दरअसल : वैदेही,अनारकली,शशि,शबाना और पूर्णा
दरअसल...
वैदेही,अनारकली,शशि,शबाना और पूर्णा
-अजय ब्रह्मात्मज
वैदेही,अनारकली,शशि,शबाना और पूर्णा...पांच लड़कियों
के नाम है। सभी अपनी फिल्मों में मुख्य किरदार है। उन्हें नायिका या हीरोइन कह
सकते हैं। इनमें से तीन अनारकली,शबाना और पूर्णा का नाम तो फिल्म के टायटल में भी
है। कभी हीरो के लिए ‘इन’ और ‘ऐज’ लिखा जाता था,उसी अंदाज में हम स्वरा भास्कर को ‘अनारकली ऑफ आरा’,तापसी पन्नू को ‘नाम शबाना’ और अदिति ईनामदार को ‘पूर्णा’ की शीर्षक भूमिका में
देखेंगे। वैदेही ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ की नायिका है,जिसे पर्दे पर आलिया भट्ट निभा रही हैं। शशि ‘फिल्लौरी’ की नायिका है,जिसे वीएफएक्स
की मदद से अनुष्का शर्मा मूर्त्त रूप दे रही हैं। संयोग है कि ये सभी फिल्में
मार्च में रिलीज हो रही है। 8 मार्च इंटरनेशनल महिला दिवस के रूप में पूरे विश्व
में सेलिब्रेट किया जाता है। महिलाओं की भूमिका, महत्व और योगदान पर बातें होती
हैं। हिंदी फिल्मों के संदर्भ में इन पांचों फिल्मों की नायिकाओं से परिचित होना
रोचक होगा,क्योंकि अभी कुछ दिनो पहले ही कुख्यात सीबीएफसी ने ‘लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का’ को
इस आधार पर प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया कि वह ‘लेडी
ओरिएंटेड’ फिल्म है। सचमुच भारतीय समाज और
मानस एक साथ कई दशकों और सदियों में जी रहा है।
हिंदी फिल्मों में परंपरागत रूप से नायिकाओं की महती
भूमिका नहीं होती। मुख्यधारा की ज्यादातर फिल्मों में उन्हें सजावट और आकर्षण
के लिए रखा जाता है। कुछ फिल्मों में उन्हें किरदार और नाम दिया भी जाता है तो
फिल्म की कहानी में उनकी निर्णायक भूमिका नहीं होती। तात्पर्य यह कि उनके किसी
एक्शन या रिमार्क से फिल्म की कहानी में मोड़ नहीं आता। सारे क्रिया-कलाप हीरो
के पास रहते हैं। हीरोइन उनके आगे-पीछे डोलती रहती है। कभी हीरोइन की महत्वपूर्ण
भूमिका हुई तो उस फिल्म को हीरोइन ओरिएंटेड या महिला प्रधान फिल्म कह कर अलग
कैटेगरी में डाल दिया जाता है। दरअसल,भारतीय समाज में जिस तरह से महिलाओं की
भूमिका गौण कर दी गई है,उसी की प्रतिछवि फिल्मों में आती है। 21 वीं सदी में समाज
में महिलाओं ने अपनी जागृति और सक्रियता से खुद की भूमिका बड़ी कर ली है,लेकिन
फिल्मों में अभी तक उन्हें समान महत्व और स्थान नहीं मिला है। इस लिहाज से भी
मार्च महीने में आ रही पांचों लड़किया हमरा ध्यान खींच रही हैं।
10 मार्च को रिलीज हो रही ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में निर्देशक शशांक खेतान
वैदेही त्रिवेदी को लकर आ रहे हैं। अपने वर्तमान से नाखुश वैदेही भविष्य के बारे
में सोचती है। उसके कुछ ख्वाब हैं। छोटे शहर कोटा में रहने की वजह से उन ख्वाबों
पर अंकुश है। शशांक खेतान ने आज के छोटे शहरों की उन लड़कियों के प्रतिनिधि के रूप
में वैदेही का चित्रण किया है,जो अपनी ख्वाहिशों के साथ उफन रही हैं। 24 मार्च को
रिलीज हो रही अविनाश दास निर्देशित ‘अनारकली ऑफ’ आरा की अनारकली आरा की नाचने-गाने वाली लड़की है। वह अपनी
आजीविका से संतुष्ट है,लेकिन एक समारोह में जब शहर के दबंग व्यक्ति उसकी मर्जी
के खिलाफ उस पर हाथ डालते हैं तो वह बिफर उठती है। देश में लड़कियों के साथ जबरदस्ती
और बलात्कार जैसी शर्मनाक घटनाओं पर गाहे-बगाहे चर्चा होती है। ऐसी घटनाएं
नजरअंदाज कर दी जाती हैं। माना जाता है कि द्विअर्थी गीतों पर उत्तेजक नृत्य
करने वाली लड़कियों के साथ कुछ भी किया जा सकता है। अनारकली ऐसी सोच के विरूद्ध
खड़ी होती है और लड़ती है। अंशय लाल निर्देशित ‘फिल्लौरी’ की नायिका शशि फिल्म में दो रूपों में आती है। एक तो भूतनी
है,जो एक पेड़ पर निवास करती है। रुढि़यों के मुताबिक उस पेड़ से कानन की शादी
होती है तो वह भूतनी उसे दिखाई पड़ने लगती है। दिक्कत है कि शादी के बाद पेड़ काट
दिया गया है। अब शशि लौट भी नहीं सकती। ऊपरी तौर पर मजेदार सी दिखती इस कहानी में
दूसरा लेयर भी है,जिसमें शशि और फिल्लौरी की प्रेमकहानी है।
ये चारों किरदार काल्पनिक हैं,जिन्हें लेखक-निर्देशक
ने अपनी कल्पना से रख है। उनकी इस कल्पना में सच्ची घटनाओं और प्रसंगों का घोल
है। राहुल बोस निर्देशित ‘पूर्णा’ सच्ची कहानी है। यह तेलंगाना रात्य की 13 वर्षीया पूर्णा
के यंघर्ष और विजय की कहानी है। प्रतिकूल परिरूिथतियों में पूर्णा ने माउंट एवरेस्ट
की चढ़ाई की। 25 मई,2014 को माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाली वह दुनिया की
सबसे कम उम्र की लड़की है।
सचमुच 2017 का मार्च का महीना हिंदी सिनेमा के इतिहस
में उल्लेखनीय और यादगार रहेगा। हिंदी फिलमों को पांच सशक्त महिला किरदार मिल
रहे हैं।
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