मुझ में है साहस - कंगना रनोट
-अजय ब्रह्मात्मज
दस साल तो हो ही गए। 2006 में अनुराग बसु की ‘गैंगस्टर’ आई थी। ‘गैंगस्टर’ में कंगना रनोट पहली बार
दिखी थीं। सभी ने नोटिस किया और उम्मीद जतायी कि इस अभिनेत्री में कुछ है। अगर
सही मौके मिले तो यह कुछ कर दिखाएगी। कंगना को मोके मिले। उतार-चढ़ाव के साथ कंगना
ने दस सालों का लंबा सफर तय कर लिया। कुछ यादगार फिल्में दीं। कुछ पुरस्कार
जीते। अपनी खास जगह बनाई। आज कंगना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की अगली पंक्ति की
हीरोइन हैं। और यह सब उन्होंने बगैर किसी खान के साथ काम किए हासिल किया है। गौर
करें तो किसी लोकप्रिय निर्देशक ने उनके साथ फिल्म नहीं की है। वह प्रयोग भी कर
रही हैं। अपेक्षाकृत नए निर्देशकों के साथ काम कर रही हैं। अपने रुख और साफगोई से
वह चर्चा में बनी रहती हैं। याद करें तो पहली फिल्म ‘गैंगस्टर’ में उनका नाम सिमरन था और
उनकी आगामी फिल्म ‘सिमरन’
है,जिसके निर्देशक हंसल मेहता हैं।
विशाल भारद्ाज की फिल्म ‘रंगून’ निर्माण के स्तर पर कंगना
रनोट की सबसे मंहगी और बड़ी फिल्म है। हालांकि विशाल भारद्वाज का बाक्स आफिस
रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है,फिर भी उन्होंने दर्शकों और इंडस्ट्री के बीच नाम
हासिल किया है। उनकी शैली अलग है। कंगना कहती हैं,’अभी
तक मैंने ज्यादातर सीमित बजट की ही फिल्में की हैं। पहली बार बड़े स्केल की
फिल्म कर रही हूं। ऐसी फिल्मों में दर्शकों के मनोरंजन के लिए भरपूर मसाले होते
हैं। दूसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में बनी यह अभिनेत्री जूलिया की कहानी है।
वह रूसी बिलमोरिया की मिस्ट्रेस है। दोनों के रिश्ते में लस्ट है। मलिक नवाब से
जूलिया को प्यार हो जाता है। इस प्रेमत्रिकोण पर ही पूरी फिल्म है। चूंकि विशाल
भारद्वाज फिल्म के निर्देशक हैं,इसलिए किरदारों के साथ ही तब के हालात पर भी जोर है।
मुझे यकीन है कि दर्शकों को मनोरंजन के साथ जानकारी भी मिलेगी। वे उस समय की
दुनिया और भारत से परिचित होंगे।‘
अपनी फिल्म के किरदार पर बात करते-करते कंगना रनोट
समाज की भी बातें करने लगती हैं। वह मानती हैं कि हमेश सोसायटी में दो तरह के लोग
होते हैं। एक जिनका राज होता है,जो समाज का ऊपरी तबका होता है। दूसरे वे लोग होते
हैं,जो उनकी तरह होने की कोशिश करते हैं। उनकी जमात में शामिल होना चाहते हैं।
उसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। हीनभावना की वजह से वे ज्यादा आक्रामक हो जाते
हैं। जूलिया कुछ ऐसे ही मिजाज की लड़की है। वह ज्वाला देवी से जूलिया बन जाती है।
दर्शकों को जूलिया और कंगना में कई समानताएं दिख सकती हैं।
इस फिल्म में साथ काम करने के अनुभव से कंगना मानती
हैं,’ सैफ अली खान बेहद चार्मिंग इंसान
हैं। वे पांच मिनट में किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं। किसी भी एज ग्रप और
इंटरेस्अ के व्यक्ति को वे पसंद आ जाएंगे। यह उनकी खूबी है। मुझे तो बहुत अच्छा
लगा। शाहिद भी अच्छे हैं। मुझे उनके साथ इंटरैक्ट करने का ज्यादा मौका नहीं
मिला। जितना समझ पाई,उस हिसाब से वे दिल के अच्छे व्यक्ति लगे।‘
कंगना रनोट आज डिमांड में हैं और वह डिमांड भी करने
लगी हैं। उनके बारे हर महीने कोई खबर आ जाती है। उनके नखरों और मांग की बातें की
जाती हैं। कहा जाता है कि वह निर्देशक को बहुत परेशान करती हैं। कंगना इन सवालों
का जवाब देना फिजूल मानती है। वह अपने बारे में कहती हैं,’ अभी मुझे अलग-अलग स्क्रिप्ट मिल रही हैं। मैं चुन सकने की
स्थिति में हूं। हालांकि कंफ्यूजन भी है। मैं अपने हिसाब से रास्ता बुन रही हूं।
छोटी-मोटी बातें तो चलती ही रहती हैं। हर व्यक्ति के काम करने की जगह पर खटपट
चलती रहती है। बिल्कुल शांति का माहौल कैसे रह सकता है। ऐसी शांति तो मरने के बाद
ही होती है। मैं कभी पीठ नहीं दिखाती। पीठ दिखाने की कोई वजह भी नहीं है। अगर कोई
मुझे चिढ़ा या सता रहा है तो मैं पलट कर जवाब देती हूं। समय ने मुझे सब कुछ सीखा
दिया है। मेरे अंदर साहस है। खराब वक्त से मैं निकल आई हूं। मैं किसी को भी टपकी
मार कर जाने की अनुमति नहीं दूंगी।
कंगना रनोट अपने लेखन में लगी हैं। वह डायरेक्शन के
साथ फिल्म निर्माण के अन्य क्षेत्रों से भी जुड़ना चाहती हैं।‘वह जोर देकर कहती हैं,’ आने वाली फिल्मों में मेरी
हिस्सेदारी और भी डिपार्टमेंट में रहेगी।‘
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