गुस्सा तुम्हरा खारा खारा - अनारकली
मेरी एक पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में आई है सरला माहेश्वरी की यह कविता। आप सभी के लिए इसे यहां सुरक्षित कर रहा हूं।
अनारकली ऑफ़ आरा !
-सरला माहेश्वरी
अनारकली ऑफ आरा
वाह ! तुम्हारा पारा
ग़ुस्सा तुम्हारा खारा खारा
बजबजाता शहर आरा
नंगा बेचारा
उस पर
टमाटर जैसा चेहरा
बन गया अंगारा
क्या खूब ललकारा !
धो धो कर मारा
धूम मचाकर मारा
कुलपति को
भरे बाजार मारा
रंडी हो या रंडी से कम
पत्नी हो या पत्नी से कम
नहीं सहेंगे तुम्हारे करम
जुल्म और सितम
नाचेंगे, गाएँगे, हमरी मर्ज़ी
नहीं चलेगी
तुम्हारी मनमर्ज़ी
हमरे पास भी
देनी होगी अर्ज़ी !
हमारा मान
हमारा ईमान
नहीं सहेंगे अपमान
अनवर जैसा रौशन मन
हीरे जैसा हीरामन
खाता केवल देश की क़सम
नहीं कोई तीसरी क़सम
शेष में दी ऐसी पटकन
धड़क उठी फिर जीवन की धड़कन !
अनारकली ऑफ आरा
वाह ! तुम्हारा पारा
ग़ुस्सा तुम्हारा खारा खारा
अनारकली ऑफ़ आरा !
-सरला माहेश्वरी
अनारकली ऑफ आरा
वाह ! तुम्हारा पारा
ग़ुस्सा तुम्हारा खारा खारा
बजबजाता शहर आरा
नंगा बेचारा
उस पर
टमाटर जैसा चेहरा
बन गया अंगारा
क्या खूब ललकारा !
धो धो कर मारा
धूम मचाकर मारा
कुलपति को
भरे बाजार मारा
रंडी हो या रंडी से कम
पत्नी हो या पत्नी से कम
नहीं सहेंगे तुम्हारे करम
जुल्म और सितम
नाचेंगे, गाएँगे, हमरी मर्ज़ी
नहीं चलेगी
तुम्हारी मनमर्ज़ी
हमरे पास भी
देनी होगी अर्ज़ी !
हमारा मान
हमारा ईमान
नहीं सहेंगे अपमान
अनवर जैसा रौशन मन
हीरे जैसा हीरामन
खाता केवल देश की क़सम
नहीं कोई तीसरी क़सम
शेष में दी ऐसी पटकन
धड़क उठी फिर जीवन की धड़कन !
अनारकली ऑफ आरा
वाह ! तुम्हारा पारा
ग़ुस्सा तुम्हारा खारा खारा
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