दरअसल : इंतजार है ईमानदार जीवनियों का
दरअसल...
इंतजार है ईमानदार जीवनियों का
-अजय ब्रह्मात्मज
इस महीने ऋषि कपूर और करण जौहर की जीवनियां प्रकाशित
होंगी। यों दोनों फिल्मी हस्तियों की जीवनियां आत्मकथा के रूप में लाई जा रही
हैं। उन्होंने पत्रकारों की मदद से अपने जीवन की घटनाओं और प्रसंगों का इतिवृत
पुस्तक में समेटा है। मालूम नहीं आलोचक इन्हें जीवनी या आत्मकथा मानेंगे? साहित्यिक विधाओं के मुताबिक अगर किसी के जीवन के बारे में
कोई और लिखे तो उसे जीवनी कहते हैं। हां,अगर व्यक्ति स्वयं लिखता है तो उसे आत्मकथा
कहेंगे। देव आनंद(रोमासिंग विद लाइफ) और नसीरूद्दीन शाह(एंड देन वन डे: अ मेम्वॉयर)
ने आत्मकथाएं लिखी हैं। दिलीप कुमार की ‘द सब्सटांस ऐंड द शैडो : ऐन
ऑटोबॉयोग्राफी’ आत्मकथा के रूप में घोषित और
प्रचारित होने के बावजूद आत्मकथा नहीं कही जा सकती। यह जीवनी ही है,जिसे उदय तारा
नायर ने लिखा है। इसी लिहाज से ऋषि कपूर और करण जौहर की पुस्तकें मुझे जीवनी का
आभास दे रही है।
हिंदी फिल्मों के स्टार और फिल्मकार अपने जीवन
प्रसंगों के बारे में खुल कर बातें नहीं करते। नियमित इंटरव्यू में उनके जवाब
रिलीज हो रही फिल्म तक सीमित रहते हैं। इन दिनों तो फिल्म स्टारों के इंटरव्यू
में उनके पीआर और मैनेजर पहले ही हिदायत दे देते हैं कि सवाल फिल्म या इवेंट से
ही संबंधित हो। अब तो वे खुद इंटरव्यू के दौरान बैठे रहते हैं। अगर कभी स्टार
जवाब देने में बह जाए तो वे आंखें तरेरने लगते हैं। उनका दबाव और हस्तक्षेप इतना
बढ़ गया है कि वे कई बार पत्रकार और स्टार तक को सवाल व जवाब से रोक देते हैं।
ऐसी स्थिति में हर बातचीत यांत्रिक और लगभग एक जैसी होती है। इसमें एक और रोचक
समस्या सन्निहित है। हम पत्रकार जब किसी नई फिल्म के बारे में बातचीत करने जाते
हैं तो एकत्रित सूचनाओं के आधार पर सवाल करते हैं। कोशिश रहती है कि फिल्म और
फिल्म बनाने की प्रक्रिया पर जानकारियां मिलें। स्टार और डायरेक्टर की पूरी
कोशिश यह रहती है कि वे फिल्म के बारे में कुछ भी नहीं पता चलने दें। सवाल-जवाब
की इस लुकाछिपी की वजह से इन दिनों जीवन शैली,परिधान और उनकी यात्राओं से संबंधित
बातें ही हो पाती हैं। अपने यहा फिल्म स्टार कुछ भी बोलने में हिचकने के साथ
डरते भी हैं। हम ने देखा कि असहिष्णुता के मामले में अपना पक्ष रखने के नतीजे
आमिर खान और शाह रूख खान ने भुगते। हम कल्पना नहीं कर सकते कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री
की कोई हस्ती मेरिल स्ट्रिप की तरह देश के सर्वोच्च पद पर बैठी हस्ती पर सवाल
करे।
तात्पर्य यह कि अभिव्यक्ति के इस संकोच की वजह से
जीवनी और आत्मकथाएं रोचक नहीं हो पातीं। उन्हें पढ़ते हुए कोई नई जानकारी नहीं
मिलती। कई बार तो यह भी लगता है कि फिल्मी हस्तियों की तरफ से तथ्यों की
लीपापोती की जा रही है। जैसे वे पर्दे पर आने के पहले मेकअप कर लेते हैं,वैसे ही
पन्नों पर आने के पहले बातों को डिजाइन और मेकअप से पोत देते हैं। करण जौहर की
फिल्मों और जीवनशैली में जिंदगी की सच्चाइयों की झलक भी डिजाइन की जाती है। उनके
शो और इवेंट स्क्रिप्टेड होते हैं। मुझे उनकी जीवनी में उनकी जिंदगी की सच्चाई
की कम उम्मीद है। वे सेक्सुअलिटी के मामले को दबे-ढके तरीके से ही उजागर करेंगे।
हां,ऋषि कपूर की जीवनी रोचक हो सकती है। उन्होंने ट्वीट किया है कि यह दिल से
लिखी मेरी जिंदगी और घड़ी है...जैसा मैंने जिया। अगर वे वादे और पुस्तक के शीर्षक
के मुताबिक खुल्लमखुल्ला कुछ कह पाते हैं तो बढि़या।
बाक्स आफिस
कलेक्शन के अखाड़े में दंगल विजेता
हिंदी फिल्मों में 100 करोड़ क्लब कलेक्शन और कमाई
का पहला क्वालिफाइंग कदम बन चुका है। इसके बाद ही किसी फिल्म को सफल माना जाता
है। ज्यादा सफल फिल्में 200-300 करोड़ तक पहुंचती हैं। कुछ फिल्मों ने ही 300
करोड़ से अधिक का कलेक्शन किया है। ‘दंगल’ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की पहली फिल्म है,जिसने 350 करोड़
से अधिक का कलेक्शन कर एक नया मानदंड स्थापित कर दिया है। इसने सिर्फ 19 दिनों
में 353ण्68 करोड़ का कलेक्शन किया है। अब देखना है कि यह 375 से 400 करोड़ तक
पहुंच पाती है कि नहीं?
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