शबाना नाम है जिसका- तापसी पन्नू
शबाना नाम है जिसका- तापसी पन्नू
-अजय ब्रह्मात्मज
तापसी पन्नू की ‘नाम शबाना’ भारत की पहली ‘स्पिन ऑफ’ फिल्म है। यह प्रीक्वल नहीं है। ‘स्पिन ऑफ’ में पिछली फिल्म के किसी
एक पात्र के बैकग्राउंड में जाना होता है।
तापसी पन्नू ने ‘नीरज पांडेय’ निर्देशित ‘बेबी’ में शबाना का किरदार निभाया था। उस किरदार को दर्शकों ने
पसंद किया था। उन्हें लगा था कि इस किरदार के बारे में निर्देयाक को और भी बताना
चाहिए था। तापसी कहती हैं,’ दर्शकों की इस मांग और चाहत
से ही ‘नाम शबाना’ का खयाल आया। नीरज पांडेय ने ‘बेबी’ के कलाकारों से इसे शेयर किया तो सभी का पॉजीटिव रेस्पांस
था। इस फिल्म में पुराने लीड कलाकार अब कैमियो में हैं। दो नए किरदार जोड़े गए
है,जिन्हें मनोज बाजपेयी और पृथ्वी राज निभा रहे हैं।‘ मनोज बाजपेयी ही मुझे स्पॉट कर के एस्पीनोज एजेंसी के लिए
मुझे रिक्रूट करते हैं।‘
’नाम शबाना’ की शबाना मुंबई के भिंडी बाजार की निम्नमध्यवर्गीय मुसलमान
परिवार की लड़की है। उसके साथ अतीत में कुछ हुआ है,जिसकी वजह से वह इस कदर
अग्रेसिव हो गई है। तापसी उसके स्वभाव के बारे में बताती हैं,’ वह कम बोलती है। मेरे स्वभाव के विपरीत है। हम दोनों के बीच
एक प्रतिशत भी समानता नहीं है। इस किरदार को शारीरिक तौर पर आत्मसात करने से अधिक
मुश्किल था उसे मानसिक स्तर पर समझना। वह बोलती कम है,लेकिन समझती सब कुछ है। वह
किसी भी मामले में पलट कर रिएक्ट करती है। वह भांप लेती है कि क्या होने वाला
है। तभी मनोज बाजपेयी उसे रिक्रूट करना चाहते हैं। वह पहनावे में पर्दादारी करती
है,लेकिन बुर्का और हिजाब में नहीं रहती है। उसके बात करने के लहजे में पूरी सफाई
है। मुझे लहजे का भी अभ्यास करना पड़ा।‘ कहानी का भेद खुल जाने के
डर से तापसी नहीं बतातीं कि उसे क्यों रिक्रूट किया गया और वह क्यों राजी हुई? ‘वही तो स्टोरी है,’ मैं नहीं बता सकती।
तापसी पून्नू इस फिल्म की शूटिंग के दौरान रोमांचित
रहीं। ज्यादातर शूटिंग मुंबई के रियल लोकेशन में हुई है। वह शूटिंग के अनुभव शेयर
करती हैं,’ मैं मुंबई के नल बाजार में घूम रही
थी। कई बार लोग मुझ से पूछते थे कि क्या हो रहा है? कौन
सी फिल्म है? मैं कौन हूं? अच्छा था कि लोग मुझे पहचान नहीं रहे थे या यों कहें कि
तवज्जो नहीं दे रहे थे। कुछ ने पहचाना कि यह साउथ की फिल्म ‘कांचना 2’ की हीरोइन है। मुझे कुछ नया
सा नहीं लगा। दिल्ली के जामा मस्जिद के पीछे की बस्ती की फीलिंग आती है। केवल
मच्दी की गंध से दिक्कत हो रही थी। रियल लोकेशन पर लोग परेशान न करें तो बहुत
मजा आता है। मैं तो गली-नुक्क्ड़ के लोगों से घुलमिल गई थी। मैंने तो कुछ दृश्यों
में बॉडीगार्ड भी हटा दिए। गली की भीड़ का हिस्सा बन जाना मजेदार था।‘
तापसी चाहती थीं कि नीरज पांडेय ही इसे डायरेक्ट
करें। नीरज ने उन्हें समझाया कि मैं लिख रहा हूं और मैं ही निर्माता हूं। सेट पर
भी रहूंगा। तुम तनाव मत लो। तापसी के शब्दों में,’ वे ‘नाम शबाना’ के डायरेक्टर शिवम नायर को
अपना सीनियर मानते हैं। उन्होंने भरोसा दिलाया। शिवम नायर भी नीरज सर की तरह कम
बोलते हैं। उन्होंने दूसरे निर्देशकों से अलग कुछ भी बताने,समझाने या डायरेक्अ
करने के समय पास आकर ही सब कुछ बताया। उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। वे सीधे
अपनी बात कहते थे। मुझे दोनों की शैली में अधिक फर्क नहीं लगा। और चूंकि शबाना उनकी
क्रिएशन है,इसलिए वे शबाना से ज्यादा वाकिफ थे। उसकी बारीकियां जानते थे।‘
तापसी मानती हैं कि कामयाबी से लोगों का परसेप्शन और
अपना कंफीडेंस बढ़ता है। ‘पिंक’ की कामयाबी और सराहना से फर्क तो आया है। वह कहती हैं,’व्यक्तिगत स्तर पर कुछ दिनों तक कुछ हासिल करने का अहसास
रहता है। फिर जिंदगी रुटीन में आ जाती है। इंडस्ट्री और दर्शकों की सोच बदल जाती
है। उनसे भाव मिलने लगता है। ‘पिंक’ सभी उम्र और तबके के दर्शकों ने देखा है। आम व्यक्तियों से
सराहना मिलती है तो मैं एंज्वॉय करती हूं।‘
तापसी डेविड धवन की फिल्म ‘जुड़वां’ के लिए उत्साहित हैं। वे
कहती हैं,’ मेंरे लिए गर्व की बात है कि उन्होंने
मुझे चुना। मैंने उनसे पूछा कि मुझे क्या तैयारी करनी है? उन्होंने इतना ही कहा तूझे अच्छा लगना है। हर अभिनेत्री
चाहती है कि उसे ऐसी फिल् मिले।
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