दरअसल : क्‍यों बचते और बिदकते हैं एक्‍टर?



दरअसल....
क्‍यों बचते और बिदकते हैं एक्‍टर?
-अजय ब्रह्मात्‍मज

फिल्‍म पत्रकारिता के दो दशक लंबे दौर में मुझे कई एक्‍टरों के साथ बैठने और बातें करने के अवसर मिले। पिछले कुछ सालों से अब सारी बातचीत सिर्फ रिलीज हो रही फिल्‍मों तक सीमित रहती है। एक्‍टर फिल्‍म और अपने किरदार के बारे में ज्‍यादा बातें नहीं करते। वे सब कुछ छिपाना चाहते हैं,लेकिन कम से कम पंद्रह-बीस मिनट बात करनी होती है। जाहिर सी बात है कि सवाल-जवाब की ड्रिब्लिंग चलती रहती है। अगर कभी किरदार की बातचीत का विस्‍तार एक्टिंग तक कर दो तो एक्‍टर के मुंह सिल जाते हैं। बड़े-छोटे,लोकप्रिय-नए सभी एक्‍टर एक्टिंग पर बात करने से बचते और बिदकते हैं। अगर पूछ दो कि किरदार में खुद को कैसे ढाला या कैसे आत्‍मसात किया तो लगभग सभी का जवाब होता है...हम ने स्क्रिप्‍ट रीडिंग की,डायरेक्‍टर की हिदायत पर ध्‍यान दिया,रायटर से किरदार को समझा,लेखक-निर्देशक ने रिसर्च कर रखा था...मेरा काम आसान हो गया। अमिताभ बच्‍चन से लकर वरुण धवन तक अभिनय प्रक्रिया पर बातें नहीं करते।
हाल ही में सरकार3 का ट्रेलर लांच था। ट्रेलर लांच भी एक शिगूफा बन कर रह गया है। इन दिनों प्रोडक्‍शन कंपनियां अपने स्‍टाफ,फिल्‍म और एक्‍टर के फैंस से थिएटर या हॉल भर देते हैं। उनके बीच ही मीडिया पर्सन रहते हैं। दो बार ट्रेलर दिखाने के बाद मखौल और हंसी-मजाक(जिसे क्‍वेशचन-एंसर सेशन कहा जाता है) का दौर शुरू होता है। गंभीर सवालों के मजाकिया जवाब दिए जाते हैं। लोकप्रिय निर्देशक और अभिनेता सीधे मुंह बात नहीं करते। हां तो सरकार 3 के ट्रेलर लांच में थोड़ी भिन्‍नता रखी गई। पहले राम गोपात वर्मा ने फिल्‍म के बारे में बताया और फिर अमिताभ बच्‍चन ने मंच पर मौजूद(निर्देशक,कलाकार,निर्माता) सभी व्‍यक्तियों से सवाल पूछे। यह दौर अच्‍छा चला। कुछ अच्‍छी बातें उद्घाटित हुईं। फिर मीडिया के सवाल और जवाब को दौर आरंभ हुआ तो एक पल्‍कार ने अमिताभ बच्‍चन से पूछा...सरकार जैसी फिल्‍म में इंटेंस और एंग्री मैन का रोल करने के बाद शाम में घर पहुंचने पर क्‍या होता है? पत्रकार की मंशा यह जानने की थी कि व्‍यक्ति व अभिनेता अमिताभ बच्‍चन अपने किरदार से कैसे डल करते हैं। अमिताभ बच्‍चन का जवाब था-घर जाते हैं,खाते हैं और सो जाते हैं। मुमकिन है सिद्धहस्‍त अभिनेता अमिताभ बच्‍चन के लिए सब कुछ इतना सरल होता हो,लेकिन उनके जवाबों पर गौर करें तो अपनी विनम्रता के आवरण में उन्‍होंने हमेशा एक्टिंग पर बात करने से बचने की कोशिश की है। अपनी चर्चिग्‍त और मील का पत्‍थ्‍र बन चुकी फिल्‍मों के किरदारों और रोल के बारे में पूछने पर वे हमेशा निर्देशक को श्रेय देते हैं...उन्‍होंने जैसा कहा,वैसा मैंने कर दिया और दर्शकों को पसंद आ गया।
अमित सर,एक अभिनेता के लिए सब कुछ इतना सरल और आसान रहता तो दिलीप कुमार को देवदास जैसी ट्रैजिक फिल्‍में करने के बाद किसी मनोचि‍कित्‍सक के शरण में नहीं जाना पड़ता उन्‍हें गुरू दत्‍त की फिल्‍म प्‍यासा का रोल नहीं छोड़ना पड़ता। इधर के अभिनेता एक्टिंग के नाम पर होमवर्क पर बहुत जोर देते हैं। वे हवाला देते हैं कि वजन कम किया या बढ़ाया,नए हुनर सीखे,शरीर पर काम किया...दरअसल,वे अपने किरदारों के लुक और एक्‍सटीरियर की बातें कर रहे होते हैं। किरदार में दिखना और किरदार में होना दो बातें हैं। एक्‍टर इस होने की प्रक्रिया को गोल कर जाते हैं। यह भी हो सकता है कि प्रशिक्षण और जानकारी के अभाव में वे इस प्रक्रिया को शब्‍द नहीं दे पाते हों। यहां तक कि थ्‍रएटर की ट्रेनिंग लेकर आए एक्‍टर भी एक्टिंग की बातें नहीं करते।
इन दिनों समर्थ और समृद्ध परिवारों के बच्‍चे एक्टिंग सीखने विदेशी फिल्‍म स्‍कूलों में जा रहे हैं। अपनी पढ़ाई और अभ्‍यास के दौरान वे विदेशी फिल्‍में देखते हैं। उनकी बोलचाल और पढ़ाई की भाषा अंग्रेजी है। और आखिरकार वे हिंदी फिल्‍मों के मैलोटैमैटिक किरदारों में अजीब से लगते हैं। प्रशिक्षण और कार्य के स्‍वभाव की भिन्‍नता उनकी एक्टिंग में दिखती है। वे जंचते ही नहीं। जरूरी है कि अनुभवी अभिनेता अभिनय पर सिलसिलेवार बातें करें और टेक्‍स्‍ब्‍ तैयार करें। एक्टिंग पर बातें करने से बिदकना बंद करें।

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