Posts

Showing posts from January, 2017

देसी किरदार होते हैं मजेदार : भूमि पेडणेकर

Image
    -अजय ब्रह्मात्‍मज भूमि पेडणेकर अभी मुंबई में ‘ टॉयलेट-एक प्रेम कथा ’ की शूटिंग कर रही हैं। इसी फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में वे कुछ महीनों पहले मथुरा और आगरा में थीं। ‘ दम लगा के हईसा ’ की रिलीज के बाद से उनकी कोई फिल्म अभी तक नहीं आई है। इस बीच उन्होंने अपनी पहली फिल्म के हीरो आयुष्‍मान खुराना के साथ ही ‘ शभ मंगल सावधान ’ की शूटिंग पूरी कर ली है। आयुष्‍मान और भूमि दोनों ही आनंद एल रॉय प्रस्तुत इस फिल्म में नए रूप-रंग और अंदाज में दिखेंगे। ‘ शुभ मंगल सावधान ’ के निर्देशक प्रसन्ना हैं।     हमारी बात पहले ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ से ही शुरू होती है। इस फिल्म की घोषणा के समय से ही टायटल की विचित्रता के कारण जिज्ञासा बनी थी। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ नीरज पांडे के प्रॉडक्‍शन की फिल्म है। इसे श्री नारायण सिंह निर्देशित कर रहे हैं। भूमि बताती हैं, ‘ ‘ आगरा और मथुरा में इस फिल्म की शूटिंग में बेहद मजा आया। साथ में अक्षय कुमार जैसे अभिनेता हों तो हर तरह की सुविधा हो जाती है। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ रोमांटिक सटायर है। दर्शकों को यह यूनीक लव स्टोरी बहुत मजेदार लगेगी। फिल्

फिल्‍म समीक्षा - रईस

Image
फिल्म रिव्‍यू मोहरे हैं गैंगस्‍टर और पुलिसकर्मी रईस     -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म के नायक शाह रुख खान हों और उस फिल्म के निर्देशक राहुल ढोलकिया तो हमारी यानी दर्शकों की अपेक्षाएं बढ़ ही जाती हैं। इस फिल्म के प्रचार और इंटरव्यू में शाह रुख खान ने बार-बार कहा कि ‘ रईस ’ में राहुल ( रियलिज्‍म ) और मेरी ( कमर्शियल ) दुनिया का मेल है। ‘ रईस ’ की यही खूबी और खामी है कि कमर्शियल मसाले डालकर मनोरंजन को रियलिस्टिक तरीके से परोसने की कोशिश की गई है। कुछ दृश्‍यों में यह तालमेल अच्छा लगता है, लेकिन कुछ दृश्‍यों में यह घालमेल हो गया है।     ‘ रईस ’ गुजरात के एक ऐसे किरदार की कहानी है, जिसके लिए कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। ‘ बचपन में वह मां से पूछता भी है कि क्या यह सच है तो मां आगे जोड़ती है कि उस धंधे की वजह से किसी का बुरा न हो। ‘ रईस ’ पूरी जिंदगी इस बात का ख्‍याल रखता है। वह शराब की अवैध बिक्री का गैरकानूनी धंधा करता है, लेकिन मोहल्ले और समाज के हित में सोचता रहता है। यह विमर्श और विवाद का अलग विषय हो सकता है कि नशाबंदी वाले राज्य में शर

