइम लगता है। लालू
जी के समय तो सड़क इतना खराब था कि तीन घंटा से जादा ही लगता था पटना पहुंचने में।
वैसे आपने भी उपन्यास में तीन घंटा बताया है। उतना ही टाइम दरभंगा से भी लगता था।
डुमरांव के हिसाब से हमारा भाषा भोजपुरी तो सहीये
बताए,लेकिन झा लोग की पहचान मैथिली भाषा से है। हमको तो साफ लगता है कि सरनेम देने
में आप से चूक हो गया। और सजा हम भुगत रहे हैं। इंटरनेट के रिसर्च से ऐसी भूल होता
है। टिवंकल खन्न भी तो ‘द लिजेंड ऑफ लक्ष्मी प्रसाद’ में छठ के प्रसाद में ‘बनाना फ्राय’ करवा चुकी हैं। बताइए,छठ में बनाना फ्राय?
जगह की कमी से एतना ही लिख रहे हैं,बाकी शिकायत तो और
भी है।
आपका,
माधव झा
(हाफ गर्लफ्रेंड का हीरो)
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