दरअसल : वर्चुअल रियलिटी
दरअसल...
वर्चुअल रियलिटी
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछलें दिनों गोवा में आयोजित फिल्म बाजार में वर्चुअल
रियलिटी के प्रत्यक्ष एहसास के लिए एक कक्ष रखा गया था। फिल्म बाजार में आए
प्रतिनिधि इस कक्ष में जाकर वर्चुअल रियलिटी का अनुभव ले सकते थे। कुछ सालों से
ऑडियो विजुअल मीडियम की यह नई खोज सभी को आकर्षित कर रही है। अभी प्रयोग चल रहे
हैं। इसे अधिकाधिक उपयोगी और किफायती बनाने का प्रयास जारी है। यह तकनीक तो कुछ
महीनों या सालों में अासानी से उपलब्ध हो जाएगी। अब जरूरत है ऐसे कल्पनाशील
लेखकों की जो इस तकनीक के हिसाब से स्क्रिप्ट लिख सकें। अभी तक मुख्य रूप से
इवेंट या समारोहों के वीआर(वर्चुअल रियलिटी) फुटेज तैयार किए जा रहे हैं। मांग और
मौजूदगी बढ़ने पर हमें कंटेंट की जरूरत पड़ेगी।
वर्चुअल रियलिटी 360 डिग्री और 3डी से भी आगे का ऑडियो
विजुअल अनुभव है। वर्चुअल रियलिटी का गॉगल्स या चश्मे की तरह का खास उपकरण आंखों
पर चड़ा लेने और ईयर फोन कान पर लगा लेने के बाद हम अपने परिवेश से कट जाते हैं।
हमारी आंखों के सामने केवल दृश्य होते हैं और कानों में आवाजें...किसी भी स्थान
पर बैठे रहने के बावजूद हम यकायक निर्दिष्ट स्थान में पहुंच जाते हैं। कुछ ही
देर में हम उस इवेंट या दृश्यलोक के भागीदार हो जाते हैं। दसों दिशाओं चल रही
गतिविधियों को हम देख सकते हैं। यों लगता है कि हम कांच के फर्श पर बैठे हैं। हमारे
पांवों के तले की दुनिया भी हमारे चाक्षुष अनुभव का हिस्सा हो जाती है। इस अनुभव
को महसूस करने पर ही इसके प्रभाव का अंदाजा हो सकता है। युनाइटेड नेशन में एआर
रहमान के ‘वंदे मातरम’ की प्रस्तुति को वर्चुअल रियलिटी में देखते समय यों लग रहा
था कि हम कहीं बीच में बैठ गए हैं और सारी गतिविधियां हमारे इर्द-गिर्द हो रही
हैं।
जानकार बताते हैं कि वर्चुअल रियलिटी का उपयोग
श्सिक्षण,मेडिकल,विज्ञान,फिल्मों के साथ जीवन के तमाम क्षेत्रों में हो सकता है।
मेडिकल साइंस में इसका उपयोग अशक्त और पक्षाघात से ग्रस्त रोगियों को स्टीमुलेट
करने में किया जा सकता है। बाहरी दुनिया से पृथक कर रोगियों का बेहतर इलाज किया जा
सकता है। उनके दिमाग के स्नायु ही उनके शिथिल स्नायुओं को झंकृत कर सकेंगे। मेडिकल
साइंस में इसे एक क्रांति के रूप में देखा जा रहा है।
वर्चुअल रियलिटी मनोरंजन के अनुभव को गहरा और विस्तृत
कर देगा। हम सीधे किरदारों के बीच पहुंच जाएंगे और उनकी दुनिया का हिस्सा बन
जाएंगे। फिल्मों में इसके उपयोग पर फिल्मकार और तकनीशियन काम कर रहे हैं। माना
जा रहा है कि कुछ महीनों में ही यानी 2017 में वीआर फिल्में और शोज तैयार कर लिए
जाएंगे। फिलहाल यह थोड़ा महंगा और जटिल कार्य है। बताते हैं कि वीआर शूट के लिए
मिलने वाले कैमरों की कीमत ही 60 लाख से 1 करोड़ के बीच है। इसकी शूटिंग में कई
कैमरे एक साथ इस्तेमाल किए जाते हैं। फिर सभी गतिचित्रों(फुटेज) की बारीक सिलाई
की जाती है। कहीं भी कोई झटका न लगे। स्मार्ट फोन के कैमरे से कभी आप ने
पैनोरोमिक तस्वीरे ली होंगी। यह उसी का वृहद विस्तार है। किसी भी खास पल में
दसों दिशाओं में चल रही घटनाओं को हम एक साथ कैद कर सकते हैं और उन्हें दिखा सकते
हैं।
वर्चुअल रियलिटी के पहले अनुभव में इसकी कुछ सीमाएं और
अड़चनें भी जाहिर हुईं। फिल्में देखते समय हम सामने चल रहे क्रिया-कलापों पर गौर
करते हैं। उन किरदारों के साथ जुड़ जाते हैं। पूरी फिल्म में हम उनके साथ रहते
हैं। हम नहीं पता रहता कि नायक-नायिका के आसपास और क्या हो रहा है? वीआर देखते समय यह एहसास बना रहता है कि हमारे पीछे भी कुछ
हो रहा है। हमारे पांवों के नीचे और सिर के ऊपर भी ्रिया-कलाप जारी हैं। इसकी वजह
से दृश्यों में हमारी संलग्नता और एकाग्रता टूटती है। जानकारों ने बताया कि आरंभ
में यह अनुभव खंडित लग सकता है,लेकिन धीरे-धीरे आदत होने पर हम आनंदित होना सीख
लेंगे। हमारी रस ग्राह्यता वर्चुअल रियलिटी के अनुरूप हो जाएगी।
वर्चुअल रियजलटी को हिंदी में आभासी यथार्थ या वास्तविकता
कह सकते हैं। इसका गॉगल्स बाजार में 500 से 5000 रुपए के बीच उपलब्ध है। क्या
आप मनोरंजन के इस आभासी यथार्थ के लिए तैयार हैं। अभी भले ही ना-नुकूर करें,लेकिन
यह तय है कि यह बड़े पैमाने पर हमारे जीवन का प्रभावित करेगा।
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