बड़ी कुर्बानियां दी हैं मैंने : प्रियंका चोपड़ा
-मयंक शेखर
प्रियंका चोपड़ा हाल ही में अमेरिका से अपने वतन लौटी थीं। वहां
से, जहां डोनाल्ड ट्रंप नए राष्ट्रपति
बने हैं। वहां से, जहां के ग्लैमर जगत में प्रियंका भारत का नाम रौशन कर रही हैं।
हमारे सहयोगी टैबलॉयड मिड डे के एंटरटेनमेंट एडीटर मयंक शेखर उनकी सोच के हमराज
बने। पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :-
-बीते
दो-तीन बरसों में आप के करियर ने अलग मोड़ लिया है। ‘क्वांटिको’ के अगुवा केली ली से हुई मुलाकात
को आप के करियर में आते रहे मोड़ का विस्तार कहें। साथ ही उस मुलाकात में और उसके
बाद क्या कुछ हुआ।
0
मुझे नहीं लगता कि मैं एक खोज हूं। उसकी बजाय मैं एक अनुभव हूं। ‘आओ चलो, उसे लौंच करते हैं’। ऐसा मेरे संग कभी नहीं हुआ। लोगों को मेरे करियर के आगाज से
लेकर अब तलक मेरी प्रतिभा को महसूस करना पड़ा है। तभी प्रारंभ से ही हर दो-तीन साल
के अंतराल पर मेरे करियर में अहम मोड़ आते रहे हैं। ‘क्वांटिको’ में भी मैं इसलिए कास्ट की गई, क्योंकि वह किसी भारतीय कलाकार का अमरीकियों के लिए सबसे आसान परिचय था।
जैसा निर्माताओं ने मुझे बताया। एफबीआई एजेंट के किरदार में खुद को तब्दील कर वह
काम मेरे लिए आसान रहा। इस किस्म का काम अब तलक किसी भारतीय कलाकार ने नहीं किया
है।
-आप
ने अपना सिंगल वहां लौंच किया था। पिट बुल के साथ भी गाना तैयार किया। उनके चलते
वे आप को जान सके।
0
नहीं। केली ली से मेरी मुलाकात एक पार्टी में हुई थी।
-
यानी, वह आप का टर्निंग पॉइंट था।
0 लेकिन , मैं किसी की खोज नहीं थी।
पार्टी में केली मुझसे कहने लगीं कि मैं टिपिकल हिंदुस्तानी कलाकारों की तरह नहीं लगती। सिनेमा, अदाकारी को लेकर मेरे विचारों से वे प्रभावित थीं। उस मुलाकात
में केली ने यह नहीं कहा कि मैं बड़ी हसीन हूं। या मैं आप को तो कास्ट करूंगी ही।
मुझे लगता है कि आज की तारीख में कहीं की भी प्रतिभा ग्लोबल फिल्म परिवार का
हिस्सा बन सकती हैं। वही हुआ। मेरा चयन रिकॉर्डिंग आर्टिस्ट के लिए भी हुआ। इसलिए
नहीं कि मैं गाना गा सकती हूं। वह तो हर कोई कर सकता है। मुझे बताया कि मैं उस काम
के लिए मुफीद थी। मुझे नहीं मालूम कि उनकी मुफीद की क्या परिभाषा है। मुझे नहीं
पता कि मेरे फेवर में किन चीजों ने फेवर किया। बस इतना जानती हूं कि मैं मिलते रहे
कामों को ढंग से करती रही। आज आप के समक्ष हूं।
-अपने 30वें जन्मदिन पर आप वहां के ह्वाइट हाउस में आयोजित रात्रिभोज की
मेहमान बनीं। अमरीका की जानी-मानी हस्तियों से मिलीं। उन पलों को सोच आप को नहीं
लगता कि वाह, कितना कुछ हासिल कर लिया
मैंने।
0 मैं महज 17 की उम्र में मिस वल्र्ड बनी। उसके बाद हिंदी सिनेमा का हिस्सा
बनी। मैं 20 की भी नहीं थी, जब कई नामी ग्लोबल लीडर से मेरी मुलाकात हो चुकी थी। लिहाजा बड़े-बड़े
लोगों से मिलने पर हतप्रभ वाले एहसास तो बहुत पहले जा चुके हैं। अब काम की खातिर
