फिल्म समीक्षा : रंगून
फिल्म रिव्यू
युद्ध और प्रेम
रंगून
-अजय ब्रह्मात्मज
युद्ध और
प्रेम में सब जायज है। युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी प्रेमकहानी में भी सब जायज हो
जाना चाहिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बैकड्रॉप में बनी विशाल भारद्वाज की रंगीन
फिल्म ‘रंगून’ में
यदि दर्शक छोटी-छोटी चूकों को नजरअंदाज करें तो यह एक खूबसूरत फिल्म है। इस
प्रेमकहानी में राष्ट्रीय भावना और देश प्रेम की गुप्त धार है, जो फिल्म के
आखिरी दृश्यों में पूरे वेग से उभरती है। विशाल भारद्वाज ने राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ के अनसुने अंशों से इसे
पिरोया है। किसी भी फिल्म में राष्ट्रीय भावना के प्रसंगों में राष्ट्र गान की
धुन बजती है तो यों भी दर्शकों का रक्तसंचार तेज हो जाता है। ‘रंगून’ में तो विशाल भारद्वाज ने
पूरी शिद्दत से द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में आजाद हिंद फौज के हवाले से
रोमांचक कहानी बुनी है।
बंजारन
ज्वाला देवी से अभिनेत्री मिस जूलिया बनी नायिका फिल्म प्रोड्रयूसर रूसी बिलमोरिया
की रखैल है, जो उसकी बीवी बनने की ख्वाहिश रखती है। 14 साल की उम्र में रूसी ने
उसे मुंबई की चौपाटी से खरीदा था। पाल-पोस और प्रशिक्षण देकर उसे उसने 20 वीं सदी
के पांचवें दशक के शुरूआती सालों की चर्चित अभिनेत्री बना दिया था। ‘तूफान की बेटी’ की नायिका के रूप में वह
दर्शकों का दिल जीत चुकी है। उसकी पूरी कोशिश अब किसी भी तरह मिसेज बिलमोरिया होना
है। इसके लिए वह पैंतरे रचती है और रूसी को मीडिया के सामने सार्वजनिक चुंबन और स्वीकृति
के लिए मजबूर करती है। अंग्रेजों के प्रतिनिधि हार्डी जापानी सेना के मुकाबले से
थक चुकी भारतीय सेना के मनोरंजन के लिए मिस जूलिया को बॉर्डर पर ले जाना चाहते
हैं। आनाकानी के बावजूद मिस जूलिया को बॉर्डर पर सैनिकों के मनोरंजन के लिए निकलना
पड़ता है। उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी जमादार नवाब मलिक को दी गई है। जांबाज नवाब
मलिक अपनी बहादुरी से मिस जूलिया और अंग्रेजों को प्रभावित करता है। संयोग से इस
ट्रिप पर जापानी सैनिक एयर स्ट्राइक कर देते हैं। भगदड़ में सभी बिखर जाते हैं।
मिस जूलिया और नवाब मलिक एक साथ होते हैं। नवाब मलिक अपनी जान पर खेल मिस जूलिया
को भारतीय सीमा में ले आना चाहता है। अंग्रेजों के साथ रूसी बिलमोरिया भी मिस
जूलिया की तलाश में भटक रहे हैं। उनकी मुलाकात होती है। अंग्रेज बहादुर नवाब मलिक
से प्रसन्न होकर विक्टोरिया क्रॉस सम्मान के लिए नाम की सिफारिश का वादा करता है,
लेकिन आशिक रूसी बिलमोरिया को नवाब मलिक में रकीब की बू आती है। वह उसके प्रति
चौकन्ना हो जाता है। हम प्रेमत्रिकोण में नाटकीयमता की उम्मीद पालते हैं। कहानी
आगे बढती है और कई छोरों को एक साथ खोलती है। आखिरकार वह प्रसंग और मोड़ आता है,
जब सारे प्रेमी एक-एक कर इश्क की ऊंचाइयों से और ऊंची छलांग लगाते हैं। राष्ट्रीय
भावना और देश प्रेम का जज्बा उन्हें सब कुछ न्यौछावर कर देने के लिए प्रेरित
करता है।
विशाल
भारद्वाज अच्छे किस्सागो हैं। उनकी कहानी में गुलजार के गीत घुल जाते हैं तो फिल्म
अधिक मीठी,तरल और गतिशील हो जाती है। ‘रंगून’ में विशाल और गुलजार की पूरक प्रतिभाएं मूल कहानी का वेग
बनाए रखती हैं। हुनरमंद विशाल भारद्वाज गंभीर प्रसंगों में भी जबरदस्त ह्यूमर पैदा
करते हैं। कभी वह संवादों में सुनाई पड़ता है तो कभी कलाकारों के स्वभावों में
दिखता है। ‘रंगून’ में
भी पिछली फिल्मों की तरह विशाल भारद्वाज ने सभी किरदारों को तराश कर पेश किया है।
हमें सारे किरदार अपनी भाव-भंगिमाओं के साथ याद रहते हैं। यही काबिल निर्देशक की
खूबी होती है कि पर्दे पर कुछ भी बेजा और फिजूल नहीं होता। मुंबई से तब के बर्मा
के बॉर्डर तक पहुंची इस फिल्म के सफर में अधिक झटके नहीं लगते। विशाल भारद्वाज और
उनकी तकनीकी टीम सभी मोड़ों पर सावधान रही है।
विशाल
भारद्वाज ने सैफ अली खान को ‘ओमकारा’ और शाहिद कपूर को ‘कमीने’ व ‘हैदर’ में निखरने का मौका दिया था। एक बार फिर दोनों कलाकारों को
बेहतरीन किरदार मिले हैं, जिन्हें पूरी संजीदगी से उन्होंने निभाया है। बतौर
कलाकार सैफ अली खान अधिक प्रभावित करते हैं। नवाब मलिक के किरदार में शाहिद कपूर
कहीं-कहीं हिचकोले खाते हैं। यह उस किरदार की वजह से भी हो सकता है। सैफ का किरदार
एकआयामी है, जबकि शाहिद को प्रसंगों के अनुसार भिन्न आयाम व्यक्त करने थे। मिस
जूलिया के रूप में कंगना रनोट आरंभिक दृश्यों में ही भा जाती हैं। रूसी बिलमोरिया
और नवाब मलिक के प्रेम प्रसंगों में मिस जूलिया के दोहरे व्यक्तित्व की झलक
मिलती है, जिसे कंगना ने बखूबी निभाया है। एक्शन और डांस करते समय वह पिछली
फिल्मों से अधिक आश्वस्त नजर आती हैं। बतौर अदाकारा उनमें आए निखार से ‘रंगून’ को फायदा हुआ है। मिस
जूलिया के सहायक किरदार जुल्फी की भूमिका निभा रहे कलाकार ने बेहतरीन प्रदर्शन
किया है। अन्य सहयोगी कलाकार भी दृश्यों के मुताबिक खरे उतरे हैं।
विशाल
भारद्वाज की फिल्मों में गीत-संगीत फिल्म की कहानी का अविभाज्य हिस्सा होता है।
गुलजार उनकी फिल्मों में भरपूर योगदान करते हैं। दोनों की आपसी समझ और परस्पर
सम्मान से फिल्मों का म्यूजिकल असर बढ़ जाता है। इस फिल्म के गानों के फिल्मांकन
में विशाल भारद्वाज ने भव्यता बरती है। महंगे सेट पर फिल्मांकित गीत और नृत्य
तनाव कम करने के साथ कहानी आगे बढ़ाते हैं।
अवधि- 167 मिनट
स्टार- चार स्टार
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