फिल्‍म समीक्षा - काबिल

Image
फिल्म रिव्‍यू काबिल इमोशन के साथ फुल एक्शन -अजय ब्रह्मात्‍मज     राकेश रोशन बदले की कहानियां फिल्मों में लाते रहे हैं। ‘ खून भरी मांग ’ और ‘ करण-अर्जुन ’ में उन्होंने इस फॉर्मूले को सफलता से अपनाया था। उनकी फिल्मों में विलेन और हीरो की टक्कर और अंत में हीरो की जीत सुनिश्वित होती है। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का बड़ा समूह ऐसी फिल्में खूब पसंद करता है, जिसमें हीरो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले। चूंकि भारतीय समाज में पुलिस और प्रशासन की पंगुता स्पष्‍ट है, इसलिए असंभव होते हुए भी पर्दे पर हीरो की जीत अच्छी लगती है। राकेश रोशन की नयी फिल्म ‘ काबिल ’ इसी परंपरा की फॉर्मूला फिल्म है, जिसका निर्देशन संजय गुप्ता ने किया है। फिल्म में रितिक रोशन हीरो की भूमिका में हैं।     रितिक रोशन को हम ने हर किस्म की भूमिका में देखा और पसंद किया है। उनकी कुछ फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन फिल्मों में भी रितिक रोशन के प्रयास और प्रयोग को सराहना मिली। 21वीं सदी के आरंभ में आए इस अभिनेता ने अपनी विविधता से दर्शकों और प्रशंसकों को खुश और संतुष्‍ट किया है। रितिक रोशन को ‘ काबिल ’ लोकप्रियता के नए

तोड़ी हैं अपनी सीमाएं -शाह रूख खान

Image
‘ रईस ’ ने कंफर्ट से बाहर निकाला : शाह रुख खान नए साल में शाह रुख खान अलग सज और धज के आ रहे हैं। वे दर्शकों को ‘ रईस ’, ‘ द रिंग ’ और आनंद एल राय की फिल्म की सौगात देंगे , जो उनके टिपिकल अवतार से अलग है। वे ऐसा क्यों और किस तरह कर पाए , पढें खुद उनकी जुबानी     -अजय ब्रह्मात्‍मज वे बताते हैं , ’ मैंने अमूमन ऐसे किया है। हालांकि लोगों को सामयिक घटनाक्रम ही नजर आता है। ‘ रईस ’ भी उसी की बानगी है। दरअसल ‘ चेन्नई एक्सप्रेस ’, ‘ हैप्पी न्यू ईयर ’ और ‘ दिलवाले ’ साथ आ गईं थीं। हालांकि नहीं आनी चाहिए थीं। वह इसलिए कि मैंने ‘ हैप्पी न्यू ईयर ’ के बाद ‘ रईस ’ की थी। इसकी शूटिंग खत्म हो रही थी और हम हैदराबाद से ‘ दिलवाले ’ शुरू करने वाले थे। तब हम उसकी सिर्फ बल्गारिया वाले हिस्से की शूटिंग करने को थे , कि तभी ‘ फैन ’ आ गई। वह 40 दिनों की शूटिंग थी। इस बीच ‘ रईस ’ आगे खिसक गई। मेरा घुटना चोटिल हो गया। ‘ रईस ’ का 14-15 दिनों का काम बाकी रह गया। ‘ फैन ’ वीएफएक्स के चलते 11 महीने टल गई। तो कायदे से ‘ रईस ’ हैप्पी न्यू ईयर ’ के बाद ही आती , पर अब आई है। लिहाजा लोगों को लग रहा है कि

दरअसल : चित्रगुप्‍त की जन्‍म शताब्‍दी

Image
दरअसल.... चित्रगुप्‍त की जन्‍म शताब्‍दी -अजय ब्रह्मात्‍मज 2017 हुनरमंद संगीतकार चित्रगुप्‍त का जन्‍म शताब्‍दी वर्ष है। इंटरनेट पर उपलब्‍ध सूचनाओं के मुताबिक उन्‍होंने 140 से अधिक फिल्‍मों में संगीत दिया। बिहार के गोपालगंज जिले के कमरैनी गांव के निवासी चित्रगुप्‍त का परिवार अध्‍ययन और ज्ञान के क्षेत्र में अधिक रुचि रखता था। चित्रगुप्‍त के बड़े भाई जगमोहन आजाद चाहते थी। उनका परिवार स्‍वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ा था। कहते हैं चित्रगुप्‍त पटना के गांधी मैदान की सभाओं में हारमोनियम पर देशभक्ति के गीत गाया करते थे। बड़े भाई के निर्देश और देखरेख में चित्रगुप्‍त ने उच्‍च शिक्षा हासिल की। उन्‍होंने डबल एमए किया और कुछ समय तक पटना में अध्‍यापन किया। फिर भी उनका मन संगीत और खास कर फिल्‍मों के संगीत से जुड़ रहा। आखिरकार वे अपने दोस्‍त मदन सिन्‍हा के साथ मुंबई आ गए। उनके बेटों आनंद-मिलिंद के अनुसार चित्रगुप्‍त ने कुछ समय तक एसएन त्रिपाठी के सहायक के रूप में काम किया। उन्‍होंने पूरी उदारता से चित्रगुप्‍त को निखरने के मौके के साथ नाम भी दिया। आनंद-मिलिंद के अनुसार बतौर संगीतकार चित्रग

