रोज़ाना : अपवाद हैं अभय देओल
रोज़ाना
अपवाद हैं अभय देओल
-अजय ब्रह्मात्मज
देओल परिवार के अभय देओल अपने चचेरे भाइयों सनी देओल
और बॉबी देओल से मिजाज में अलग हैं। उनकी जीवन शैली और फिल्मों की पसंद-नापसंद
में साफ फर्क दिखता है। स्टार परिवार से होने के बावजूद उनमें स्टारों के नखरे नहीं
हैं। वे दिखावे में नहीं रहते। पंजाबी परिवारों के गुणों-अवगुणों से भी वे दूर
हैं। पढ़ाई के लिए विदेश में रहने और वहां हर रंग व वर्ण के दोस्तों के साथ बिताई
जिंदगी ने उनकी पारंपरिक सोच बदल दी। भारत लौटने और ‘सोचा न था’ जैसी फिल्म से शुरूआत करने
के साथ ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि उनमें देओल परिवार के फिल्मी और
पंजाबी लक्षण नहीं हैं।
अभय देओल ने ‘आउट ऑफ बॉक्स’ फिल्में कीं। ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ जैसी कमर्शियल फिल्म में उनकी असहजता आसानी से देखी जा सकती
है। कुछ अलग और बेहतरीन करने की कोशिश में उन्हें अभी तक बड़ी कामयाबी नहीं मिली
है,लेकिन अपने फसलों और बयानों से उन्होंने हमेशा जारि किया कि दूसरे स्टारसन की
तरह लकीर के फकीर नहीं हैं। 2014 में उन्होंने अपनी फिल्म ‘वन बा टू’ डिजीटल रिलीज कर सकेत दे
दिया था कि मनोरंजन की दुनिया किधर खिसक रही है। तब इंडस्ट्री के पंडितों ने उनकी
खिल्ली उड़ाई थी और कहा था कि उनका दिमाग फिर गया है।
फिल्म इंडस्ट्री में जब भी कोई कुछ नया करना चाहता
है तो उसका मखौल उड़ाया जाता है। आरंभिक प्रयासों में सफलता नहीं मिले तो मखौल ही
व्यक्ति का मुहावरा और परिख्य बन जाता है। हाल ही में गोरेपन के ऐड और
एंडोर्समेंट करनेवाले फिल्म कलाकारों के बारे में उन्होंने अपनी रय जाहिर की तो
उनकी प्रशंसा हुई,लेकिन सोनम कपूर ने नाराजगी में एषा देओल के एक ऐड की तस्वीर
लगा कर सवाल किए। सोनम कपूर की इस बचकानी हरकत पर अभय देओल ने शांतचित्त भाव से
कहा कि यह भी गलत है। अभय देओल मानते हें कि फिल्म कलाकरों को ऐसे विज्ञापनों का
हिस्सा नहीं बनना चाहिए।
गोरापन एक गंथि है,जो भारतीय समाज में
गोरों(अंग्रेजों) के दो सदी के शासन में मजबूत हुआ। भारतीय शास्त्रों और रीतिकाल
की रचनाओं में श्याम वर्ण की तारीफ मिलती है। हमारे आदर्श और पूज्य राम और कृष्ण
भी तो श्याम वर्ण के थे।
Comments
"खोखली जड़ों के पेड़ जिंदा नहीं रहते" (चर्चा अंक-2619)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक