दरअसल : लोकप्रिय स्टार और किरदार
दरअसल...
लोकप्रिय स्टार और किरदार
-अजय ब्रह्मात्मज
हाल ही में गौरी शिंदे निर्देशित ‘डियर जिंदगी’ रिलीज हुई है। इस फिल्म को
दर्शकों ने सराहा। फिल्म में भावनात्मक रूप से असुरक्षित क्यारा के किरदार में
आलिया भट्ट ने सभी को मोहित किया। उनकी उचित तारीफ हुई। ऐसी तारीफों के बीच हम
किरदार के महत्व को नजरअंदाज कर देते हैं। हमें लगता है कि कलाकार ने उम्दा
परफारमेंस किया। कलाकारों के परफारमेंस की कद्र होनी चाहिए,लेकिन हमें किरदार की
अपनी खासियत पर भी गौर करना चाहिए। दूसरे,कई बार कलाकार किरदार पर हावी होते हैं।
उनकी निजी छवि और लोकप्रियता किरदार को आकर्षक बना देती है। किरदार और कलाकार की
पसंदगी की यह द्वंद्वात्मकता हमारे साथ चलती है। कभी कलाकार अच्दा लगता है तो
कभी कलाकार।
हम सभी जानते और मानते हैं कि सलमान खान अत्यंत लोकप्रिय
अभिनेता हैं। समीक्षक उनकी और उनकी फिल्मों की निंदा और आलोचना करते रहे
हैं,लेकिन इनसे उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। एक बार बातचीत के क्रम
में जब मैंने उनसे ही उनकी लोकप्रियता को डिकोड करने के लिए कहा तो उन्होंने
मार्के की बात कही। उन्होंने कहा कि आम दर्शक जब हमें पर्दे पर देखता है तो वह
केवल उस फिल्म के किरदार को नहीं देख रहा होता है। वह उस सलमान को भी देख रहा
होता है,जिसे वह बहुत प्यार करता है। मेरी फिल्में देखते समय उनके दिमाग में
मेरी वह छवि भी चलती रहती है,जो उन्होंने खुद निर्मित की है। ऐसा सभी लोकप्रिय
कलाकारों के साथ होता है। उनकी फिल्में देखते समय हम जाने-अनजाने कलाकार की
लोकप्रियता के प्रभाव में उसकी छोटी कमियों को नजरअंदाज कर देते हें। उसकी खूबियों
को बढ़ा देते हैं। वास्तव में हम खुश रहते और होते हैं। यह अपने
प्रेमी-प्रेमिका,प्रिय परिजनों या दोस्तों से मिलने की तरह है,जिनके देखे से आ
जाती है चेहरे पर रौनक....
बचपन से हम हिंदी फिल्में देख रहे हैं। हिंदी फिल्मों
ने हमारे अंतस में एक संसार रचा है। इस संसार के कार्य-कलाप बाहरी दुनिया से अलग
होते हैं। जाहिर तौर पर वे फिल्मी व्यवहार होते हैं,लेकिन आप गौर करेंगे कि हम
जिंदगी में उन फिल्मी अनुभवों को दोहराते और जीना चाहते हैं। प्रेम का हमारा व्यक्तिगत
प्रयास भी फिल्मों से प्रभावित होता है। हम प्रेमी या प्रेमिका से फिल्मी
प्रतिक्रिया की अपेखा रखते हैं। हम सभी की जिंदगी किसी फिल्म से कम नही है। नीरस
से नीरस व्यक्ति के जीवन की एडीटिंग कर दो-ढाई घंटे निकाल कर किसी चलचित्र की तरी
देखें तो वह बहुत रोचक होगा। अपनी जिंदगी में हम सभी ढाई घंटे से ज्यादा ही
खुश,संतुष्ट और तृप्त रहते हैं। भारतीय समाज में दर्शकों और फिल्मों के इस रिश्ते
पर अधिक काम नहीं हुआ है।
बात ‘डियर जिंदगी’ से आरंभ हुई थी। यह फिल्म अधिकांश दर्शकों को अच्छी लगी
है। इसकी संवेदना ने टच किया है। जहांगीर खान के रूप में शाह रुख खान ने हम सभी को
सहलाया है। हम चाहते और उम्मीद करते हैं हमारी जिंदगी में भी जहांगीर खान जैसा ‘दिमाग का डाक्टर’ आ जाए तो जिंदगी की उलझने
कम हों। हम सरल हो जाएं। जहांगीर खान की बातों और मशविरे से क्यारा को नई दिशा
मिली। उसका आत्मविश्वास लौटा। उसकी असुरक्षा मिटी। अब जरा ठहरें और बताएं कि क्या
महज जहांगीर खान के किरदार ने हमें प्रभावित किया या उस भूमिका में शाह रूख खान की
मौजूदगी ने हमें संवेदित किया? आप पाएंगे कि शाह रुख खान
का भी असर काम करता रहा। थोड़ी देर के लिए मान लें कि आप शाह रुख खान को नहीं
जानते। आप उनकी छवि से अप्रभावित हैं। तब भी क्या यही असर रहता। शायद नहीं,क्योंकि
जहांगीर खान में शाह रुख खान भी थे,जो हमें अच्छे लगते हैं। इस किरदार को गढ़ने
और उसके परफारमेंस में गौरी शिंदे ने बारीकी से शाह रुख खान की पॉपुलर इमेज और
मैनरिज्म का उपयोग किया है। गौरी शिंदे स्मार्ट डायरेक्टर हैं। उन्होंने संयम
से काम लिया। शाह रुख खान की मौजूदगी में वह बही और बहकी नहीं।
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