जुड़वां सोच है हमारी : अनुष्‍का-कर्णेश




-अजय ब्रह्मात्‍मज
ग्‍लैमर जगत में फिल्मी पृष्‍ठभूमि की ढेरों प्रतिभाएं हैं। पिता-पुत्र, बाप-बेटी व भाई-बहन की जोड़ी। फरहान-जोया, साजिद-फराह, एकता-तुषार प्रमुख भाई-बहन जोडि़यां हैं। ऐसी ही एक आउटसाइडर जुगलबंदी है, जो अनूठी कहानियों को बड़ा मंच प्रदान कर रही है। अनुष्‍का-कर्णेश शर्मा। अनुष्‍का स्थापित नाम हैं। भाई कर्णेश संग वे अपने बैनर की जिम्मेदारी को बखूबी संभाल रही हैं। एनएच 10 के बाद फिल्लौरी दूसरी ऐसी फिल्म है, जिसका निर्माण दोनों ने संयुक्त रूप से क्‍लीन स्‍लेट फिल्‍म्‍स के अधीन किया है।
इस भूमिका के सफर के आगाज को कर्णेश जाहिर करते हैं। वे बताते हैं, हम दोनों ने यह फैसला बहुत सोच-समझ के लिया हो, ऐसा नहीं है। एनएच 10 पहला मौका था, जब हम दोनों ने इस भूमिका के बारे में सोचा। हम दरअसल अच्छी कहानियों का मुकम्‍मल मंच मुहैया कराना चाहते हैं। अभी तक तो अच्छा हुआ है। आगे भी ऐसा ही हो।
अनुष्‍का इसमें अपने विचार जोड़ती हैं। उनके शब्दों में, मुझे ढेर सारे लोगों ने कहा था कि एक अभिनेत्री तब निर्माण में कदम रखती है, जब उनका करियर ढलान पर होता है। मैं अभी अपने करियर के उठान पर ही हूं। मैं इस फलसफे के विपरीत सोचती हूं। मेरा मानना है कि मैं इस वक्त बैंकेबल एक्ट्रेस हूं। मेरी मौजूदगी से कोई फिल्म एक खास बजट में बन सकती है। लिहाजा मैं इसे क्यों न इस्तेमाल करूं।
कर्णेश भी अनुष्‍का की इस सोच की वकालत करते हैं। वे बताते हैं, अब वक्त बदल चुका है। हॉलीवुड में भी सफल अदाकारा कथ्‍यप्रधान फिल्में प्रोड्यूस कर रही हैं। साथ ही हमारी कंपनी का मकसद केवल अनुष्‍का के लिए या उन्हें ध्‍यान में रखकर फिल्में नहीं बनाना है। हमारा परम लक्ष्‍य अच्छी फिल्मों को सपोर्ट करना है। अनुष्‍का खुद ऐसा सोचती हैं। शुरूआती फिल्मों में उनकी मौजूदगी से कंटेंट को मदद तो मिली ही, रिलीज के लिए ठीक-ठाक तादाद में स्क्रीन भी मिले। फिर जब, वे एक बेहतरीन और सफल अदाकारा भी हैं तो वे फिल्म का हिस्सा भी क्यूं न रहें। हमारा मोटिव यह रहा कि एक फिल्म की बेहतरी के लिए जो भी अच्छा हो, हम वह करेंगे। अलबत्ता हम आगे उनके बिना भी फिल्में बनाएंगे।
अनुष्‍का आगे कहती हैं, हम अपने बैनर की फिल्में अलग तरह से डिजाइन कर रहे हैं। एक्टर को दिमाग में पहले ही बिठाकर किरदार के बारे में नहीं सोचते। आगे ऐसा बिल्‍कुल मुमकिन है कि किसी किरदार में मैं फिट न बैठूं। हो सकता है कि मैं उसके लिए कुछ ज्यादा ही ओल्ड या ज्यादा न्यू लगूं। फिर वहां मैं एक्टर के तौर पर नहीं जुडूंगी। उस रोल के लिए जो एक्टर सही होंगे, उन्हीं को कास्ट किया जाएगा। अमूमन मेरे साथ ऐसा हुआ भी नहीं है कि मुझे एक ही किस्म के रोल मिले हों। हम साथ ही इंडस्ट्री से बाहर के हैं। नतीजतन, हमारी कोई पहले से तय धारणा नहीं है। हम जो कुछ भी करना चाहते हैं, उसको लेकर पूरी क्लैरिटी है। हमारी फिल्में देखने के बाद इंडस्ट्री को अंदाजा लगेगा कि हम क्या करना चाहते हैं। इस काम में बाकी लोगों का भी साथ मिल रहा है। क्रियाज नामक कंपनी है। उनके साथ हम कुछ लीक से हटकर फिल्में बना रहे हैं। उनकी घोषणा बहुत जल्द होगी।
