फिल्म समीक्षा : हरामखोर
फिल्म रिव्यू
हरामखोर
-अजय ब्रह्मात्मज
ऐसी नहीं होती हैं हिंदी फिल्में। श्लोक शर्मा की ‘हरामखोर’ को किसी प्रचलित श्रेणी में
डाल पाना मुश्किल है। हिंदी फिल्मों में हो रहे साहसी प्रयोगों का एक नमूना है ‘हरामखोर’। यही वजह है कि यह फिल्म
फेस्टिवलों में सराहना पाने के बावजूद केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड(सीबीएफसी)
में लंबे समय तक अटकी रही। हम 2014 के बाद फिल्मों के कंटेंट के मामले में अधिक
सकुंचित और संकीर्ण हुए हैं। क्यों और कैसे? यह अलग चर्चा का विषय है। ‘हरामखोर’ सीबीएफसी की वजह से देर से
रिलीज हो सकी। इस बीच फिल्म के सभी कलकारों की उम्र बढ़ी और उनकी दूसरी फिल्में
आ गईं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी और श्वेता त्रिपाठी दोनों ही ‘हरामखोर’ के समय अपेक्षाकृत नए
कलाकार थे। यह फिल्म देखते हुए कुछ दर्शकों को उनके अभिनय का कच्चापन अजीब लग
सकता है। हालांकि इस फिल्म कि हसाब से वही उनकी खूबसूरती और प्रभाव है,लेकिन
नियमित दर्शकों को दिक्कत और परेशानी होगी। 20-25 सालों के बाद फिल्म अधेताओं को
याद भी नहीं रहेगा कि यह ‘मसान’ और ‘बजरंगी भाईजान’ व ‘रमन राघव2.0’ के पहले बन चुकी थी।
बहरहाल,’हरामखोर’ एक कस्बे में पिता के साथ पल रही एकाकी किशोरी संध्या की
कहानी है। इस फिल्म को उसकी नजर से देखें तो शाम के करीब आती संध्या स्वाभाविक
लगेगी। टीचर शाम से मिल रही तवज्जो से उसे सुकून मिलता है। वह पिटने और दुत्कारे
जाने के बावजूद टीचर शाम के प्रति आकर्षित रहती है। टीचर शाम की पृष्ठभूमि के
मद्देनजर उसके व्यक्त्त्वि का श्याम पक्ष अस्वाभाविक नहीं लगता। देखें तो इस
फिल्म के सभी किरदार किसी न किसी कमी और वंचना के शिकार हैं। वे सभी हरामखोर हैं।
संध्या के साथ टयूशन पढ़ रहे कमल और मिंटू का संध्या के प्रति आकर्षण और प्रेम
किशोर उम्र की उच्छृंखलता है। श्लोक शर्मा बगैर किसी आग्रह के उनके बीच पहुंच
जाते हैं और उनकी गतिविधियों को कहानी में पिरोते हैं। उन्होंने अपने किरदारों को
तराशा और छांटा नहीं है।
श्वेता त्रिपाठी और नावाजुद्दी सिद्दीकी के अभिनय का
कच्चापन और अनगढ़पन ही इस फिल्म की विशेषता है। कमल और मिंटू की भूमिका में मास्टर इरफान खान
और मोहम्मद समद की सहजता अच्छी लगती है। श्लोक शर्मा और उनकी तकनीकी टीम ने
फिल्म को सजाने की कोशिश भी नहीं की है। फिल्म का लोकेशन कहानी को विश्वसनीय
बनाता है। सीमित बजट और संसाधनों में उन्होंने ‘हरामखोर’ को मुमकिन किया है। निश्चित ही हमें श्लोक शर्मा के साहस और
युक्ति की तारीफ करनी होगी। उनके निर्माताओं और निर्माण सहयोगियों को बधाई देनी
होगी कि उन्होंने फिल्म में ईमानदारी बरती और उसके प्रदर्शन में विश्वास रखा।
अवधि- 94 मिनट
ढाई स्टार
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