भारत, अमेरिका या ब्रिटेन में मैं लोगों
से बतौर सहकर्मी मिला करती हूं। मैं किसी की आभा में नहीं आती। सिवाय गायकों को
छोड़। उन्हें देख, सुन या मिल तो पता नहीं
मुझे क्या हो जाता है।
-
आप इस प्रवास से पहले भी
अमेरिका में रह चुकी हैं। 12 से 16वें साल तक ही। आप के क्लास में नस्लभेदी छात्र
भी थे, इसलिए आप वहां से लौट आईं। अब
डोनाल्ड ट्रंप की जीत से आप क्या मतलब निकालती हैं।
-
0 तब नस्लभेदी टिप्पणी
करने वाली लड़की से ज्यादा स्कूल के माहौल को मैं कसूरवार मानती हूं। वह लड़की
मुझसे प्रतिस्पर्धा रखती थी। दौड़ में आगे रहने की खातिर भी वह मन में मेरे प्रति
कड़वाहट रखती थी। रहा सवाल वहां के हालिया चुनाव का तो मैं कौन होती हूं, ट्रंप की जीत के मायने मालूम करने वाली। मैं तो बस वहां काम
करती हूं। लेकिन हां, मैंने अपने दोस्तों व सहकर्मियों में उनकी जीत से हुई निराशा महसूस की है। मैंने
लोगों में खासा कन्फ्यूजन देखा। इस बात को लेकर कि अरे यह क्या हो गया। कैसे हो
गया। दरअसल हर मुल्क के अपने मसले हैं। हमारे अपने हैं। उनके अपने। आप को अपना
स्टैंड पता होना होना चाहिए। जोर इस बात पर हो कि आप के कर्मों से देश के टुकड़े न
हों।
-नफरत के निशां अब भी नहीं मिटे हैं। हाल में आप ट्वीटर
पर ट्रॉल की गई थीं। आप को अरबी आतंकी तक कहा गया। क्या यह ट्रंप का अमेरिका जाहिर
करता है।
0 ऐसा मानना नाजायज होगा। पूरी दुनिया में अव्यावहारिक
नेता चुने जाते रहे हैं। यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इस सिलसिले पर कैसे लगाम
लगाई जाए। हम साथ मिलकर काम करना भी भूल जाते हैं। हमारा अधिकांश वक्त तो अपनी
सरकार को कोसने में चला जाता है। यह कहते हुए कि उसने हमारे लिए क्या किया। मेरा
कहना है कि भई, हमने अपने देश के लिए क्या किया। इंसानियत जिंदा रहे, उसके लिए कुछ भी किया। नहीं। मैं मिस वल्र्ड जैसा साउंड नहीं
करना चाहती, मगर यह हकीकत है। रौ में आ
नेताओं को कोसना बदस्तूर जारी रहा, तो हमारी दशा जस की तस बनी रहने वाली है।
-
आप इतना काम कर रही हैं।
जीवन के साथ काम का संतुलन है भी कि नहीं।
0 है तो। पर हां, डेडलाइन के साथ। दरअसल
हमें कुछ भी यूं ही नहीं मिलता। मैंने बहुत कुर्बानियां दी हैं। तब जाकर यह स्टेटस
हासिल हुआ है। मैं उन चुनिंदा लोगों में से हूं, जो अपार मौके व कहीं की भी स्वीकार्यता हासिल कर लेते हैं।
लिहाजा अपने लिए दो महीने भी छुट्टियां लेने का ख्याल दिल में नहीं आता।
-अपने लिए तो छोड़ ही दें। डेटिंग के लिए भी वक्त निकाल पाती हैं।
0 मुझे ‘डेटिंग’ का कौन्सेप्ट पल्ले नहीं पड़ता। भारत में तो वैसे भी डेटिंग
कहां होती है। आप दोस्तों से मिलते हो। आप के तार जुड़ते हैं
-आप पुरातन काल या टिंडर जैसे डेटिंग साइट आने से पहले की बातें कर रही
हैं।
0 हो सकता है। मैं अब तक उस साइट का हिस्सा नहीं बनी हूं। न कभी किसी को
डेट किया है। बाकी जो जब तक शादीशुदा नहीं है, वह तब तलक सिंगल ही
कहलाता है।
Comments