हमारे बैनर का नाम क्लीन स्लेट है। इसका आइडिया अनुष्‍का शर्मा का था। कर्णेश बताते हैं, हम लोग वीडियो गेम खेल रहे थे एक दिन। विमर्श चल रहा था कि कंपनी का नाम क्या रखा जाए। अनुष्‍का ने झट कहा, क्लीन स्लेट। वह इसलिए कि हम कुछ भी पूर्वाग्रह के साथ नहीं करना चाहते थे। जो फिल्में सफल रही हैं, उन्हीं को रीहैश करने की कोशिश न करें। अनुष्‍का इसमें जोड़ते हुए कहती हैं, मुझे भेड़चाल से बड़ी प्रॉब्लम है। अगर कोई जॉनर चल पड़ा तो उसी लीक पर चलने का सिलसिला शुरू हो जाता है। हम ऐसा नहीं चाहते हैं। हमारी हर दूसरी फिल्म पिछली वाली से नितांत अलग होगी। हम ज्यादा से ज्यादा अनूठा काम करना चाहते हैं।
बतौर टीम दोनों भाइ-बहनों ने पहले भी काम किया है। कर्णेश उस पुरानी याद को साझा करते हैं। वे बताते हैं, हम लोगों ने पिछले छह-सात साल में जितना वक्त साथ गुजारा है, उतना समय तो हमें बचपन में भी नहीं मिला था। उम्र में मैंने मर्चेंट नेवी की नौकरी कर ली थी। मैं बाहर हीरहता था। जो हमें तब करना था, वह अब कर रहे हैं।  हम मिलकर इस इंडस्‍ट्री को सोसायटी को कुछ देना चाहते हैं। मुझमें सामाजिक सरोकार उतना तो नहीं था, अनुष्‍का में था। हमारे पिता आर्मी में रहे हैं तो वहां लाइब्रेरी के लिए अनुष्‍का ने काफी काम किया है। वह कल्‍चरल इवेंट में भी लीड करती थी।
कर्णेश पहले मर्चेंट नेवी में थे। वहां काम की अलग डिमांड रहती है। क्‍या उन दिनों फिल्मों से किसी प्रकार का जुड़ाव था? कर्णेश हां में जवाब देते हैं। वे कहते हैं, शिप पर मेरी ड्यूटी तकरीबन 18 घंटे की होती थी। हम दुनिया से कटे रहते थे। ऐसे में मनोरंजन का एकमात्र साधन फिल्में ही हुआ करती थीं। मैं रोज एक फिल्म देखा ही करता था। सिर्फ हिंदी ही नहीं, हॉलीवुड व वर्ल्ड सिनेमा भी। मैंने जर्मनी, फ्रांस, पनामा से लेकर अर्जेंटीना तक की फिल्में देखी हैं। इससे फिल्मों की एक ठीक-ठाक समझ तो आ गई थी। बाकी मैं यह नहीं कहूंगा कि मैं बहुत क्रिएटिव हूं।
अनुष्‍का ऐसा नहीं मानतीं। वे कर्णेश को काबिल मानती हैं। उनके शब्दों में, इनमें हीरे को परखने की भरपूर खूबी है। ये बिटविन द लाइंस के बीच के मायने पकड़ने में माहिर हैं। दूसरी चीज यह भी कि ये शिप का मैनेजमेंट भी संभालते रहे हैं, जिसका बजट करोड़ों में होता है। इन्हें लोगों को हैंडल करना बड़े अच्छे से आता है। मुझ में यह खूबी नहीं है। हम दोनों की सोच एक ही है। अगर हमारी पैदाइश में चार-पांच साल का फर्क नहीं होता तो हमें तो लोग जुड़वां कह देते, चूंकि सोच जो हमारी एक सी है। 
एनएच 10 में महिला हक और अस्मिता की बात थी। फिल्लौरी जरा अलग है। दोनों भाई-बहन लगभग एक स्‍वर में बताते हैं, एक मांगलिक लड़का है। लिहाजा उसका ग्रह-दोष दूर करने के लिए कहा जाता है कि  उसे पेड़ से शादी करनी होगी। वह चाहता तो नहीं है, फिर भी वह कर लेता है। अब पेड़ में भूतनी की आत्‍मा है। वह भूतनी मैं बनी हूं। बहरहाल, वह टिपिकल भूतनी नहीं है, जो लोगों को डराती है। वह इस शादी से खुद डरी हुई है। वह इसलिए कि उसके लिए भी इस किस्म की चीज अजीबोगरीब है। चूंकि वह पुराने जमाने से है, जब आस-पास बिजली भी नहीं हुआ करती थी। आज की तारीख की चीजों को देखकर वह हक्का-बक्का है। उन दोनों का सफर आगे क्या रूप लेता है, फिल्लौरी उसकी बानगी है। यह पंजाब में सेट है। फिल्लौर इलाके में। वहां के लोगों को फिल्लौरी कहा जाता है।
24 मार्च का रिलीज हो रही फिल्‍लौरी के बाद की यो जनाओं पर काम चल रहा है। कुछ फिल्‍मों की जल्‍दी ही घोषणा होगी। दोनों निश्चित हैं कि क्‍लीन स्‍लेट फिल्‍म्‍स अपनी फिल्‍मों से अलग पहचान बनाएगी।

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