बड़ी कुर्बानियां दी हैं मैंने : प्रियंका चोपड़ा

Image
-मयंक शेखर प्रियंका चोपड़ा हाल ही में अमेरिका से अपने वतन लौटी थीं। वहां से , जहां डोनाल्‍ड ट्रंप नए राष्‍ट्रपति बने हैं। वहां से , जहां के ग्लैमर जगत में प्रियंका भारत का नाम रौशन कर रही हैं। हमारे सहयोगी टैबलॉयड मिड डे के एंटरटेनमेंट एडीटर मयंक शेखर उनकी सोच के हमराज बने। पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :- -बीते दो-तीन बरसों में आप के करियर ने अलग मोड़ लिया है। ‘ क्वांटिको ’   के अगुवा केली ली से हुई मुलाकात को आप के करियर में आते रहे मोड़ का विस्तार कहें। साथ ही उस मुलाकात में और उसके बाद क्या कुछ हुआ। 0 मुझे नहीं लगता कि मैं एक खोज हूं। उसकी बजाय मैं एक अनुभव हूं। ‘ आओ चलो , उसे लौंच करते हैं ’ । ऐसा मेरे संग कभी नहीं हुआ। लोगों को मेरे करियर के आगाज से लेकर अब तलक मेरी प्रतिभा को महसूस करना पड़ा है। तभी प्रारंभ से ही हर दो-तीन साल के अंतराल पर मेरे करियर में अहम मोड़ आते रहे हैं। ‘ क्वांटिको ’ में भी मैं इसलिए कास्ट की गई , क्योंकि वह किसी भारतीय कलाकार का अमरीकियों के लिए सबसे आसान परिचय था। जैसा निर्माताओं ने मुझे बताया। एफबीआई एजेंट के किरदार में खुद

फिल्‍म समीक्षा : ओके जानू

Image
फिल्‍म रिव्‍यू ओके जानू -अजय ब्रह्मात्‍मज शाद अली तमिल के मशहूर निर्देशक मणि रत्‍नम के सहायक और शागिर्द हैं। इन दिनों उस्‍ताद और शाग्रिर्द की ऐसी जोड़ी कमू दिखाई देती है। शाइ अली अपने उस्‍ताद की फिल्‍मों और शैली से अभिभूत रहते हैं। उन्‍होंने निर्देशन की शुरूआत मणि रत्‍नम की ही तमिल फिल्‍म के रीमेक ‘ साथिया ’ से की थी। ‘ साथिया ’ में गुलजार का भी यागदान था। इस बार फिर से शाद अली ने अपने उस्‍ताद की फिल्‍म ‘ ओके कनमणि ’ को हिंदी में ‘ ओके जानू ’ शीर्षक से पेश किया है। इस बार भी गुलजार साथ हैं। मूल फिल्‍म देख चुके समीक्षकों की राय में शाद अली ने कुछ भी अपनी तरफ से नहीं जोड़ा है। उन्‍होंने मणि रत्‍नम की दृश्‍य संरचना का अनुपालन किया है। हिंदी रीमेक में कलाकार अलग हैं,लोकेशन में थोड़ी भिन्‍नता है,लेकिन सिचुएशन और इमोशन वही हैं। यों समझें कि एक ही नाटक का मंचन अलग स्‍टेज और सुविधाओं के साथ अलग कलाकारों ने किया है। कलाकरों की अपनी क्षमता से दृश्‍य कमजोर और प्रभावशाली हुए हैं। कई बार सधे निर्देशक साधारण कलाकारों से भी बेहतर अभिनय निकाल लेते हैं। उनकी स्क्रिप्‍ट कलाकारों