दरअसल : स्‍वागत 2017,अलविदा 2016



दरअसल...
स्‍वागत 2017,अलविदा 2016
-अजय ब्रह्मात्‍मज
2016 समाप्‍त होते-होते नीतेश तिवारी की दंगल ने हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री पर छाए शनि को मंगल में बदल दिया। इस फिल्‍म के अपेक्षित कारोबार से सभी खुश हैं। माना जा रहा है कि दंगल का कारोबार पिछले सारे रिकार्ड को तोड़ कर एक नया रिकार्ड स्‍थापित करेगा। दंगल की कामयाबी दरअसल उस ईमानदारी की स्‍वीकृति है,जो आमिर खान और उनकी टीम ने बरती। कभी सोच कर देखें कि कैसे एक निर्देशक,स्‍टार और फिल्‍म के निर्माता मिल कर एक ख्‍वाब सोचते हैं और सालों उसमें विश्‍वास बनाए रखते हैं। दंगल के निर्माण में दो साल से अधिक समय लगे। आमिर खान ने किरदार के मुताबिक वजन बढ़ाया और घटाया। हमेशा की तरह वे अपने किरदार के साथ फिल्‍म निर्माण के दौरान जीते रहे। उनके इस समर्पण का असर फिल्‍म यूनिट के दूसरे सदस्‍यों के लिए प्रेरक रहा। नतीजा सभी के सामने है।
दंगल साल के अंत में आई बेहतरीन फिल्‍म रही। इसके साथ 2016 की कुछ और फिल्‍मों का भी उल्‍लेख जरूरी है। हर साल रिलीज हुई 100 से अधिक फिल्‍मों में से 10-12 फिल्‍में ऐसी निकल ही आती हैं,जिन्‍हें हम उस साल का हासिल कह सकते हैं। 2016 में हिंदी फिल्‍मों की वैरायटी बढ़ी है। युवा फिल्‍मकारों ने नए प्रयोग किए। उन्‍हें सराहना मिली। निश्चित ही फिल्‍म एक ऐसा कला व्‍यापार है,जिसमें मुनाफे की उम्‍मीद बनी रहती है। फिर भी उन प्रयासों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता,जिनसे हिंदी सिनमा को गहराई के साथ विस्‍तार मिलता है। ऐसी फिल्‍में युवा फिल्‍मकारों के प्रेरणा बनती हैं। फिल्‍म निर्माता भी भविष्‍य में ऐसी फिल्‍मों के लिए तैयार रहते हैं।
2016 की अपनी प्रिय फिल्‍मों में मैं जुगनी,जुबान,निल बटे सन्‍नाटा,पिंक,की एंड का,एयरलिफ्ट,लाल रंग,नीरजा,अलीगढ़,’’धनक,वेटिंग,उड़ता पंजाब ,फैन,मदारी,बुधिया सिंह-बॉर्न टू रन,रमन राघव 2.0,पिंक,एम एस धौनी-द अनटोल्‍ड स्‍टोरी,डियर जिंदगी और दंगल को शामिल करूंगा। हो सकता है कि इनमें से कुछ फिल्‍में आप सभी के शहरों के सिनेमाघरों में नहीं पहुंच सकी हों। प्रदर्शकों और वितराकों का तंत्र कुछ फिल्‍मों का कारोबार पहले ही तय कर देता है। उनके मैनेजर आउट ऑफ बाक्‍स फिल्‍मों को तरजीह नहीं देते,जबकि उनके हिसाब से हिट समझी जा रही फिल्‍में भी बाक्‍स आफिस पर औंधे मुंह गिरती हैं। बमुश्किल वे इन फिल्‍मों की रिलीज के लिए तैयार भी होते हैं तो उन्‍हें थिएटर में ऐसी शो टाइमिंग मिलती है कि दर्शक अपनी मर्जी से फिल्‍म नहीं देख पाते।
मैं तो कहूंगा कि इनमें से कुछ फिल्‍में आप ने नहीं देखी हों तो उन्‍हें देखने का इंतजाम करें। अभी तो रिलीज के बाद फिल्‍में देखने के इतने माध्‍यम उपलब्‍ध हैं। आप गौर करेंगे कि पिछले साल की उल्‍लेखनीय फिल्‍मों में से किसी का भी निर्देशक स्‍थापित नाम नहीं है। वे सभी नए हैं। वे देश की सच्‍ची कहानियं चुन रहे हैं। मेरी पसंद की फिल्‍मों में से पांच तो बॉयोपिक हैं। उनमें से एक धौनी के अलावा बाकी सभी नामालूम व्‍यक्तियों पर हैं। निर्देशकों ने उनकी साधारण जिंदगियों की असाधारण उपलब्धियों को खास परिप्रेक्ष्‍य दिया। सभी फिल्‍मकार अपनी सोच से कुछ खास कहना चाहते हैं। और भी एक बात गौर करने की है कि इन निर्देशकों में कोई भी फिल्‍म इंडस्‍ट्री से नहीं आया है। वे सभी आउटसाइडर हैं। अपनी क्रिएटिव क्षमता के बल पर वे पहचान बना रहे हैं। मैं पिछले दस सालों से यह दोहरा रहा हूं कि हिंदी फिल्‍मों को आउटसाइटर ही विस्‍तार दे रहे हैं। उनके पास देश की माटी की कहानियां हैं। उनके पास जिंदगी के धड़कते अनुभव हैं।
उम्‍मीद है कि 2017 में भी यह सिलसिला कायम रहेगा। ऐसे फिल्‍मकारों और उनकी फिल्‍मों का दर्शकों का प्‍यार मिलेगा।
बाक्‍स आफिस
13 दिनों में दंगल के 300 करोड़

नीतेश तिवारी की दंगल नए कीर्तिमान रच रही है। यह पहली हिंदी फिल्‍म है,जिसने दूसरे हफ्ते के छह दिनों में 100 करोड़ से अधिक का कारोबार किया है। कुल 13 दिनों में 304.08 का कारोबार कर दंगल संकेत दे रही है कि यह सबसे अधिक कमाई की फिल्‍म हो जाएगी। 300 करोड़ से अधिक को कलेक्‍शन करनेवाली चौथी फिल्‍म हो गई है दंगल। अगर दर्शकों का प्रेम जारी रहा तो निश्चित ही यह अव्‍वल नंबर पर आ जाएगी। इस हफ्ते भी किसी नई फिल्‍म की रिलीज न होने से इसके शो कम नहीं हुए हैं।
 

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