हमने ही खींची हैं लकीरें - जैगम इमाम
-अजय ब्रह्मात्मज
जैगम इमाम उत्तरप्रदेश के बनारस शहर के हैं। उनकी
दूसरी फिल्म ‘अलिफ’ आ
रही है। पत्रकार और लेखक जैगम ने पिछली फिल्म ‘दोजख’ की तरह इस बार भी अपने परिवेश की कहानी चुनी है। मुस्लिम
समाज की पृष्ठभूमि की यह फिल्म अपनी पहचान पाने की एक कोशिश है। अभी देश-दुनिया
में मुसलमानों को लेकर अनेक किस्म के पूर्वाग्रह चल रहे हैं। ‘अलिफ’ उनसे इतर जाकर उस समाज की
मुश्किलों और चाहतों की बात करती है। जैगम की यह जरूरी कोशिश है।
-िपछली फिल्म ‘दोजख’ से आप ने क्या सीखा?
0 ‘ दोजख’ मेरी पहली फिल्म थी। मैं पत्रकारिता से आया था तो मेरा
अप्रोच भी वैसा ही था। फिल्म की बारीकियों का ज्ञान नहीं था। उस फिल्म से मुझे
महीन सबक मिले। मेरी पहली कोशिश को सराहना मिली। सिनेमा का तकनीकी ज्ञान बढ़ा। ‘अलिफ’ में कई कदम आगे आया हूं।
- ‘अलिफ’ क्या है? और यही फिल्म क्यों?
0 ईमानदारी से कहूं तो मैं पॉपुलर लकीर पर चल कर पहचान
नहीं बना सकता। मेरी फिल्म किसी से मैच नहीं करती। मैं अपने परिवेश की कहानी
दिखाना चाहता हूं। मैं अपनी जमीन और मिट्टी लेकर आया हूं। इस फिल्म की पृष्ठभूमि
फिर से बनारस है। बनारस में अनेक कहानियां हैं। असली भारत वहीं दिखता है। मंदिरों
के गर्भगृहों में सोने की नक्काशी का काम मुसलमान करते हैं। यह वहां के मुस्लिम
मोहल्ले की सच्ची कहानी है। जागरुकता की बातें हैं। एक मुस्लिम परिवार की सच्चाई
दिखाने की मैंने कोशिश की है। उनकी दुनिया सिमटी रहती है। एक हकीम साहब का बेटा मदरसे
में पढ़ता है। उसे लगता है कि बड़ा होकर वह हाफिज बनेगा। उस लड़के की बुआ पाकिस्तान
में ब्याह दी गई थी। वह चालीस सालों के बाद बनारस लौट आती है। अपने परिवार के
हालात देख कर उसे हैरत होती है कि वे चालीस साल पहले की दुनिया में ही जी रहे हैं।
वह समझाती है कि बेटे को आधुनिक शिक्षा दिलवाओ। डॉक्टर बनाओ। पहली बार उस परिवार से
कोई लड़का अपनी चूहेदानी से निकलता है। बाहरी दुनिया के संपर्क में आने के बाद
लड़के का नया संघर्ष आरंभ होता है। मेरा मानना है कि सारी समस्याओं का निदान
शिक्षा है। फिल्म का टैग लाइन है- लड़ना नहीं पढ़ना जरूरी है।
-क्या ऐसा नहीं लगता कि आप का विरोध होगा?
0 मैं किसी का विरोध नहीं कर रहा हूं तो कोई क्यों
मेरा विरोध करेगा। मैं रास्ता खोज रहा हूं। अपने समाज के लिए तालीम की बात कर रहा
हूं1 मेरे लिए दीन का इल्म दुनिया के इल्म से होकर गुजरता है। मैंने तालीम के
साथ बेमानी डर की भी बात की है। हिंदू-मुसलमान के बीच नासमझी से दीवारें बढ़ती जा
रही हैं। दोनों को अपने भय दूर करने होंगे। साथ ही वह विमर्श भी है,जिसमें आज के
मुसलमान फंसे हैं। उन्हें लगता है कि हमें रोका जा रहा है। सच्चाई है कि हम ने
खुद ही हदें खींच दी है।
-कलाकारों में कौन हैं? कोई
परिचित चेहरा?
0 इस फिल्म के लिए परिचित चेहरों की अधिक जरूरत नहीं
थी। फिर भी नीलिमा अजीम हैं। दानिश हुसैन हैं। लेखिका मेहरूनिसा परवेज की बेटी एक
अहम किरदार में हैं। बच्चों की भूमिका में मोहम्मद सउद और ईशान कौरव हैं। उनका
चुनाव सैकड़ों बच्चों के ऑडिशन के बाद हुआ।
-शूटिंग कहां की?
0 बनारस के रियल लोकेशन पर ज्यादातर आउटडोर शूटिंग
हुई है।
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