बार- बार नहीं मिलता ऐसा मौका - राजकुमार राव
राजकुमार राव
-अजय ब्रह्मात्मज
राजकुमार राव के लिए यह साल अच्छा होगा। बर्लिन में
उनकी अमित मासुरकर निर्देशित फिल्म ‘न्यूटन’ को पुरस्कार मिला। अभी ‘ट्रैप्ड’ रिलीज हो रही है। तीन फिल्मों’ बरेली की बर्फी’,’बहन होगी तेरी’ और ‘ओमेरटा’ की शूटिंग पूरी हो चुकी है।
जल्दी ही इनकी रिलीज की तारीखें घोषित होंगी।
-एक साथ इतनी फिल्में आ रही हैं। फिलहाल ‘ट्रैप्ड’ के बारे में बताएं?
0 ‘ट्रैप्ड’ की शूटिंग मैंने 2015 के दिसंबर में खत्म कर दी थी। इस फिल्म
की एडीटिंग जटिल थी। विक्रम ने समय लिया। पिछले साल मुंबई के इंटरनेशनल फिल्म
फेस्टिवल ‘मामी’ में
हमलोगों ने फिल्म दिखाई थी। तब लोगों को फिल्म पसंद आई थी। अब यह रेगुलर रिलीज
हो रही है।
-रंगमंच पर तो एक कलाकार के पेश किए नाटकों का चलन है।
सिनेमा में ऐसा कम हुआ है,जब एक ही पात्र हो पूरी फिल्म में...
0 हां, फिल्मों में यह अनोखा प्रयोग है। यह एक पात्र
और एक ही लोकेशन की कहानी है। फिल्म के 90 प्रतिशत हिस्से में मैं अकेला हूं।
एक्टर के तौर पर मेरे लिए चुनौती थी। ऐसे मौके दुर्लभ हैं। फिलिकली और मेंटली
मेरे लिए कष्टप्रद था। खाना नहीं खाना,दिन बीतने के साथ दुबला होना,उसी माहौल में
रहना...लेकिन मजा आया।
- शूटिंग पैटर्न क्या रखा आप सभी ने। इस फिल्म में
समय के साथ आप को कमजोर और दुर्बल दिखना था...
0 अच्छी बात रही कि शूटिंग लीनियर आर्डर में सीक्वेंस
के हिसाब से ही की। और कोई तरीका भी नहीं था। एक बार फ्लैट में आ जाने के बाद
आर्गेनिक प्रोसेस था। हर दिन के हिसाब से ग्राफ बना था। हम उसे ही भरते गए। फिलम
में जब खाना खत्म हुआ था,तभी से मेरा खाना भी बंद हो गया था। दिन भर में दो-चार
घूंट पानी और बहुत कमजोरी होने पर ब्लैक कॉफी... खाने के नाम पर मुझे सिर्फ एक-दो
गाजर दिए जाते थे। पहली बार पता चला कि खाना न खाओ तो गुस्सा आता है। हताशा बढ़ती
है। कई बार झटके से खड़े होने पर चक्कर भी आए। तकलीफें सहता रहा,क्योंकि पता
नहीं फिर ऐसा मौका दोबारा कब मिले। मुझे पहले से बता दिया गया था कि यह सब होगा तो
मैं पहले से तैयार था।
- ‘ट्रैप्ड’ को आप ने एडवेंचर,चैलेंज या एक्सपेरिमेंट के तौर पर लिया?
0 सबसे पहले तो मुझे विक्रम के साथ काम करना था। ‘उड़ान’ के समय से ही वे मेरे ’विश लिस्ट’ में थे। उनसे आयडिया सुन कर
ही मैं उत्साहित हो गया था। स्क्रिप्ट सुनने के बाद तो तय हो गया कि इसे नहीं
छोड़ना है। यह रोल मेरे लिए चैलेंज ही था। जैसे ‘शाहिद’ का रोल था या अभी ‘ओमेरटा’ का रोल है। इस चैलेंज के साथ खुशी भी थी कि विक्रम के साथ
काम करने का मौका मिल रहा है।
- आप का जो किरदार मिल रहे हैं,वे साधारण किस्म के
असाधारण लोग हैं। हिंदी फिल्मों के मेनस्ट्रीम किरदार नहीं हैं वे,जिन्हें कुछ
रुटीन काम करने होते हैं। मुश्किल स्थितियों में फंसे हाशिण् के लोग हैं...
0 फिलमों में वे हाशिए के हो सकते हैं,लेकिन रियल लाइफ
में तो ऐसे ही साधारण लोगों की संख्या ज्यादा है। मैं तो उन्हें मेनस्ट्रीम ही
मानता हूं। मैंने सोच कर ऐसे रोल नहीं चुने हैं। मुझे मिलते गए। अच्छी बात है कि
मुझे मिले किरदारों के फिल्मी रेफरेंस नहीं मिलते। उन किरदारों से मैं दर्शकों के
दिलों तक पहुंचा हूं। वे मुझे बताते हैं उन्होंने मेरे किरदारों में खुद को कैसे
देखा?
-अच्छा है कि आप को हंसल मेहता और विक्रमादित्य
मोटवाणी जैसे डायरेक्टर चुन रहे हैं। उन्के साथ आप की छनती भी है।
0 इनकी वजह से ही हम हैं। वे हमें मौके दे रहे हैं। वे
ऐसे किरदारों को ला रहे हैं,जो हिंदी सिनेमा के अनदेखे किरदार हैं। वे फिल्में
पुश कर रहे हैं। वे किसी फार्मूला के तहत चालू फिल्में नहीं बना रहे हैं। अभी
हमें अलग नजरों से देखा जाने लगा है। अब ‘न्यूटन’ देख कर वे सभी चौंके थे।
-क्या है ‘न्यूटन’ में...
0 वह एक आयडियलिस्टिक लड़के नूतन कुमार की फिल्म है,जिसने
अपना नाम बदल कर न्यूटन कुमार कर लिया है। नूतन किसी लड़की का नाम लगता है। उसे
छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके में वोटिंग के लिए भेजा जाता है। वह खुद चााहता है कि
वहां वोटिंग हो,जबकि और किसी का इंटरेस्ट नहीं है। इसी में ब्लैक कामेडी बनती
है।
-आप की ‘बरेली की बर्फी’ और ‘बहन होगी तेरी’ यूपी में शूट हुईं। उनके बारे में क्या बताएंगे?
0 दोनों ही छोटे शहरों की फिल्मों हैं। उनमें मुझे
मजेदार और कम तकलीफ वाले किरदार मिले हैं। शूटिंग में मजा आया। मैं भी पहली बार
लखनऊ की गलियों में घूमा। इस फिल्म के जरिए उधर के किरदारों से मिला। ‘ओमेरटा’ के बारे में मत पूछिएगा।
उसके बारे में कुछ भी नहीं बता सकता। सख्त हिदायत है निर्देशक की।
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